कोई
चैन से
चैन से
लिखता है
कोई बैचेनी
सी दिखाता है
डाक्टर
के पास
दोनो ही
में से
कोई
कोई
नहीं जाता है
लिख लेने
को ही
अपना इलाज बताता है
अपना इलाज बताता है
विषय
हर
हर
किसी का
बीमारी
है या नहीं
है या नहीं
की
जानकारी
दे जाता है
कोई मकड़ी
की
टाँगों में
टाँगों में
उलझ जाता है
कोई किसी
की
आँखों में
आँखों में
घुसने का
जुगाड़ बनाता है
किसी को
सत्ता पक्ष
से
खुजली
खुजली
हो जाती है
विपक्षियों
की
उपस्थिति
उपस्थिति
किसी पर
बिजली गिराती है
पाठक भी
अपनी पूरी
अकड़ दिखाता है
कोई क्या
लिखता है
उस पर
कभी कभी
दिमाग लगाता है
जो खुद
लिखते हैं
वो लिखते
चले जाते हैं
कुछ नहीं
लिखने वाले
इधर उधर
नजर मारते
हुवे
कभी
कभी
नजर आ जाते हैं
हर मुद्दे पर
कुछ ना कुछ
लिखा हुवा
मिल
ही जाता है
ही जाता है
गूगल
आसानी से
उसका पता
छाप ले जाता है
किसी को
एक
पाठक भी
पाठक भी
नहीं मिल पाता है
कोई सौ सौ
को लेकर
अपनी ट्रेन
बनाता है
कुछ भी हो
लिखना पढ़ना
बिना रुके
अपने रास्ते
चलता चला
जाता है
मुद्दा भी
मुस्कुराता है
अपने
काम पर
मुस्तेदी से
लगा हुवा
इसके बाद
भी
नजर आता है।