उलूक टाइम्स: कमाल
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बुधवार, 10 जनवरी 2024

लिख कुछ भी लिख लिखे पर ही लगायेंगे मोहर लोग कुछ कह कर जरूर लिख कुछ भी लिख


लिख और लिख कमाल का कुछ लिख
लिख और लिख बबाल सा कुछ लिख
कुछ लिख जरूर लिख
मगर कभी सवाल भी कुछ लिख
लिखेगा कुछ तभी तो सुनेगा भी कुछ तो लिख
कोई कहेगा कुछ लिखे पर
कोई सहेजेगा लिखे का कुछ इसलिए लिख
जमा मत कर
अन्दर कुछ लिख बाहर बेमिसाल कुछ लिख
चाहे किसी पेड़ किसी दीवार में लिख
डर मत बेधड़क कुछ लिख
अपने सभी सवाल कुछ लिख
जवाब में मिलेगा उधर से भी सवाल कुछ लिख
चढ़ेंगे शरीफ ही कलम लेकर
लिखेगा तब भी नहीं लिखेगा तब भी
ढाल रहने दे तलवार कुछ लिख
गुलाब लिखे कोई लिखे झडे पत्ते
गिन और बेहिसाब लिख
दिमाग में भरे गोबर को साफ़ कर
थोड़ा कभी जुलाब कुछ लिख
लिखते हैं लोग मौसम लिखते हैं लोग बारिश
लिखते हैं पानी भी गुलाब भी और शराब भी
लाजवाब लिखते हैं और बेहिसाब लिखते हैं
पर देखा कर तेरे थोड़ा सा इतिहास लिखते ही
रोम रोम खड़े दिखते हैं और जवाब लिखते हैं
कोई नहीं फिर भी लड़खड़ा मत किताब लिख
लिखने से आजाद होता है आदमी बेहिसाब लिख
आदत है किसी को गुलामी की उसका हिजाब लिख
‘उलूक’ बेधड़क लिखता है धड़कनें
दिखता है लिखा 
किसी के लिखे से है तुझे कुछ परेशानी
तो रहने दे अपनी ही हिसाब की कोई किताब लिख
चित्र साभार: https://www.freepik.com/

सोमवार, 4 जनवरी 2021

फिर फटेंगे ज्वालामुखी फैलेगा लावा भी कहीं बैठा रह मत लिखा कर कोई कहे भी अगर लम्बी तान कर बैठा है

 



कलम अपनी
ढक्कन में
कहीं डाल कर बैठा है 

एक लम्बे समय से
आँखें निकाल कर बैठा है 

कान खुले हैं मगर
कटोरा भर तेल डाल कर बैठा है 

बड़बड़ाना जारी है
मुँह में रुमाल डाल कर बैठा है 

सारे पूछ कर
कुछ करने वालों को
सलाम मार कर बैठा है 

पूछने वालों के
कुछ अलग ही होते काम हैं
मान कर बैठा है ।

सब पूछते हैं
सबके पास कुछ है पूछने के लिये
खुद भी पूछना है
कुछ ठान कर बैठा है 

किसी के लिये
पूछने में भी लगा है
सुबह से लेकर शाम पूछने की दुकान पर
कुँडली मार कर बैठा है 

मोटी खाल
समझने में लगा है आजकल
मोटी खाल का मोटी खाल के साथ
संगत
कमाल कर बैठा है 

शरम बेच कर
मोटी खाल बेशरम
मोटी खालों के संगम के प्रबंधन का
बेमिसाल इंतजाम कर बैठा है 

बैठने बिठाने के चक्कर में बैठा
कोई कहीं जा बैठा है
कोई कहीं जा बैठा है 

‘उलूक’
अभी बहुत कुछ
सिखायेगी तुझे जिंदगी

इसी तरह बैठा रह
शाख पर किसी टूटी
श्मशान के सूखे पेड़ की 

शरम करना
छोड़ दे अभी भी
देख और मौज ले नंगई के
और कह
अट्टहास के साथ

नंगा एक
नंगों के साथ मिलकर
कितनी शान से
हमाम लूट कर बेमिसाल बैठा है ।

चित्र साभार: https://www.canstockphoto.com/


मंगलवार, 26 मई 2015

शतक इस साल का कमाल आस पास की हवा के उछाल का

फिर से
हो गया
एक शतक

और
वो भी पुराने
किसी का नहीं

इसी का
और इसी
साल का

जनाब
क्रिकेट नहीं
खेल रहा है
यहाँ कोई

ये सब
हिसाब है
लिखने
लिखाने के
फितूर के
बबाल का

करते नहीं
अब शेर कुछ
करने दिया
जाता भी नहीं
कुछ कहीं

जो भी
होता है
लोमड़ियों
का होता है
हर इंतजाम

दिखता
भी है
बाहर ही
बाहर से

बहुत ही
और
बहुत ही
कमाल का

हाथियों
की होती
है लाईन
लगी हुई
चीटिंयों
के इशारे पर

देखने
लायक
होता है
सुबह से लेकर
शाम तक

माहौल उनके
भारी भरकम
कदमताल का

मन ही मन
नचाता है
मोर भी ‘उलूक’

सोच सोच कर
मुस्कुराते हुऐ

जब मिलता
नहीं जवाब
कहीं भी
देखकर
अपने
आस पास

सभी के
पिटे पिटाये से
चेहरों के साथ

बंद आँख और
कान करके
चुप हो जाने
के सवाल का ।

चित्र साभार: www.dreamstime.com

मंगलवार, 16 जुलाई 2013

पूछ रहा है पता जो खुद है लापता

बहुत दिनों से
कई कई बार
सुन रहा था
नया आया है
एक हथियार
कह रहे थे लोग
बहुत ही काम
की चीज है
कहा जा रहा था
उसको सूचना
का अधिकार
एक आदमी
अपना दिमाग
लगाता है और
एक हथियार
अच्छा बना
ले जाता है
दूसरा आदमी
उसी हथियार
को सही जगह
पर फिट करना
सीख जाता है
कमाल दिखाता है
धमाल दिखाता है
ऎल्फ्रेड नोबल का
डायनामाईट कब
का ये हो जाता है
जिसने बनाया
होता है उसे
भी ये पता
नहीं चल
पाता है
उसके घर का
एक लापता
दस रुपिये
के पोस्टल
आर्डर से
उसको ढूँढने
के लिये उसको
ही आवेदन
थमा जाता है
उस बेचारे को
समझ में ही
नहीं आ पाता है
किस से पूछे
कैसे जवाब
इसका बनाया
जाता है कि वो
रहता है आता है
और कहीं भी
नहीं जाता है
तीस दिन तक
बस ये ही काम
बस हो पाता है
जवाब देने की
सीमा समाप्त
भी हो जाती है
जवाब भी तैयार
किसी तरह
कर लिया जाता है
किसी को भी
ये खबर नहीं
होती है कि
लापता इस
बीच फिर
लापता हो
जाता है
सूचना उसकी
कोई भी नहीं
दे पाता है ।

रविवार, 15 जुलाई 2012

कविता कमाल या बबाल

अखबार
में छपी
मेरी
एक कविता

कुछ
ने देख कर
कर दी
अनदेखी

कुछ
ने डाली
सरसरी नजर

कुछ
ने की
कोशिश 
समझने की

और
दी 
प्रतिक्रिया

जैसे
कहीं पर
कुछ हो गया हो

किसी
का जवान लड़का 
कहीं खो 
गया हो

हर
किसी 
के भाव

चेहरे पर 
नजर
आ जा रहे थे

कुछ 
बता रहे थे

कुछ 
बस खाली

मूँछों
के पीछे
मुस्कुरा रहे थे

कुछ 
आ आ कर
फुसफुसा रहे थे

फंला फंला 
क्या
कह रहा था

बता के
भी
जा रहे थे

ऎसा 
जता रहे थे

जैसे
मुझे 

मेरा कोई
चुपचाप 
किया हुआ
गुनाह 
दिखा रहे थे

श्रीमती जी 
को मिले
मोहल्ले के 
एक बुजुर्ग

अरे 
रुको 
सुनो तो 
जरा

क्या 
तुम्हारा वो
नौकरी वौकरी
छोड़ आया है

अच्छा खासा 
मास्टर
लगा तो था
किसी स्कूल में

अब क्या 
किसी
छापेखाने 
में
काम पर 
लगवाया है

ऎसे ही 
आज

जब अखबार में
उसका नाम 
छपा हुआ 
मैंने देखा

तुम 
मिल गयी
रास्ते में 
तो पूछा

ना 
खबर थी वो

ना कोई 
विज्ञापन था

कुछ 
उल्टा सुल्टा
सा
लिखा था

पता नहीं 
वो क्या था

अंत में 
उसका
नाम भी 
छपा था

मित्र मिल गये
बहुत पुराने

घूमते हुवे 
उसी दिन
शाम को 
बाजार में

लपक 
कर आये
हाथ मिलाये 
और बोले

पता है 
अवकाश पर
आ गये हो

आते ही 
अखबार
में छा गये हो

अच्छा किया
कुछ छ्प छपा
भी जाया करेगा

जेब खर्चे के लिये
कुछ पैसा भी
हाथ
में आया करेगा

घर 
वापस पहुंचा
तो

पड़ोसी की
गुड़िया आवाज
लगा रही थी

जोर जोर से
चिल्ला रही थी

अंकल 
आप की
कविता आज के
अखबार में आई है

मेरी मम्मी 
मुझे आज 
सुबह दिखाई है

बिल्कुल 
वैसी ही थी
जैसी मेरी 
हिन्दी की
किताब में 
होती है

टीचर 
कितनी भी
बार समझाये 

लेकिन
समझ से 
बाहर होती है

मैं उसे 
देखते ही
समझ गयी थी 

कि ये जरूर 
कोई कविता है

बहुत ही 
ज्यादा लिखा है

और
उसका 
मतलब भी
कुछ नहीं 
निकलता है।

शुक्रवार, 15 जून 2012

कुछ नहीं

अच्छा तो फिर 
आज क्या कुछ 
नया यहाँ लिखने
को ला रहे हो
या रोज की तरह
आज भी हमको
बेवकूफ बनाने
फिर जा रहे हो
ये माना की
बक बक आपकी
बिना झक झक
हम रोज झेल
ले जाते हैं
एक दिन भी नागा
फिर भी आप
कभी नहीं करते
कुछ ना कुछ
बबाल ले कर
यहाँ आ जाते हैं
लगता है आज कोई
मुद्दा आपके हाथ
नहीं आ पाया है
या फिर आपका
ही कोई खास
फसाद कहीं कुछ
करके आया है
कोई बात नहीं
कभी कभी ऎसा
भी हो ही जाता है
मुर्गा आसपास
में होता तो है
पर हाथ नहीं
आ पाता है
आदमी अपनी
जीभ से लाख
कोशिश करके भी
अपनी नाक को
नहीं छू पाता है
लगे रहिये आप
भी कभी कमाल
कर ले जायेंगे
कुछ ऎसा लिखेंगे
कि उसके बाद
एक दो लोग
जो कभी कभी
अभी इधर को
आ जाते हैं
वो भी पढ़ने
नहीं आयेंगे
कुछ कहना लिखना
तो दूर रहा
सामने पढ़ ही गये
किसी रास्ते में
देखेंगे आपको जरूर
पर बगल की गली से
दूसरे रास्ते में खिसक
कर चले जायेंगे
बाल बाल बच गये
सोच सोच कर
अपने को बहलायेंगे।

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

शब्द

शब्द मीठे होते हैं
कानों से होते हुवे
दिल में उतरते है
शहद घोल घोल के

शब्द ही खंजर से
तीखे भी हो जाते हैं
ले आते हैं
ज्वार और भाटे

सभी के पास ही
तो रखे होते हैं
अपने अपने शब्द

हर कोई ढाल
नहीं पाता है
सांचों में अपने
शब्दों को हमेशा

कोई उस्ताद होता है
दूसरों के शब्दों से
अपने को बचाने में
बना लेता है एक
ढाल शब्दों की

एक ही शब्द
देता हैं जिंदगी
किसी को
वही सिखाता है
बंदगी किसी को

किसी के लिये
हो सकता है
कमाल एक शब्द
कोई बना ले जाता
है जाल एक शब्द

तूफान भी अगर
लाता है एक शब्द
तो मलहम भी तो
लगाता है कभी
एक शब्द ।