उलूक टाइम्स

शनिवार, 13 जुलाई 2013

विभीषण या हनुमान बता किसको है चाहता

सारा का सारा  जैसे का तैसा
नहीं सब कह दिया
है जाता

बहकते और भड़कते हुऎ में से
कहने लायक ही उगल दिया
है जाता

कहानिया
तो बनती ही हैं 
मेरे यहाँ भी तेरे यहाँ भी 

बारिशों का मौसम भी होता है माना 
सैलाब लेकिन हर रोज ही नहीं
है आता 

हर आँख
देखती है एक ही चीज को 
अपने अलग अंदाज से 

मुझे दिखता है कुछ
जो 
उसको कुछ और ही
 है नजर आता

राम की कहानी है एक पुरानी 
विभीषण
सुना रावण को छोड़ राम के पास 
है चला जाता 

क्या सच था ये वाकया
तुलसी से कहाँ अब ये किसी से
है पूछा जाता

आज भी तो दिखता है विभीषण 
उधर जाता इधर आता

राम के काम में
है आता
रावण के भी काम भी
है लेकिन आता 

हनुमान जी
क्या कर रहे होते होंगे आज
जिसकी समझ में 
आ गयी होगी मेरी ये बात 

वो भी कुछ यहाँ 
कहाँ कह कर चला
है जाता 

क्योंकि
सारा का सारा 
जैसे का तैसा नहीं सब कह दिया
है जाता ।