लहर कब उठेगी पता नहीं होता है
जरूरी नहीं उसके उठने के समय हाथ में किसी के कैमरा होता है
शेर शायरी लिखने की बातें हैं शायरों की
ऐसा सभी सुनते हैं बहुतों को पता होता है
बहकती है सोच जैसे पी कर शराब
सोचने वाला पीने पिलाने की बस बातें सोचता रहता है
कुछ आ रहा था मौज में
लिख देना चाहिये सोच कर लिखना शुरु होता है
सोच कब मौज में आयी
सोचा हुआ कब बह गया होता है किसे पता होता है
रहने दे चल कुछ फिर और डाल साकी सोच के गिलास में
शराब और गिलास का रिश्ता हमेशा ही बचा होता है
कोई गिला कोई शिकवा नहीं बताता है अखबार वाला भी
कभी पढ़ने में सुनने में ऐसा आया भी नहीं होता है
‘उलूक’ की आदत है इधर की उधर करने की
जैसा कहावतों में किसी की आदत के लिये कहा होता है
बेहयाई बेहया की कभी किसी एक दिन लिख भी दे
रोज लिखना शरीफों की खबर ठीक नहीं होता है
रोज लिखना शरीफों की खबर ठीक नहीं होता है
किसी दिन शरीफों के मोहल्ले में
शराफत से कुछ नहीं बोल देना भी ठीक होता है।
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