उलूक टाइम्स: राख
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शनिवार, 30 नवंबर 2024

इतना कुरेद कब्र लिखी जाए

 


इतना कुरेद
कब्र लिखी जाए
दफन करने के लिए कुछ
कुछ किया जाए

मिट्टी नहीं सही
राख ली जाए  
कफन ढकने के लिए कुछ
कुछ दिया जाए

आग से खेल नियम हैं
जल और जला  धरम है  
किताबों में नहीं लिखा है
दीवारों पर लिख
नया कानून लिखा जाए

 फूँक ले घर को
फूँक ले शहर को
रोशनी से कह कर
थोड़ा सब्र करने की बात  
आंच और धुएं को
गुमराह किया जाए

 राख ही राख हो
राख की इफ़रात हो
कब्र ना भी लिख सके अगर
दफन हो सभी कुछ
कफन ना बरबाद हो

 इतना कुरेद
कब्र लिखी जाए
दफन करने के लिए कुछ
कुछ किया जाए


चित्र साभार:
https://www.shutterstock.com/



शनिवार, 9 जनवरी 2021

नंगा सच है नंगई ईश्वरीय है

मत लिखा कर
हर समय गीला सा
सुखा लिया कर
लिखा अपना सीला सा

आग नहीं लगती है
लिखा गीला होता है
सीलन सुलगती नहीं है

रोज लिखना
हर समय दिखना
इसलिये ठीक नहीं होता है
लिखाई भी हर समय बहकती नहीं है

लिखा कर
कोई नहीं कहता है नहीं लिख
बस फूँक लिया कर लिखते लिखते लिखे को
स्याही सूखे बिना चमकती नहीं है

आग लिख या राख लिख
किसे मतलब है
लगी आग से बनती राख तक
जरूरी है खबर बनना
अखबार बिकता है
पकी पकाई से
कच्ची खबर बिकती नहीं है

किसलिये लिखना
हो रहे को यूँ ही
बिना मिर्च बिना मसाले के

शाम के गिलास में
शराब
बिना बात के
यूँ ही कहीं
जा गिरती नहीं है

सबको
पता होता है
सब जानते हैं लिखावट
हर लिखे की
चिट्ठियाँ आती है
किसी और के नाम से
लिखने वाले के
शहर में नहीं होने की खबर
कहीं छपती नहीं है

‘उलूक’
नोच
अपने गंजे सर के बचे बालों को
नगों की मौज रहेगी हमेशा

नंगा सच है
नंगई करना ईश्वरीय है

मंदिर बना कहीं भी 
नंगे का किसी 
कोई रोक है कहीं
कहीं दिखती नहीं है।

चित्र साभार: ttps://www.gograph.com
/

रविवार, 22 नवंबर 2020

धुआँ धुआँ हो कहीं हो फिर भी

 



धुआँ धुआँ सा 
जरा सा सोच में 
चला आया आज 
पता नहीं क्यों 

कोई खबर 
कहीं आग लगने की 
सुबह के अखबार में नहीं दिखी 
फिर भी 

बहुत कुछ जलता है 
ना धुआँ होता है ना आग दिखती है कहीं 
राख भी हो जाती है राख तक 
नामों निशा नहीं मिलता है कहीं 
फिर भी 

सुलगना जरूरी है 
बस कोयले का ही नहीं 
हर एक सोच का भी 
कहीं भी थोड़ा सा ही सही 
आग भी हो और राख भी हो
दूर बहुत हो 
फिर भी 

अपनी सम्भलती नहीं गाय 
दूसरे की उजाड़ जाने की चिंता में 
गलता एक आदमी दिखता है 
होता हुआ धुआँ धुआँ 
नजर नहीं आता है कहीं 
फिर भी 

बहुत सारी आग 
बहुत सारा धुआँ 
सम्भालते लोग 
आग और धुऐं की बात 
आते ही कहीं 
बातों को 
पानी और दूध की ओर 
टालते लोग 
फिर भी 

पागल ‘उलूक’ अंधा ‘उलूक’
 बेशरम ‘उलूक’ 
दिन में रात 
और रात में दिन की 
बातें करता ‘उलूक’ 
धुआँ और आग 
या आग और धुऐं की 
बातों को सम्भालता ‘उलूक’ 
फिर भी 

 फायर ब्रिगेड जरूरी है पता है 
आग हो या धुआँ हो फिर भी 
बेफिकर होकर 
चुटकुलों के साथ 
आग और धुआँ 
मुँह से निकालता ‘उलूक’ 
सिगरेट का धुआँ हो या 
धुआं यूं ही धुआं धुआं 
फिर भी 

चित्र साभार: http://clipart-library.com/s

शनिवार, 14 मार्च 2020

लगी आग लगाई आग कुछ राख कुछ बकवास कुछ चिट्ठाकारी




समझ में
जब

खुद के
ही
नहीं आती है

लगाई गयी आग
और
लगी आग
से
बनी राख

तो
किस लिये
भटकता है
औघड़

ढूँढने
के लिये
लकड़ियाँ
माचिस का डब्बा
और
गंधक लगी
छोटी छोटी
तीलियाँ

हुँकार कर
आँखें
लाल रक्त
से भर
और
फूँक दे
शँख

रक्तबीज
अंकुरित हैं
हर समय
हर दिशा में

विषाणु
को
कोई भी
नाम दे दो
अच्छा है

कत्ल
करने का
शरीर के साथ
आत्मा
का

के 
विश्वास
के
दंभ के आगे
कुछ नहीं
दंभ के पीछे
कुछ नहीं

दंभ
बनेगा राम
बना
करता होगा
रावण
कहानियों का

कई किस्म के
 बीमार हैं
बीमारियाँ भी
कम नहीं हैं

शरीर
कई मिटते हैं
मिटते रहेंगे

आत्मा
सड़ी
सबसे
खतरनाक है

तैर लेती है
समय के साथ
फाँद लेती है
मीनारें

बहुत
कठिन समय है
विषाणु
बैठ चुका है
कई साल पहले
सिंहासन पर

सम्मोहित
करता है
लोग
होते भी हैं
सम्मोहित

मर भी जाते हैं
बस
जलाये
या
दफनाये
नहीं जाते हैं

तैरते हैं
अभी भी
समय के साथ

आदमी
भ्रम से पार
नहीं पायेगा
जरूरत भी नहीं है

संपेरों
के
देश के साँप
और
बीन लिये
सपेरे
काफी हैं
संभालने के लिये
देश

साँप फुफकारे

जय हिन्द
वन्दे मातरम
भारत माता की जय
इस से बड़ा
 आठवाँ आश्चर्य
बताइये कोई

‘उलूक’
तेरी तरह का
कोई
पढ़ेगा जरूर

अच्छा होता है
लिख कर
कुछ बकवास

फिर
सो जाना
सूखे पेड़ की ठूँठ पर

आँख
खोल कर
हमेशा की तरह ।

 चित्र साभार: https://www.livehindustan.com/uttar-pradesh/badaun/story-snake-punished-snake-charmer-called-snake-2769083.html

सोमवार, 16 सितंबर 2019

अपनी गाय अपना गोबर अपने कंडे खुद ही ढोकर जला कुछ आग बना कुछ राख




कुछ
हंसते हंसते 

कुछ
रो धो कर 

अपना घर 
अपनी दीवार 

रहने दे
सर मत मार 

अपनी गाय 

अपनी गाय
का 
अपना गोबर

गोबर के कंडे 
खुद ही बनाये गये 
अपने ही हाथों से 
हाथ साफ धोकर

अपना 

ही घर 
अपने ही 
घर की दीवार

कंडे ही कंडे

अपना सूरज 
अपनी ही धूप 
अपने कंडे
कुरकुरे
खुद रहे सूख 

अपने कंडे

अपनी आग 
अपना जलना
अपनी फाग 
अपने राग
अपने साग 

आग पर लिख ना
साग पर लिख ना 
राग बे राग पर लिख ना 

जल से दूर
कहीं 
पर जाकर
कुछ कुछ जल जाने 
पर लिख ना 

अपना अपना 
होना खाक 
थोड़ा पानी
थोड़ी राख 

अपनी किताब
अपने पन्ने
अपनी अपनी
कुछ बकवास 

अपना उल्लू
अपनी सीध

बेवकूफ 
‘उलूक’

थोड़ा सा 
कुछ 
अब 
तो सीख 

अपनी गाय 
अपना गोबर 
अपने कंडे
अपनी दीवार
अपनी आग 
अपनी राख 
अपने अपने
राग बे राग 
अपने कंडे
खुद ही थाप 
रोज सुखा
जला कुछ आग। 

वैधानिक चेतावनी: 
कृपया इस बकवास को ब्लॉगिंग यानि चिट्ठाकारी से ना जोड़ें

चित्र साभार: https://timesofindia.indiatimes.com

मंगलवार, 10 सितंबर 2019

नींद खराब करने को गहरी जागते रहो जागते रहो का जाग लिखता है




कहने में 
क्या है 

कहता है 

कि 
लिखता है 

बस
आग 
और आग 
लिखता है 

दिखने में 
दिखता है 

थोड़ा 
कुछ धुआँ 
लिखता है 

थोड़ी कुछ 
राख लिखता है

आग 
लिखने से 
उठता है धुआँ 

बच 
जाती है 
कुछ राख 

फिर भी 
नहीं 
कहते हैं 
लोग 

कि 
खाक 
लिखता है 

सोच 
नापाक 
होती है 

पता ही 
नहीं
चलता है 

लिखता है 

तो सब 

पाक
और 
पाक लिखता है 

शेरो शायरी 
गीत और गजल 

सब कुछ 
एक साथ 

एक पन्ने
पर 
लिख देने के 

ख्वाब 
लिखता है 

जब 
मन में 
आता है 

लिखने 
बैठ
जाता है 

कोई 
नहीं
कहता है 

दाल भात

और 
साग
लिखता है 

‘उलूक’
को 
पता होता है

अंधेरी 
रात में 

खुद
के डर 
मिटाने को 

जागते रहो 
जागते रहो 

का
जाग 
लिखता है ।

चित्र साभार: 


गुरुवार, 27 जून 2019

खूबसूरत लिखे के ऊपर खूबसूरत चेहरे के नकाब ओढ़ाये जायेंगे फिर ईनाम दिलवाये जायेंगे



सुपुर्द-ए-खाक
हो गये हों

या
जल कर
राख हो गये हों

ढूँढ कर

निकाल कर
लाये जायेंगे 

राख और मिट्टी
हो गये कुछ खास

फिर से

जमीन से खोद कर
धुलवाये जायेंगे

विज्ञान के
सारे ज्ञान का तेल

निकाल कर
पेल ले जायेंगे

पर छोड़ेंगे नहीं

मरे हुऐ भी

फिर से
जिन्दा
करवाये जायेंगे

अभी

बस
भूतों के
पीछे पड़े हैं

पाँच साल
रुकिये
भविष्य तय
कर करा कर

फंदे के
अंदर घसीट
लटका कर
ही जायेंगे

बाकि
काम तो
चलता ही रहता है

सत्तर साल
मिले हैं
आगे के

बराबरी
करने के लिये

अभी तो
सारा वही कुछ

पुराना
खोद कर
धो पोछ कर

नया बना

गा गा
कर लोरियाँ बनायेंगे

चेहरे
सामने के
चेहरे
आईने के

दिखते रहेंगे
देखते चले जायेंगे

चेहरे
असली
पीछे के

कोशिश करेंगे

जितना
हो सके
छुपायेंगे

कविता लिखेंगे

चेहरे बुनेंगे

साम्य
कुछ
जरूर बैठायेंगे

कर्म
किसने
देखने सुनने हैं

कभी
खुल भी गये

तो
थोड़ा सा
होंठों में
मुस्कुरायेंगे

कुछ को
ईनाम देंगे

कुछ को
शाबाशी मिलेगी

थोड़े कुछ
लिखने वाले रोड़े

गालियाँ
भी खायेंगे

गिरोह
शराफत के
दिखेंगे
जगह जगह

कुछ
हरों में
कुछ
पीलों में
गिने जायेंगे

कुछ
अलग होगा
कहीं किसी जगह
की सोच
बनाये रखेंगे

देखेंगे

हर जगह

राष्ट्रीय चरित्र
एक जैसा
‘उलूक’

जापान
के लोगों
के उदाहरण

जरूर
पेश किये जायेंगे

लिखना
जरूरी है
जो
जरूरी है

लोग
खूबसूरत हैं

गजब का
लिखते हैं

नाम है

पर

क्या
 सच के साथ

खड़े हो पायेंगे?

चित्र साभार: www.istockphoto.com

सोमवार, 22 अक्टूबर 2018

बकवास करना भी कभी एक नशा हो जाता है अपने लिखे को खुद ही पढ़ कर अन्दाज कहाँ आता है



कहावतें भी समय के साथ बह जाती हैं 
चिंता चिता के समान होती होंगी कभी 
अब मगर चितायें भी बहा ले जायी जाती हैं 

लकड़ियाँ रह भी गयी अगर जलाती नहीं है 
बस थोड़ा थोड़ा सा सुलगाती हैं 

इसलिये लगा रह चिंता कर 
लेकिन कभी कभी बकवास भी पढ़ लिया कर 

अंगरेजी में कहते हैं फॉर ए चेंज 

बकवास लिखने के कई फायदे जरूर हैं 
फिर भी बकवास लिखने के कायदे भी
कुछ हजूर हैं 

कभी कोशिश कर के देख ले लिखने की 
कोई भी बकवास 
देख कर समझ कर कुछ भी 
अपने ही अगल बगल अपने ही आसपास

बकवास कभी इतिहास नहीं हो पाती है 
ध्यान रहे एक दिन के बाद 
दूसरे दिन साँस भी नहीं ले पाती है 

कोई देखने नहीं आता है 
कोई नहीं 
हाँ तो मतलब देखना पड़ता है जो किया जाता है 
उसको कितनों के द्वारा नजर के दायरे में लिया जाता है 

सोचो जरा 
कूड़े के ढेर में कौन कौन सा 
किस प्रकार का कैसा कैसा कूड़ा गेरा गया है 
कौन इतना ध्यान लगाता है 

सारा मिलमिला कर सब एक जैसा 
सार्वभौमिक हो जाता है 
एक तरह से ईश्वरीय हो जाता है 
सर्वव्यापी क्या होता है महसूस करा जाता है 

अब सब लोग कूड़ा क्यों देखेंगे भला 
अच्छा भी तो बहुत सारा होता है 
जिस पर सबका हिस्सा माना जाता है 

और जो मिलजुल कर साथ साथ 
कूड़े को पाँव के नीचे दबाकर 
उँचे स्वर में गाया जाता है 

दुर्गंध क्या होती है 
जब सड़ाँध है को होने के बावजूद 
सर्वसम्मति से नकार दिया जाता है 
मतलब इस सब के बीच कोई लिखने में लग जाता है 

ऊल जलूल लिखा हुआ किसी को 
कविता कहानी जैसा नजर आना शुरु हो जाता है 

क्या किया जाये 
अंधा लूला लंगड़ा काना 
किस दिशा में किस चीज में रंगत देख ले जाये 
कौन बता पाता है 

अब ‘उलूक’ इस सब के बीच 
बकवास करने के धंधें में कब पारंगत हो जाता है 

उसे भी तब अन्दाज आता है 
जब कोई कहना शुरु कर देता है 

अबे तू किसलिये फटे में टाँग अड़ा कर 
इतना खिलखिलाता है 

सार ये है कि 
ठंड रखना सबसे अच्छा हथियार माना जाता है 

कुछ दिन चला कर देख ले 
कितना मजा आता है ।

***********************************************
कुरेदना राख को उसका
देखिये जनाब बबाल कर गया 
आग बैठी देखती रह गयी बहुत दूर से
कमाल कर गया ।
***********************************************

चित्र साभार: http://www.i2clipart.com

शनिवार, 4 अगस्त 2018

आग पर लिखले कुछ भी जलता हुआ इससे पहले कह दे कोई सुन जरा सा अब कुछ बची हुयी राख पर लिख


ख्वाब
पर लिखना
है जनाब

 लिख और
बेहिसाब लिख

फेहरिस्त
छोटी सी लेकर एक
जिन्दगी के पूरे हिसाब पर लिख


रोज
लिखता है कुछ
देखे हुऐ कुछ पर
कुछ भी अटपटा बिना सोचे

सोच कर
जरा लिख कर दिखा
थोड़ा सा कुछ सुरखाब पर लिख

बना रहा है
ख्वाब के समुन्दर
कोई पास में ही

डूब कर
ख्वाबों में उसके ही सही
ले आ एक ख्वाब माँगकर कभी
लिख कुछ उसी के ख्वाब पर लिख

किसी की झूठी 
आब के रुआब से निकल कर आ
आभासी नशे में झूम रही
सम्मोहित कायनात के
वीभत्स हो गये शबाब पर लिख

लिख और
बस थोड़ी सी देर रुक
फिर उस लिखे से
मिलने वाले अजाब पर लिख


किसी ने
नहीं कहा है
फिर से सोच ले
‘उलूक’
एक बार और

ख्वाब पर
लिखने के बहाने भी
अपनी रोजमर्रा की
किसी भड़ास पर लिख ।

चित्र साभार: www.hikingartist.com


अजाब: पीड़ा, दु:ख, पापों का वह दण्ड जो यमलोक में मिलता है, यातना,
फेहरिस्त: सूची पत्र
आब: छवि, चमक, तड़क-भड़क, इज्जत, पानी
रुआब: रोब, शक्ति, सम्मान, भय, आतंक या कोई विशेष बात आदि से प्राप्त प्रसिद्धि
शबाब: यौवन काल, जवानी।

गुरुवार, 2 अगस्त 2018

रोटियाँ हैं खाने और खिलाने की नहीं हैं कुछ रोटियाँ बस खेलने खिलाने के लिये हैं

वो
अपनी
रोटियाँ
सेकता है
किसी और
की आग में

चारों तरफ
लगी आग है
कुछ रोटियों
के ढेर हैं
और कुछ
राख है

ऐसा
नहीं है कि
भूखा है वो
और उसे
खानी हैं
रोटियाँ

गले तक
पेट भर
जाने के बाद
कुछ देर
खेलने की
आदत है उसे

लकड़ियाँ
सारे जंगल
की यूँ ही
जला देता
है हमेशा

दिल
जला कर
पकायी गयी
रोटी का स्वाद
लाजवाब होता है

रोटियों में
इतना दखल
होना भी
गजब की बात है

रोटियाँ
पढ़ाता है
और
पूछता भी है
फिर से
समझाऊँ
रोटियाँ शुरु से

रोटियों से
क्या करेगा
क्या करेगा
आग और
राख से ‘उलूक’

किसी की
भूख है
किसी का
चूल्हा है

रोटियाँ
किसी
और की हैं।

चित्र साभार: www.123rf.com

रविवार, 14 जनवरी 2018

अलाव में रहे आग हमेशा ही सुलगती हुई इतनी लकड़ियाँ अन्दर कहीं अपने कहाँ जमा की जाती हैं

लकड़ियों से उठ रही लपटें 
धीरे धीरे 
एक छोटे से लाल तप्त कोयले में 
सो जाती हैं 

रात भर में सुलग कर 
राख हो चुकी 
कोयलों से भरी सिगड़ी 
सुबह बहुत शांत सी नजर आती है 

बस यादों में रह जाती हैं 
ठंडी सर्द शामें जाड़ों के मौसम की 

धीमे धीमे 
अन्दर कहीं सुलगती हुई आग 
बाहर की आग से जैसे 
जान पहचान लगवाना चाहती हैं 

लकड़ी का जलना 
आग धुआँ और फिर राख 
इतनी सी ही तो होती है जिन्दगी 

फिर भी 
सिरफिरों की आग से खेलने की आदत 
नहीं जाती है 

कुरेदने में बहुत मजा आता है 
बुझी हुई राख को 

जलती 
तेज लपटों से तो दोस्ती 
बस दो स्केल दूर से ही की जाती है 

कहाँ सोच पाता है आदमी 
एक अलाव हो जाने का खुद भी 
आखरी दौर में कभी 

अन्दर 
जलाकर अलाव ताजिंदगी 
ना जाने बेखुदी में 
कितनी कितनी आगें पाली जाती हैं 

‘उलूक’ 
कुछ भी लिख देना 
इतना आसान कहाँ होता है

किसी भी बात पर 
फिर भी 
किसी की बात रखने के लिये 

बात
कुछ इस तरह भी 
अलाव में
अन्दर सेक कर 
बाहर पेश की जाती हैं । 

चित्र साभार: http://www.clipartpanda.com

शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

बुखार कैसा भी हो निकलता ही है कुछ बाहर बुदबुदाने में

बस चार
दिन की है
बची बैचेनी

फिर बजा
लेना बाँसुरी
लगा कर आग
रोम को पूरे

सब कुछ
बदल
जायेगा जब
बनेगी राख
देख लेना
मिचमिचाती
सी अगर
बन्द भी होगी
तब भी आँख

धुआँ खाँसेगा
खुद बूढ़ा
होकर जले
जंगल का
बहेगी नाक
आपदा के
पानी की
बहुत जोरों से

सारा हरा भूरा
और सारा भूरा
हरा हो लेगा
यूँ ही बातों
बातों के बीच

घुस लेंगे सारे
दीमक छोड़
कर कुतरना
जीते हुऐ और
मरे हुऐ को
जैसे थे जहाँ थे
की स्थिति में

उगना शुरु
होंगे जंगल
के जंगल
लदने लगेंगे
फल फूल
पौंधों में पेड़
बनने से
ही पहले

दौड़ेंगे उल्टे
पाँव बंदर
सुअर
और बाघ
घर वापसी
के लिये
खुशी से

दीवाली
के दीये
खनखनायेंगे
पुराने पीतल
के बने घर के
भरे लबलबा
तेल ही तेल से

उधरते घरों
के आंगन
में रम्भायेंगी
भैसें गायें और
बकरियाँ

सूखे खुरदरे
उधरते पहाड़ों
के हाड़ों से
निकलते
सारे के सारे
नदी धारे
दिखेंगे
छलछलाते

सपने बेचने
निकले हैं अपने
खुद के
लोग कुछ
थोड़े से
खरीददार
सारे सब
लगे हैं
साथ में
अपने

अपने
हिसाब से
अपनी
किताबें
पढ़ कर
समझ कर
गणित
दो में दो
जोड़ कर
करने पाँच
सात या
और
ज्यादा
जितना
हो सके
जहाँ तक

चल तैयार
हो ले तू भी
‘उलूक’
लगाने
स्याही
कहीं
थोड़ी सी
अपने भी
गवाही देगें
सुना हैं
रंग नाखूनों के
आने वाले
दिनो में
उत्सवों में
जीत के
पहाड़ों की।

चित्र साभार: Freepik

रविवार, 1 फ़रवरी 2015

किसी दिन ना सही किसी शाम को ही सही कुछ ऐसा भी कर दीजिये


अपनी ही बात अपने ही लिये 
रोज ना भी सही 
कभी तो खुल के कह ही लीजिये 

कोई नहीं सुनता इस गली में कहीं
अपनी आवाज के सिवा 
किसी और की आवाज 

खुद के सुनने के लिये ही सही 
कुछ तो कह दीजिये 

कितना भी हो रहा हो शोर उसकी बात का 
अपनी बात भी उसकी बातों के बीच 
हौले हौले ही सही कुछ कुछ ही कहीं 
कुछ तो कह दीजिये 

जो भी आये कभी मन में चाहे अभी 
निगलिये तो नहीं उगल ही दीजिये 

तारे रहते नहीं कहीं भी जमीन पर 
बनते बनते ही उनको 
आकाश की ओर हो लेने दीजिये 

मत ढूँढिये जनाब ख्वाब रोशनी के यहीं 
जमीन की तरफ नीचे यहीं कहीं 
देखना ही छोड़ दीजिये 

आग भी है यहीं दिल भी है यहीं कहीं 
दिलजले भी हैं यहीं 
कोयलों को फिर से चाहे जला ही लीजिये 

राख जली है नहीं दुबारा कहीं भी कभी 
जले हुऐ सब कुछ को जला देख कर 
ना ही कुरेदिये 

उड़ने भी दीजिये 
सब कुछ ना भी सही 
कुछ कुछ  तो कभी कह ही दीजिये 

अपनी ही बात को
किसी और के लिये नहीं 
अपने लिये ही सही 
मान जाइये कभी कह  भी दीजिये ।

चित्र साभार: galleryhip.com

शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

बस चिंगारी से आग और आग से राख बनाने की बात करनी है


चिंगारियाँ उठने की बात आग़ लगने की बात बातों बातों में ही करनी है
इससे भी पूछना है उससे भी पूछना है
आग से भी पूछ कर कुछ सुलगने सुलगाने की बात करनी है

जलाना कितना भी है जलाना कुछ भी है बस जलाने की बात करनी है
आग लगनी है ना लगानी है बस आग दिखने और दिखाने की बात करनी है

धुँआ दिखना नहीं है राख बचनी नहीं है दिल को जलना नहीं है
तूफान आने की बात करनी है

कत्ल होना नहीं है खून बहना नहीं है क्राँतिकारियों की बात करनी है 
बहुत हो चुकी इंसानों की बातें पामेरियन ऐप्सो एल्शेशियन की बात करनी है

बहुत बेच दिये आदमी ने आदमी
अब लाशें दफनानी हैं  मूर्तियाँ लगवानी हैं कमीशन बनाने की बात करनी है

आग होती भी है आग लगती भी है मत करो जुल्म उसपर बड़ा
उसे भी कभी थोड़ा सा कुछ सोने जाने की बात करनी है 

सालों हो गये तुझको बातें बनाते ‘उलूक’ सबको पता है
तुझे तो बस दिया सलाई की बात करनी है


चित्र साभार: www.dreamstime.com