उलूक टाइम्स: थाली
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सोमवार, 4 मार्च 2019

कुछ नहीं कहने वाले से अच्छा कुछ भी कह देने वाले का भाव एकदम उछाल मारता हुवा देखा जाता है

तबीयत
ठीक रहती है
तो

बड़ा झूठ
बहुत आसानी से
पचाया जाता है

बकवास
लिखी जाती रहती है
तो


सच भी
नंगा होने में शरमाता है

जिंदगी
निकलती जाती है

झूठ ही
सबसे बड़ा
सच होता है
समझ में आता जाता है

हर कोई
एक नागा साधू होता है

कपड़े
सब के पास होते हैंं
तो

दिखाने भी होते हैं

इसीलिये
पहन कर आया जाता है

बहुत कुछ
होता है जो
कहीं भी नहीं
पाया जाता है

नहीं होना ही
सबसे अच्छा होता है

बिना
पढ़ा लिखा भी
बहुत कुछ
समझा जाता है

साँप
के दाँत
तोड़ कर
आ जाता है

बत्तीस
नहीं थे
छत्तीस हैं
बता कर जाता है

साँप
तो

मार खाने
के बाद
गायब हो जाता है

साँपों की
बात करने वाला

जगह जगह
मार खाता है
गरियाया जाता है

लकीर
पीटने वाला
सब से समझदार
समझा जाता है
माना जाता है

पीटते पीटते
फकीर हो जाता है

ऊपर वाला भी
देखता रह जाता है

एक जगह
खड़ा रहने वाला

हमेशा शक की
नजरों से देखा जाता है

थाली में
बैगनों के साथ
लुढ़कते रहने वाला ही

सम्मानित
किया जाता है

‘उलूक’
कपड़े लत्ते की
सोचते सोचते

गंगा नहाने
नदी में उतर जाता है

महाकुँभ
की भीड़ में
खबरची के
कैमरे में आ जाता है
पकड़ा जाता है

घर में
रोज रोज
कौन कौन
नहाता है

अखबार
में नहीं
बताया जाता है

बकवास
करते रहने से

खराब
तबीयत का
अन्दाज नहीं
लगाया जाता है

तबीयत
ठीक रहती है
तो

एक
बड़ा झूठ भी
आसानी से
पचाया जाता है

चित्र साभार: http://hatobuilico.com

शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

क्षमा विष्णु शर्मा : संशोधन पञ्चतन्त्र के लिये


कल
की दावत में 
बस लोमड़ी दिखी थाली के साथ

पर
नजर नहीं आया 
कहीं बगुला अपनी सुराही के साथ 

विष्णु शर्मा 
तुम्हारा पञ्चतन्त्र 
इस जमाने में पता नहीं क्यों 
थोड़ा सा कहीं पर कतरा रहा है 

पैंतरे 
दिखा दिखा कर के नये 
नये छेदों से पता नहीं 
कहाँ से कहाँ घुस जा रहा है 

कुछ दिनों से 
क्योंकि
लोमड़ी और बगुला साथ नजर आ रहे हैं 

दावत में 
एक दूसरे को अपने अपने
घर भी नहीं बुला रहे हैं 

किसी तीसरी जगह 
साथ साथ दोनो अपनी उपस्थिति 
जरूर दर्ज करा रहे हैं 

लोमड़ी
अपनी थाली ले कर चली आ रही है 

बगुला भी 
सुराही दबाये बगल में 
दिख जा रहा है 

ना बगुला 
अपनी सुराही 
लोमड़ी की तरफ बढ़ाता है 

ना ही लोमड़ी
बगुले को 
थाली में खाने के लिये बुलाती है 

पर मजे की बात है 
दोनो ही मोटे होते जा रहे हैं 

दोनो ही 
कुछ ना कुछ लेकिन जरूर खा रहे हैं 

बहुत 
समझदार 
हो गये हैं सारे जानवर जंगल के 

विष्णु शर्मा जी 
फिर से आ जाओ 
नया पञ्चतन्त्र लिखो और देख लो 

जंगल राज 
कैसे जंगल से 
आदमी में घुस के आ गया है 

और 
जानवर 
आदमी बन के आदमी के अंदर 
पूरा का पूरा छा गया है । 

चित्र साभार: https://hubpages.com/

शनिवार, 9 जून 2012

उल्लू की रसोई

रोज
कोशिश
करता हूँ

कुछ
ना कुछ
पका ही
ले जाता हूँ

खुद
खाने के
लिये नहीं
यहाँ परोसने
के लिये
ले आता हूँ

कुछ
खाने वाले
खीर को
आईसक्रीम
बताते हैं

चीनी
डाली है
कहने पर
नमक तेज
डाल दिया
तक
कह जाते हैं

अब
रसोईया
वही तो
पका पायेगा

जिस
चीज का
कच्चा माल
अपने आस पास
उसे मिल जायेगा

खाने
वाले को पसंद
आये तो ठीक
नहीं भी आये
तब भी परोस तो
दिया ही जायेगा

कोई
थोड़ा खायेगा
कोई पूरा
खा जायेगा

कोई कोई
थाली को
सरका कर के
किनारे से
निकल जायेगा

किसी के मन
बहुत ज्यादा
भा गया
खाना मेरा
तो रोटियाँ
अपनी थाली
के लिये भी
उठा ले जायेगा
मेरा क्या जायेगा?