उलूक टाइम्स: धूप
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गुरुवार, 21 जून 2018

कतारें खूबसूरत सारी की सारी बहुत सारी बस आज ऐसे ही बनानी हैं

तपती रेत है
बहुत तेज धूप है
हैरान नहीं होना है
रोज की परेशानी है

यहाँ की रेत की
बात यहीं तक रखनी है
किसी को नहीं बतानी है

बस हरी दूब लानी है

बहुत जगह उगी है
बहुत सारी उगी है
हरी हरी दूब है
पानी नहीं होने की
बात ही बेमानी है

बहुत तेज जोरों से
प्यास ही तो लगी है

धैर्य रख
ज्ञानी हैं विज्ञानी हैं
बस यहीं कहीं हैं
सच बात है
नहीं कोई कहानी है

करना कुछ नहीं है
सपने उगाने तो हैं
पर बोना कुछ नहीं हैं
बीज ही नहीं हैं

देखनी रेत है
दूब बस सोचनी है
कौन सा उगानी है

पानी नहीं है
पीना कुछ नहीं है

प्यास
बस एक सोच है
बातें की बहती हुई
नदी एक दिखानी है

एक साफ
चादर ही तो लानी है
गरम रेत
के ऊपर से बिछानी है

दूब हरी हरी
दूर से कहीं से भी
लाकर फैलानी है
बोनी नहीं है
उगानी नहीं है
बस एक दिन
की बात ही है
कुछ नहीं होना है
सूखनी है सुखानी है

गाय भैंस बकरी हैं
कम ज्यादा
कुछ भी मिले
बिकनी बिकानी है

कुछ खड़े होना है
कुछ देर सोना है
इसको उसको सबको
एक साथ एक बार
एक ही बात बतानी है

चोंच नीचे लानी है
पूँछ ऊपर उठानी है
‘उलूक’
कुछ भी कह देने की
तेरी आदत पुरानी है

भीड़ नहीं कहते हैं
बहुत सारे लोगों को

दूर तलक दूर दूर
कतारें खूबसूरत
सारी की सारी
बहुत सारी
बस आज
और आज
ऐसे ही
बनानी हैं।

चित्र साभार: www.123rf.com

शुक्रवार, 19 सितंबर 2014

कुर्सियों में बैठ लेने का मतलब बातें करना ही नहीं होता है हमेशा

एक तरफ
रोज ही
आकर
बैठ जाना
कुछ लोगों का
एक दूसरे के
अगल बगल
की कुर्सियों में


और सेंकना
दोपहर की
तेज धूप में
सीमेंट के खम्बों
की छाँव को

वो इसलिये नहीं
कि कुर्सियाँ
खाली हैं
और कहीं
बैठने की जगह
भी नहीं है 
उनके लिये 

या फिर वो
सब मित्र हैं
एक दूसरे के

उनकी
मजबूरी है
एक दूसरे के
साथ बैठना

और करना
देश और
देशभक्ति
की बातें

या बताना
अपनी अपनी
ईमानदारी की
परी कथाऐं
एक दूसरे को

कोई नहीं
सुनता है
किसी की

सबको
कुछ ना कुछ
कहना होता है
कहते रहना होता है

और
सबके कान
लगे होते हैं
एक दूसरे के
मुँह से निकलती
हुई बातों में

जैसे पता नहीं
किसी एक क्षण
किसी की जबान
फिसल जाये

और
उसके अपने
मतलब का
कुछ
निकल कर
हाथ में आ जाये

और दूसरी ओर
कुछ लोग
और होते हैं

जिनको
कहीं बैठना
नहीं होता है

बस
देखना होता है
कुर्सियों को

पहले खाली
फिर कुछ बैठे
हुऐ लोगों के साथ
रोज ही

जैसे उनके
भविष्य की चिंता
का बोझ लिये हुऐ
कुर्सियाँ लगी होती हैं

बहुत सी खाली
जगहों पर
या इसी तरह
कई और दूसरी
जगहों पर भी

जो रोज रख
दी जाती हैं
सुबह सुबह बाहर

और संभाल
दी जाती है
शाम को
आने वाले कल
के दिन के लिये
फिर से बाहर
निकाल कर
रखने के लिये ।

चित्र साभार: http://www.canstockphoto.com/

शनिवार, 24 मई 2014

धुंध की आदत पड़ जाये तो साफ मौसम होना अच्छा नहीं होता है

कुछ होता है
घने कोहरे के
पीछे से छुपा हुआ
नजर नहीं आने
का मतलब
कुछ नहीं होना
कभी भी नहीं होता है
कोहरा हटने के
बाद की तेज धूप
खोल देती है
सारे के सारे राज
एक ही साथ
पेड़ पौँधे नदी पहाड़
सब अपनी जगह पर
उसी तरह होते हैं
जैसा कोहरा लगने से
पहले हुआ करते हैं
कोहरे के होने
या ना होने से
उस चीज का होना
या ना होना
अभिव्यक्त नहीं होता है
जो कोहरे के इस पार
या उस पार होता है
कोहरे की आदत
हो जाने वाले के लिये
तेज धूप का होना
जरूर एक भ्रम होता है
चीजों का बहुत
नजदीक से बहुत
साफ साफ दिखना
ही सबसे बड़ा
एक वहम होता है ।

रविवार, 8 दिसंबर 2013

जरूरी जो होता है कहीं जरूर लिखा होता है

क्या ये
जरूरी है

कि

कोई
महसूस करे

एक
शाम की
उदासी

और

पूछ ही ले

बात ही
बात में
शाम से

कि

वो इतनी
उदास क्यों है

क्या
ये भी
जरूरी है

कि

वो
अपने
हिस्से की

रोशनी
की बात

कभी

अपने
हिस्से के
अंधेरे से
कर ही ले

यूं ही

कहीं
किसी
एक खास
अंदाज से

शायद

ये भी
जरूरी नहीं

कर लेना

दिन की
धूप को
पकड़ कर
अपनी मुट्ठी में

और

बांट देना
टुकड़े टुकड़े

फिर
रात की
बिखरी

चाँदनी
को बुहारने
की कोशिश
में देखना

अपनी
खाली हथेली
में रखे हुऐ
चंद अंंधेरे
के निशान

और
खुद ही
देखना

करीने से
सजाने की
जद्दोजहद
में कहीं

फटे
कोने से
निकला हुआ

खुद की
जिंदगी
का एक
छोटा सा कोना

कहाँ
लिखा है

अपनी
प्रायिकताओं से

खुद
अपने आप
जूझना

और

अपने
हिसाब से
तय करना
अपनी जरूरते

होती रहे
शाम उदास

आज
की भी

और
कल
की भी

बहुत
कुछ
होता है

करने
और
सोचने
के लिये
बताया हुआ

खाली

इन
बेकार की
बातों को ही

क्यों है
रोज
का रोज
कहीं ना कहीं

इसी
तरह से
नोचना !

बुधवार, 28 अगस्त 2013

मैने तो नहीं पढ़ी है क्या आप के पास भी गीता पड़ी है

कृष्ण
जन्माष्टमी
हर वर्ष
की तरह
इस बार
भी आई है

आप
सबको
इस पर्व
पर बहुत
बहुत
बधाई है

बचपन से
बहुत बार
गीता के
बारे में
सुनता
आया था

आज फिर
से वही
याद लौट
के आई है

कोशिश की
कई बार
पढ़ना शुरू
करने की
इस ग्रन्थ को
पर कभी
पढ़ ही
नहीं पाया

संस्कृत में
हाथ तंग था
हिन्दी भावार्थ
भी भेजे में
नहीं घुस पाया

आज
फिर सोचा
एक बार
यही कोशिश
फिर से
क्यों नहीं
की जाये

 दिन
अच्छा है
अच्छी
शुरुआत
कुछ आज
ही कर
ली जाये

जो
समझ
में आये
आत्मसात
भी कर
लिया जाये

कुछ
अपना और
कुछ अपने
लोगों का
भला कर
लिया जाये

गीता थी
घर में एक

देखी कहीं
पुत्र से पूछा

पुस्तकालय
के कोने से
वो एक
पुरानी पुस्तक
उठा के
ले आया

कपडे़ से
झाड़ कर
उसमें
जमी हुई
धूल को
उड़ाया

पन्नो के
भीतर
दिख रहे थे

कागज
खाने वाले
कुछ कीडे़
उनको
झाड़ कर
भगाया

फिर
सुखाने को
किताब को
धूप में
जाकर के
रख आया

किस्मत
ठीक नहीं थी
बादलों ने सूरज
पर घेरा लगाया

कल को
सुखा लूंगा
बाकी
ये सोच
कर वापस
घर के अंदर
उठा कर
ले आया

इतनी
शुरुआत
भी क्या
कम है

महसूस
हो रहा है
अभी भी
इच्छा शक्ति
में कुछ दम है

पर आज
तो मजबूरी है
धूप किताब
को दिखाना
भी बहुत
जरूरी है

आप के
मन में
उठ रही
शंका का
समाधान
होना भी
उतना ही
जरूरी है

जिस
गीता को
आधी जिंदगी
नहीं कोई
पढ़ पाया हो

उसके लिये
गीता को
पढ़ना इतना
कौन सा
जरूरी हो
आया हो

असल में
ये सब
आजकल
के सफल
लोगों को
देख कर
महसूस
होने लगा है

जरूर इन
लोगों ने
गीता को
समझा है
और बहुत
बार पढ़ा है

सुना है
कर्म और
कर्मफल
की बात
गीता में ही
समझायी
गयी है
और
यही सब
सफलता
की कुंजी
बनाकर
लोगों के
द्वारा
काम में
लायी गयी है

मैं जहाँ
किसी
दिये गये
काम को
करना चाहिये
या नहीं
सोचने में
समय
लगाता हूँ

तब तक
बहुत से लोगों
के द्वारा
उसी काम को
कर लिया
गया है की
खबर अखबार
में पाता हूँ

वो सब
कर्म करते हैं
सोचा नहीं
करते हैं

इसीलिये
फल भी
काम करने
से पहले ही
संरक्षित
रखते हैं

मेरे जैसे
गीता ज्ञान
से मरहूम
काम गलत
है या सही
सोचने में ही
रह जाते हैं

काम होता
नहीं है
तो फल
हाथ में
आना
तो दूर

दूर से
भी नहीं
दिख पाते हैं

गीता को
इसीलिये
आज बाहर
निकलवा
कर ला
रहा हूँ

कल से
करूँगा
पढ़ना शुरू
आज तो
धूप में
बस सुखा
रहा हूँ ।