1947- 22/09/2018 |
शब्द
नहीं होते हैं
सब कुछ
बताने के लिये
किसी के बारे में
थोड़ा
कम पड़ जाते हैं
थोड़े से
कुछ लोग
भीड़ में
होते हुऐ भी
भीड़
नहीं हो जाते हैं
समुन्दर के
पानी में
मिल चुकी
बूँद
होने के
बावजूद भी
दूर से
पहचाने जाते हैं
जिंदगी भर
जन सरोकारों
के लिये
संघर्ष करने
वालों के चेहरे ही
कुछ
अलग हो जाते हैं
अपने
मतलब के लिये
भीड़ खरीद/
बेच/ जुटा कर
कहीं से कहीं
पहुँच जाने वाले
नहीं पा सकते हैं
वो मुकाम
जो
कुछ लोग
अपनी सोच
अपने सत्कर्मों से
अपनी बीनाई
से पा जाते हैं
एक
शख्सियत
यूँ ही नहीं
खींचती है
किसी को
किसी
की तरफ
थोड़े से
लोग ही
होते हैं
कुछ अलग
बस
अपने लिये
नहीं जीने
वाले
ऐसे ही लोग
जब
महफिल से
अचानक
उठ कर
चले जाते हैं
सरकारी
अखबार
वालों को भी
कुछ
लिखने लिखाने
की याद
दिला कर जाते हैं
बहुत कमी
खलेगी आपकी
'डा0 शमशेर सिंह बिष्ट'
कुछ
सरोकार
रखने वालों
को हमेशा
अल्विदा नमन
विनम्र श्रद्धांजलि
‘उलूक’
कुछ लोग
बना ही
जाते हैं
कुछ रास्ते
अलग से
जिसपर
सोचने वाले
सरोकारी
हमेशा ही
आने वाले
समय में
आते हैं
और जाते हैं ।