उलूक टाइम्स: वजूका
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गुरुवार, 10 नवंबर 2016

खुद की सोच ही एक वजूका हो जाये खेत के बीच खड़ा हुआ तो फिर किसी और को क्या समझ में आये एक वजूका सोच से बड़ा होता है


क्या बुराई है
हो जाने में 
सोच का खुद की 
एक वजूका 

और 
जा कर खड़े हो लेने में 
कहीं भी किसी जगह 

जरूरी नहीं
उस जगह का
एक खेत ही होना 

वजूके समझते हैं
वजूकों के तौर तरीके 

लगता है
पता नहीं 
गलत भी हो सकता है 

वजूके
सोचते हैं करते हैं चलते हैं 
वजूकों के इशारों इशारों पर 
कुछ वजूकी चालें 

वजूकों के पास
शतरंज नहीं होता है 
सब सामान्य होता है
वजूके के लिये
वजूके के द्वारा 
वजूके के हित में
जो भी होता है 
वजूकों में
सर्वमान्य होता है 

वजूके
पेड़ नहीं होते हैं 
वजूकों का जंगल होना भी
जरूरी नहीं होता है 

वजूका
खेत में खड़ा कहीं
कहीं दूर से दिखाई देता है 
जिस पर कोई भी ध्यान नहीं देता है 

चिड़िया कौए
वजूकों पर 
बैठ कर बीट करते हैं 
वजूका कुछ नहीं कहता है 

वजूका ही शायद
एक 
इन्सान होता है 

सब को
समझ में नहीं आती हैं
इंसानों की कही हुई बातें 
इंसानों के बीच में हमेशा

वजूके
कुछ नहीं कहते हैं 

वजूके
वजूकों को समझते हैं 
बहुत अच्छी तरह से 

लेकिन ये बात अलग है 
वजूकों की
भीड़ नहीं होती है कहीं 

वजूके के बाद 
मीलों की दूरी पर
कहीं किसी खेत में 
एक और वजूका
अकेला खड़ा होता है 

‘उलूक’ 
तेरे करतबों से
दुनियाँ को क्या लेना देना 

हर किसी का
अपना एक वजूका 
पूरे देश में एक ही होता है 
लेकिन वजूका होता है। 

चित्र साभार: Clipartix

मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

बदतमीजी कर मगर तमीज से नहीं तो आजादी के मायने बदल जाते हैं

वो
करते
थे सुना

गुलामी
की बात

जो
कभी
आजाद
भी हो गये थे

कुछ
बच गये थे

आज
भी हैं
शायद
कहीं
इंतजार में

बहुत सारे
मर खप भी
कभी के गये थे

ऐसे ही
कुछ
निशान

आजादी
के कुछ

गुलामी
के कुछ

आज भी
नजर कहीं
आ ही जाते हैं

कुछ
खड़ी
मूर्तियाँ

शहर
दर शहर
चौराहों पर

कुछ
बैठे बूढ़े
लाठी लिये

खेतों के लिये
जैसे वजूका
एक हो जाते है

पर
कौए
फिर भी
बैठ ही
कभी जाते हैं

कोई
नहीं देखता
उस तरफ
कभी भी

मगर
साल
के किसी
एक दिन

रंग
रोगन कर
नये कर
दिये जाते हैं

देख सुन
पढ़ रहे होंं
सब कुछ

आज भी

आज को
उसी अंदाज में

देखो
उनकी
तरफ तो
नजर से
नजर मिलाते
नजर आ जाते हैं

बदतमीजी

बहुत
हो रही है
चारों तरफ

बहुत
ही तमीज
और बहुत
आजादी के साथ

बस
दिखता है
इन्ही को

समझते
भी ये
हैं सब

बाकी तो
आजाद हैं

कुछ
इधर से
निकलते
हैं उनके

कुछ
उधर से
भी निकल
जाते हैं ।