कहने में 
क्या है 
कहता है 
कि 
लिखता है 
बस
आग
और आग 
लिखता है 
दिखने में 
दिखता है 
थोड़ा 
कुछ धुआँ 
लिखता है 
थोड़ी कुछ
राख लिखता है
आग 
लिखने से 
उठता है धुआँ 
बच 
जाती है 
कुछ राख 
फिर भी 
नहीं 
कहते हैं 
लोग 
कि 
खाक 
लिखता है 
सोच 
नापाक 
होती है 
पता ही 
नहीं 
चलता है
चलता है
लिखता है 
तो सब
पाक
और
पाक  लिखता है 
शेरो शायरी 
गीत और गजल 
सब कुछ 
एक साथ 
एक पन्ने
पर
लिख देने के 
ख्वाब 
लिखता है 
जब 
मन में 
आता है 
लिखने
बैठ 
जाता है
जाता है
कोई 
नहीं 
कहता है
कहता है
दाल भात
और
साग 
लिखता है
लिखता है
‘उलूक’ 
को
को
पता होता है
अंधेरी 
रात में 
खुद
के डर
मिटाने को 
जागते रहो 
जागते रहो 
का
जाग
लिखता है ।
चित्र साभार:
