क्या ये
जरूरी है
कि
कोई
महसूस करे
एक
शाम की
उदासी
और
पूछ ही ले
बात ही
बात में
शाम से
कि
वो इतनी
उदास क्यों है
क्या
ये भी
जरूरी है
कि
वो
अपने
हिस्से की
रोशनी
की बात
कभी
अपने
हिस्से के
अंधेरे से
कर ही ले
यूं ही
कहीं
किसी
एक खास
अंदाज से
शायद
ये भी
जरूरी नहीं
कर लेना
दिन की
धूप को
पकड़ कर
अपनी मुट्ठी में
और
बांट देना
टुकड़े टुकड़े
फिर
रात की
बिखरी
चाँदनी
को बुहारने
की कोशिश
में देखना
अपनी
खाली हथेली
में रखे हुऐ
चंद अंंधेरे
के निशान
और
खुद ही
देखना
करीने से
सजाने की
जद्दोजहद
में कहीं
फटे
कोने से
निकला हुआ
खुद की
जिंदगी
का एक
छोटा सा कोना
कहाँ
लिखा है
अपनी
प्रायिकताओं से
खुद
अपने आप
जूझना
और
अपने
हिसाब से
तय करना
अपनी जरूरते
होती रहे
शाम उदास
आज
की भी
और
कल
की भी
बहुत
कुछ
होता है
करने
और
सोचने
के लिये
बताया हुआ
खाली
इन
बेकार की
बातों को ही
क्यों है
रोज
का रोज
कहीं ना कहीं
इसी
तरह से
नोचना !
जरूरी है
कि
कोई
महसूस करे
एक
शाम की
उदासी
और
पूछ ही ले
बात ही
बात में
शाम से
कि
वो इतनी
उदास क्यों है
क्या
ये भी
जरूरी है
कि
वो
अपने
हिस्से की
रोशनी
की बात
कभी
अपने
हिस्से के
अंधेरे से
कर ही ले
यूं ही
कहीं
किसी
एक खास
अंदाज से
शायद
ये भी
जरूरी नहीं
कर लेना
दिन की
धूप को
पकड़ कर
अपनी मुट्ठी में
और
बांट देना
टुकड़े टुकड़े
फिर
रात की
बिखरी
चाँदनी
को बुहारने
की कोशिश
में देखना
अपनी
खाली हथेली
में रखे हुऐ
चंद अंंधेरे
के निशान
और
खुद ही
देखना
करीने से
सजाने की
जद्दोजहद
में कहीं
फटे
कोने से
निकला हुआ
खुद की
जिंदगी
का एक
छोटा सा कोना
कहाँ
लिखा है
अपनी
प्रायिकताओं से
खुद
अपने आप
जूझना
और
अपने
हिसाब से
तय करना
अपनी जरूरते
होती रहे
शाम उदास
आज
की भी
और
कल
की भी
बहुत
कुछ
होता है
करने
और
सोचने
के लिये
बताया हुआ
खाली
इन
बेकार की
बातों को ही
क्यों है
रोज
का रोज
कहीं ना कहीं
इसी
तरह से
नोचना !