लिख और लिख कमाल का कुछ लिख
लिख और लिख बबाल सा कुछ लिख
कुछ लिख जरूर लिख
मगर कभी सवाल भी कुछ लिख
लिखेगा कुछ तभी तो सुनेगा भी कुछ तो लिख
कोई कहेगा कुछ लिखे पर
कोई सहेजेगा लिखे का कुछ इसलिए लिख
जमा मत कर
अन्दर कुछ लिख बाहर बेमिसाल कुछ लिख
चाहे किसी पेड़ किसी दीवार में लिख
डर मत बेधड़क कुछ लिख
अपने सभी सवाल कुछ लिख
जवाब में मिलेगा उधर से भी सवाल कुछ लिख
चढ़ेंगे शरीफ ही कलम लेकर
लिखेगा तब भी नहीं लिखेगा तब भी
ढाल रहने दे तलवार कुछ लिख
गुलाब लिखे कोई लिखे झडे पत्ते
गिन और बेहिसाब लिख
गिन और बेहिसाब लिख
दिमाग में भरे गोबर को साफ़ कर
थोड़ा कभी जुलाब कुछ लिख
थोड़ा कभी जुलाब कुछ लिख
लिखते हैं लोग मौसम लिखते हैं लोग बारिश
लिखते हैं पानी भी गुलाब भी और शराब भी
लाजवाब लिखते हैं और बेहिसाब लिखते हैं
पर देखा कर तेरे थोड़ा सा इतिहास लिखते ही
रोम रोम खड़े दिखते हैं और जवाब लिखते हैं
कोई नहीं फिर भी लड़खड़ा मत किताब लिख
लिखने से आजाद होता है आदमी बेहिसाब लिख
आदत है किसी को गुलामी की उसका हिजाब लिख
‘उलूक’ बेधड़क लिखता है धड़कनें
दिखता है लिखा
किसी के लिखे से है तुझे कुछ परेशानी
तो रहने दे अपनी ही हिसाब की कोई किताब लिख
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