मेरे मन
के
ग्लेशियर
ग्लेशियर
से
निकलने
निकलने
वाली गंगा
तेरे प्रदूषण
को
घटते बढ़ते
हर पल
हर क्षण
महसूस किया
है मैंने
भोगा है
तेरे गंगाजल
के
काले भूरे
काले भूरे
होते हुवे
रंग को
विकराल
होते हुवे
तेरी शांत
लहरों को
बदलते हुवे
सड़ांध में
तेरी
भीनी भीनी
खुश्बू को
और ऎसे
में अब
मेरी
सांस्कृ्तिक
धरोहर
मैं खुद
ही चाहूंगा
ये
ग्लेशियर
खुद बा खुद
सूख जाये
ताकि मेरे
मन से
बहने वाली
पवित्र गंगे
तू मैली
ना कहलाये ।