कल
की दावत में
की दावत में
बस लोमड़ी दिखी थाली के साथ
पर
नजर नहीं आया
नजर नहीं आया
कहीं बगुला अपनी सुराही के साथ
विष्णु शर्मा
तुम्हारा पञ्चतन्त्र
इस जमाने में पता नहीं क्यों
थोड़ा सा कहीं पर कतरा रहा है
पैंतरे
दिखा दिखा कर के नये
नये छेदों से पता नहीं
कहाँ से कहाँ घुस जा रहा है
कुछ दिनों से
क्योंकि
लोमड़ी और बगुला साथ नजर आ रहे हैं
लोमड़ी और बगुला साथ नजर आ रहे हैं
दावत में
एक दूसरे को अपने अपने
घर भी नहीं बुला रहे हैं
घर भी नहीं बुला रहे हैं
किसी तीसरी जगह
साथ साथ दोनो अपनी उपस्थिति
जरूर दर्ज करा रहे हैं
लोमड़ी
अपनी थाली ले कर चली आ रही है
बगुला भी
सुराही दबाये बगल में
दिख जा रहा है
ना बगुला
अपनी सुराही
लोमड़ी की तरफ बढ़ाता है
ना ही लोमड़ी
बगुले को
थाली में खाने के लिये बुलाती है
पर मजे की बात है
दोनो ही मोटे होते जा रहे हैं
दोनो ही
कुछ ना कुछ लेकिन जरूर खा रहे हैं
बहुत
समझदार
हो गये हैं सारे जानवर जंगल के
विष्णु शर्मा जी
फिर से आ जाओ
नया पञ्चतन्त्र लिखो और देख लो
जंगल राज
कैसे जंगल से
आदमी में घुस के आ गया है
और
जानवर
आदमी बन के आदमी के अंदर
पूरा का पूरा छा गया है ।
चित्र साभार: https://hubpages.com/