धुआँ धुआँ सा
जरा सा सोच में
चला आया आज
पता नहीं क्यों
कोई खबर
कहीं आग लगने की
सुबह के अखबार में नहीं दिखी
फिर भी
बहुत कुछ जलता है
ना धुआँ होता है ना आग दिखती है कहीं
राख भी हो जाती है राख तक
नामों निशा नहीं मिलता है कहीं
फिर भी
सुलगना जरूरी है
बस कोयले का ही नहीं
हर एक सोच का भी
कहीं भी थोड़ा सा ही सही
आग भी हो और राख भी हो
दूर बहुत हो
फिर भी
अपनी सम्भलती नहीं गाय
दूसरे की उजाड़ जाने की चिंता में
गलता एक आदमी दिखता है
होता हुआ धुआँ धुआँ
नजर नहीं आता है कहीं
फिर भी
बहुत सारी आग
बहुत सारा धुआँ
सम्भालते लोग
आग और धुऐं की बात
आते ही कहीं
बातों को
पानी और दूध की ओर
टालते लोग
फिर भी
पागल ‘उलूक’ अंधा ‘उलूक’
बेशरम ‘उलूक’
दिन में रात
और रात में दिन की
बातें करता ‘उलूक’
धुआँ और आग
या आग और धुऐं की
बातों को सम्भालता ‘उलूक’
फिर भी
फायर ब्रिगेड जरूरी है पता है
आग हो या धुआँ हो फिर भी
बेफिकर होकर
चुटकुलों के साथ
आग और धुआँ
मुँह से निकालता ‘उलूक’
सिगरेट का धुआँ हो या
धुआं यूं ही धुआं धुआं
फिर भी
चित्र साभार: http://clipart-library.com/s