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गुरुवार, 13 जून 2013

सब कुछ कहाँ कहा फिर भी साढे़ तीन का सैकड़ा हो गया

(तीन सौ पचासवीं
पोस्ट 
जो हमेशा की तरह
एक सत्य घटना
पर आधारित है )


स्वीकृत
धन का

एक हिस्सा

कुछ
अलग तरह
से
जिसको खर्च

किया जाता है

कंटिंजेन्सी

कहलाता है

गूगल ट्रांस्लेट

हिन्दी में जिसे
आकस्मिकता
होना बतलाता है

 बहुत ज्यादा

पढ़ लिख लिया
पढ़ाना लिखाना
भी सीख लिया

हाय
किया तो

तूने क्या किया

जब तू
ये पूछने

के लिये जाता है

आक्स्मिक
व्यय
को
कैसे और

किसमें
खर्च
किया
जाता है


आकस्मिक
व्यय
करने
के लिये


कुछ ऎडवांस

लिया जाता है

जिसका

मन में

आ गया तो

कभी बाद में

समायोजन
दे
दिया जाता है

अब
कौन
तुझसे

पूछने
के लिये

आता है

कि तू

उस पैसे से
चाय जलेबी क्यों
खा ले जाता है

कर लिया कर

जो भी तेरे
मन में आता है

रसीद लेने

के लिये तो
स्टेशनरी
की दुकान 
में ही तो
जाता है


मत
सोचा कर
कि

किसी से
पूछने में

तेरा
क्या जाता है


अपने अपने
खर्च
करने
के ढंग को

कोई खुल के
कहाँ बताता है

तेरे से
अगर
इतना 
छोटा सा
समायोजन

ही नहीं हो पाता है

तो काहे
तू इस प्रकार

की जिम्मेदारी

अपने 
कंधों
पर उठाता है


छि :

अफसोस
हो 
रहा है
मुझे तेरी

काबीलियत पर

एक
कंटिजेन्सी
को
तक तू
जब ठिकाने

नहीं लगा पाता है ।