यूँ ही
नहीं लिखता
कोई
कुछ भी
अँधेरे में
उजाला लिखना
लिखना अँधेरा
उजाले में
उजाले में
उजाला लिखना
लिखना
अँधेरे में अँधेरा
एक बार लिखा
बार बार लिखना
लिखना
बेमौसम
सदाबहार लिखना
यूँ ही
नहीं लिखता
कोई कुछ भी
सब
लिखते हैं कुछ
कुछ
लिखना
सबको नहीं आता है
सब
सब नहीं लिखते हैं
सब
लिखने की
हिम्मत
हर कोई
नहीं पा जाता है
सब लिखते हैं
सब
लिखने पर
बात करते हैं
सब
कोशिश करते हैं
अपने लिखे को
सब कुछ बताने की
सब
का लिखा
सब को
समझ में
नहीं आता है
सब से
अच्छी टिप्पणी
सुन्दर होती है
दो चार शब्द
कहीं दे आने से
ज्यादा कुछ
घट नहीं जाता है
लिखते लिखते
कहाँ
भटक गया होता है
लिखने वाले को भी
पता कहाँ चल पाता है
कुछ भी है
लेकिन
सच
चाहे अपना हो
पड़ोस का हो
समाज का हो
किसी में
इतनी
हिम्मत
नहीं होती है
कि
लिख ले
कोई
नहीं
लिख पाता है
‘उलूक’
कोशिश करता है
फटे में झाँकने की
और बताने की
लेकिन
उसका जैसा
उल्लू का पट्ठा
शायद
कभी कोई
नजर आये
जो अपने
पैजामे के
नाड़े को
बाँधने के
चक्कर में
पैजामा
कौन सा है
बता पाये
नजर नहीं
आता है
बकवासों
का भी
समय
आयेगा कभी
खण्डहर
बतायेंगे
हर नाड़े को
पैजामा
छोड़ कर
जाने का
मलाल रह
ही जाता है।
चित्र साभार: https://www.talentedindia.co.in