उलूक टाइम्स: बोलचाल
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मंगलवार, 12 जून 2012

विद्वान की दुकान

विद्वानो की छाया तक
भी नहीं पहुंच पाया
तो विद्वता कहाँ
से दिखा पाउंगा
कवि की पूँछ भी
नहीं हो सकता
तो कविता भी
नहीं कर पाउंगा
विचार तो थोड़े से
दिमाग वाले के भी
कुछ उधार ले दे के
भी पनप जाते हैं
कच्ची जलेबियाँ पकाने
की कोशिश जरूर करूंगा
हलुआ गुड़ का कम से कम
बना ही ले जाउंगा
भैया जी आपकी
परेशानी बेवजह है
किसी लेखन प्रतियोगिता
में भाग नहीं ही
कभी लगाउंगा
अब जब दुकान
खोल के बैठ ही गया
हूँ इस बाजार में
तो किसी ना किसी
तरह जरूर चलाउंगा
कहाँ कहाँ पिट पिटा
के आउंगा मलहम
कौन सा उसके बाद
हकीम लुकमान से
बनवा के लगवाउंगा
अब बोलचाल की
भाषा में ही तो यहाँ
आ के बता पाउंगा
किसी से कहलवा कर
पैसे जेब के लगवाकर
आई एस बी एन नम्बर
वाली कोई किताब भगवान
कसम नहीं छपवाउंगा
चिंता ना करें किसी नयी
विधा का अपने नाम से
जन्म/नामकरण हुवा है
कहकर कोई नया
सेल्फ फाईनेंस कोर्स
भी नहीं कहीं चलवाउंगा
आप अपनी दुकान की
चिंता करिये जनाब
अपने धंधे से आपके
व्यवसाय के रास्ते में
रोड़े नहीं बिछाउंगा
कोई नुकसान आपकी
विद्वता को मैं अनपढ़
बताइये कैसे पहुंचाउंगा।