आदमी
घूमता है
तारा बन
अपने ही
बनाये
सौर मण्डल
में
घूमते घूमते
भूल
जाता है
कि
घूमना
घूमना
है उसे
अपने ही
सूरज के
चारों ओर
जिंदगी के
हर हिस्से
के सूरज
नज़र आते
हैंं उसे
अलग अलग
घूमते घूमते
भूल
जाता है
चक्कर लगाना
और
लगने लगता
है उसे
वो नहीं
खुद सूरज
घूम
रहा है
उसके
ही
ही
चारों
ओर ।