खासों में आम सहमति से होती हैं कुछ खास बातें
कहीं किसी किताब में नहीं होती हैं
चलन में होती हैं कुछ पुरानी चवन्नियाँ और अठन्नियाँ
अपनी खरीददारियाँ अपनी दुकानें अपनी ही बाजार होती है
होती हैं लिखी बातें पुरानी सभी हर बार
फिर से लिख कर सबमें बाँटनी होती हैं
पढ़ने के लिये नहीं होती हैं कुछ किताबें
छपने छपाने के खर्चे ठिकाने लगाने की रसीद काटनी होती हैं
लिखी होती हैं किसी के पन्ने में हमेशा कुछ फजूल बातें
कैसे सारी हमेशा ही घर की हवा के खिलाफ होती हैं
कलमें भी बदचलन होती हैं ‘उलूक’
नियत भी किसी की खराब होती है ।
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