कल
के लिये
आज
कुछ
इतिहास
जो
सच है
बस
उसे
छोड़कर
कुछ भी
चलेगा
होनी चाहिये
मगर
कुछ ना कुछ
शुद्ध
बिना मिलावट
की
कोई भी
आसपास की
रद्दी
की
टोकरी
में
फेंकी गयी
ज्यादा
चलेगी
ही नहीं
बकायदा
दौड़ेगी
होनी चाहिये
एक
खूबसूरत
समय की
बदसूरत
बकवास
सारे
आबंटित
कामों को त्याग
विशेष
काम पर लगे
सारे
आसपास के
तगड़े घोड़ों
की
प्रतिस्पर्धाएं
अर्जुन बने
चार सौ बीसी
के
धनुष
मक्कारी
के तीर
हवा में
ध्यान लगाये
समाधिस्थ
नजर आते
मछलियों
की आँखें
ढूँढते
कलयुगी
तीरंदाज
सोये हुऐ
दिन दोपहरी
बिना पिये
नशे में
शुद्ध हवा
पानी वाले पहाड़
बर्फ से लबालब
खासमखास
सिकुड़ति
हुई
पंक्तियों से
भागते
लम्बी
होती हुई
पंक्तियों
पर
पर
जमा
होते हुऐ
शूरवीर
देखिये
अपने
आस पास
‘उलूक’
रात के प्रहरी
बुरी बात है
करना
दिन
की
बात ।