S.k. Srivastava: Joshi ji ajkal apki kavitayen nahi aa rahi hai.
वो
आजकल
आजकल
नहीं आ रही है
जो बकवास आपको
कविता नजर आ रही है
कविता नजर आ रही है
पता ही
नहीं लग पा रहा है
नहीं लग पा रहा है
कहाँ जा रही है
रोज ही
कुछ ना कुछ
देने आ जाती थी
कुछ दिन से लग रहा है
सब नहीं दे जाती थी
कुछ कुछ छुपा भी ले जाती थी
वैसे वो
आये या ना आये
आये या ना आये
बहुत अंतर नहीं आता है
आती है तो
कोई ना कोई
कुछ ना कुछ कह जाता है
नहीं आती है
तब भी खाना पच ही जाता है
तब भी खाना पच ही जाता है
अब
जब आपने कहा
जब आपने कहा
वो आजकल नहीं आ रही है
हमे भी लगा
वाकई वो नहीं आ रही है
वाकई वो नहीं आ रही है
फिर अगर
वो नहीं आ रही है
वो नहीं आ रही है
तो पता तो लगना ही चाहिये
कि वो
कहाँ जा रही है
कहाँ जा रही है
अब
आप ही
पता लगा दीजिये ना
पता लगा दीजिये ना
कुछ हमारा भी भला हो जायेगा
कुछ होगा या नहीं
ये बाद में फिर देखा जायेगा
कम से कम
आप की तरह कोई मेहरबान
आप की तरह कोई मेहरबान
उसको पकड़ कर
वापिस मेरे पास ले आयेगा
वापिस मेरे पास ले आयेगा
वापिस आ गयी
फिर से
आने जाने लग जायेगी
आने जाने लग जायेगी
जैसे पहले
आया जाया कर रही थी
आया जाया कर रही थी
करना शुरु हो जायेगी
फिर
आप भी नहीं कह पायेंगे
आप भी नहीं कह पायेंगे
वो आजकल
क्यों नहीं आ रही है
क्यों नहीं आ रही है
क्या करें कैसे लिखें
बकवास ही सही
जब वो
हमको ही आजकल
कुछ नहीं बता रही है
'उलूक' की बकवास
कविता
कही जा रही है
बिना बात इतरा रही है।
चित्र साभार: https://sites.google.com/
बकवास ही सही
जब वो
हमको ही आजकल
कुछ नहीं बता रही है
'उलूक' की बकवास
कविता
कही जा रही है
बिना बात इतरा रही है।
चित्र साभार: https://sites.google.com/