चुनाव
की आहट
धर्म ने
सुन ली है
और
भटकना
शुरु हो गई हैं
कुछ
अतृप्त आत्माऐं
मुक्ति की चाह में
चुनाव
के बाद
अपनी
नाव को किनारे
लगाने के लिये
कक्षाऐं
चालू हो चुकी हैं
जिनमें
किसी भी
परीक्षा को
लाँघने का
कोई रोढ़ा नहीं है
वैसे भी
पढ़ने
मनन करने
के लिये
नहीं होता है धर्म
बस
कुछ विशेष
लोगों को
मिला होता है
अधिकार
सिखाने का
धर्म और
धार्मिक
मान्यताऐं भी
आदमी होना
सबसे बड़ा
अधर्म होता है
सीधे सीधे
नहीं
सिखाया जाता है
कोमल
मन में
बिठाया जाता है
एक
लोमड़ी की
चालाकी से
प्रेरणा लेते हुऐ
सीखने
वाले को
पता नहीं
होता है कभी भी
जिस
दीक्षा को देकर
उसे
सड़क पर
लोगों को
धर्म का
शीशा दिखाने
के लिये
भेजा जा रहा है
उस
शीशे में
भेजने
वाले को
अपना चेहरा
देखना भी
अभी
नहीं आ
पा रहा है
आने
वाले समय
के लिये
धार्मिक
गुरु लोग
जिन
मंदिर मस्जिद
गुरुद्वारे चर्च
की कल्पना में
अपने
अपने मन में
लड्डू बम
बना रहे होते हैं
उनके
फूटने से
वो
नहीं मरने
वाले हैं
वो अच्छी
तरह से जानते हैं
बस
प्रयोग में
लाये जा रहे
धनुषों को
ये पता
नहीं होता है
कि
समय की
लाश पर
बहुत खुशी
के साथ
यही लोग
कल
जब ठहाके
लगा रहे होंगे
धर्म
के कच्चे
पाठ की
रोटियाँ
लिये हुऐ
कुछ
कोमल मन
अपने अपने
भविष्य के
रास्तों में
पड़े हुऐ
काँटो को
हटाते हटाते
हताशा में
कुछ भी
नहीं निगलते
या उगलते
अपने को
पाकर बस
उदास से
हो जा रहे होंगे
और
उस समय
उनके ही
धार्मिक
ठेकेदार
गुरु लोग
गुलछर्रे
कहीं दूर
उड़ा रहे होंगे
अपने अपने
काम का
पारिश्रमिक
भुना रहे होंगे।
की आहट
धर्म ने
सुन ली है
और
भटकना
शुरु हो गई हैं
कुछ
अतृप्त आत्माऐं
मुक्ति की चाह में
चुनाव
के बाद
अपनी
नाव को किनारे
लगाने के लिये
कक्षाऐं
चालू हो चुकी हैं
जिनमें
किसी भी
परीक्षा को
लाँघने का
कोई रोढ़ा नहीं है
वैसे भी
पढ़ने
मनन करने
के लिये
नहीं होता है धर्म
बस
कुछ विशेष
लोगों को
मिला होता है
अधिकार
सिखाने का
धर्म और
धार्मिक
मान्यताऐं भी
आदमी होना
सबसे बड़ा
अधर्म होता है
सीधे सीधे
नहीं
सिखाया जाता है
कोमल
मन में
बिठाया जाता है
एक
लोमड़ी की
चालाकी से
प्रेरणा लेते हुऐ
सीखने
वाले को
पता नहीं
होता है कभी भी
जिस
दीक्षा को देकर
उसे
सड़क पर
लोगों को
धर्म का
शीशा दिखाने
के लिये
भेजा जा रहा है
उस
शीशे में
भेजने
वाले को
अपना चेहरा
देखना भी
अभी
नहीं आ
पा रहा है
आने
वाले समय
के लिये
धार्मिक
गुरु लोग
जिन
मंदिर मस्जिद
गुरुद्वारे चर्च
की कल्पना में
अपने
अपने मन में
लड्डू बम
बना रहे होते हैं
उनके
फूटने से
वो
नहीं मरने
वाले हैं
वो अच्छी
तरह से जानते हैं
बस
प्रयोग में
लाये जा रहे
धनुषों को
ये पता
नहीं होता है
कि
समय की
लाश पर
बहुत खुशी
के साथ
यही लोग
कल
जब ठहाके
लगा रहे होंगे
धर्म
के कच्चे
पाठ की
रोटियाँ
लिये हुऐ
कुछ
कोमल मन
अपने अपने
भविष्य के
रास्तों में
पड़े हुऐ
काँटो को
हटाते हटाते
हताशा में
कुछ भी
नहीं निगलते
या उगलते
अपने को
पाकर बस
उदास से
हो जा रहे होंगे
और
उस समय
उनके ही
धार्मिक
ठेकेदार
गुरु लोग
गुलछर्रे
कहीं दूर
उड़ा रहे होंगे
अपने अपने
काम का
पारिश्रमिक
भुना रहे होंगे।
चुनावी महापर्व पर धार्मिक ठेकेदारों की भूमिका देखते ही बनती है.
जवाब देंहटाएंअब तो यह मौसम आ ही गया है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सुंदर अभिव्यक्ति...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST - आँसुओं की कीमत.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (20-02-2014) को जन्म जन्म की जेल { चर्चा - 1529 } में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
गुरु घंटालों की टोली सड़क पर दौड़ रही है ,पंडालों में धर्म के आड़ में राजनैतिक प्रवचन हो रहा है ...एक से बढ़ कर एक ..
जवाब देंहटाएंNew post: किस्मत कहे या ........
सटीक ........
जवाब देंहटाएंकथित धर्म -निरपेक्ष राजनीतिक प्रबंध को पर्त दर पर्त खोलती लम्बी रचना।
जवाब देंहटाएं