उलूक टाइम्स: सीढ़ी
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बुधवार, 5 सितंबर 2018

लिखना जरूरी हो जा रहा होता है जब किसी के गुड़ रह जाने और किसी के शक्कर हो जाने का जमाना याद आ रहा होता है

नमन
उन सीढ़ियों को
जिस पर चढ़ कर
बहुत ऊपर तक
कहीं पहुँच लिया
जा रहा होता है

नमन
उन कन्धों को
जिन को
सीढ़ियों को
टिकाने के लिये
प्रयोग किया
जा रहा होता है

नमन
उन बन्दरों को
जिन्हेंं हनुमान
बना कर
एक राम
सिपाही की तरह
मोर्चे पर
लगा रहा होता है

नमन
उस सोच को
जो गाँधी के
तीन बन्दरों
के जैसा

एक में ही
बना ले जा
रहा होता है

नमन
और भी हैं
बहुत सारे हैं
करने हैं

आज ही
के शुभ दिन
हर साल की तरह

जब
अपना अपना सा
लगता दिन
बुला रहा होता है

कैसे करेगा
कितने करेगा
नमन ‘उलूक’

ऊपर
चढ़ गया
चढ़ जाने के बाद
कभी नीचे को
उतरता हुआ
नजर ही नहीं
आ रहा होता है

गुरु
मिस्टर इण्डिया
बन कर ऊपर
कहीं गुड़
खा रहा होता है

चेलों
का रेला

वहीं
सीढ़ियाँ पकड़े
नीचे से

शक्कर
हो जाने के
ख्वाबों के बीच

कहीं
सीटियाँ बजा
रहा होता है।

चित्र साभार: www.123rf.com