उलूक टाइम्स

बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

धर्म की शिक्षा जरूरी है भाई नहीं तो लगेगा यहीं पर है मार खाई

चुनाव
की आहट

धर्म ने
सुन ली है

और

भटकना
शुरु हो गई हैं

कुछ
अतृप्त आत्माऐं

मुक्ति की चाह में

चुनाव
के बाद

अपनी
नाव को किनारे
लगाने के लिये

कक्षाऐं
चालू हो चुकी हैं

जिनमें

किसी भी
परीक्षा को
लाँघने का
कोई रोढ़ा नहीं है

वैसे भी

पढ़ने
मनन करने
के लिये
नहीं होता है धर्म

बस
कुछ विशेष
लोगों को

मिला होता है
अधिकार
सिखाने का

धर्म और
धार्मिक
मान्यताऐं भी

आदमी होना

सबसे बड़ा
अधर्म होता है

सीधे सीधे
नहीं
सिखाया जाता है

कोमल
मन में
बिठाया जाता है

एक
लोमड़ी की
चालाकी से
प्रेरणा लेते हुऐ

सीखने
वाले को
पता नहीं
होता है कभी भी

जिस
दीक्षा को देकर

उसे
सड़क पर

लोगों को
धर्म का
शीशा दिखाने
के लिये
भेजा जा रहा है

उस
शीशे में

भेजने
वाले को
अपना चेहरा
देखना भी

अभी
नहीं आ
पा रहा है

आने
वाले समय
के लिये

धार्मिक
गुरु लोग

जिन
मंदिर मस्जिद
गुरुद्वारे चर्च
की कल्पना में

अपने
अपने मन में
लड्डू बम
बना रहे होते हैं

उनके
फूटने से

वो
नहीं मरने
वाले हैं
वो अच्छी
तरह से  जानते हैं

बस

प्रयोग में
लाये जा रहे
धनुषों को

ये पता
नहीं होता है

कि
समय की
लाश पर
बहुत खुशी
के साथ

यही लोग

कल
जब ठहाके
लगा रहे होंगे

धर्म
के कच्चे
पाठ की
रोटियाँ
लिये हुऐ

कुछ
कोमल मन

अपने अपने
भविष्य के
रास्तों में
पड़े हुऐ
काँटो को
हटाते हटाते

हताशा में
कुछ भी
नहीं निगलते
या उगलते

अपने को
पाकर बस
उदास से
हो जा रहे होंगे

और

उस समय
उनके ही

धार्मिक
ठेकेदार
गुरु लोग

गुलछर्रे
कहीं दूर
उड़ा रहे होंगे

अपने अपने
काम का
पारिश्रमिक

भुना रहे होंगे।