उलूक टाइम्स: धर्म
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मंगलवार, 2 अप्रैल 2019

जिसके नाम के आगे नहीं लगाया जा सके पीछे से हटा कर कुछ उसकी जरूरत अब नहीं रह गयी है

जरा
सा भी

झूठ नहीं है

सच्ची में

सच

साफ
आईने
सा

यही है

जाति धर्म

झगड़े
फसाद
की जड़

रहा होगा
कबीर के
जमाने में

अब तो
सारी जमीन

कीटाणु
नाशक

गंगा जल से
धुल धुला कर

खुद ही
साफ
हो गयी है

नाम कभी
पहचान
नहीं हुऐ

जाति
नाम के पीछे

लगी हुयी
देखी गयी है

झगड़ा
ही खत्म

कर
गया ये तो

नाम
के आगे से
लग कर

सबकी

एक
ही पहचान

कर दी गयी है

पीछे से
धीरे धीरे

रबर से
मिटाना
शुरु कर
चुके हैं

देख लेना
बस कुछ
दिनों में

सारी
भीड़

एक नाम
एक जाति

एक धर्म
हो गयी है

काम
थोड़ा बढ़
गया है

मगर

आधार
पैन में
सुधार करने
के फारम में

नाम के
कॉलम
की जरूरत

अब रह भी
नहीं गयी है

सच में
सोचें

मनन करें

कितनी
अच्छी बात

ये हो गयी है

उलूक
तेरा कुछ
नहीं कर
पायेगा

वो भी

तेरे आगे
कुछ नहीं है

और तेरे
पीछे
भी नहीं है

रात
के अँधेरे में
पेड़ पर बैठ

चौकीदारी
बहुत कर
चुका तू

अब
सब जगह
हो गया

तू ही तू है

बस
तेरी ही
जरूरत
अब

कहीं
आगे

या पीछे

लगाने की

नहीं रह गयी है ।

चित्र साभार: blog.ucsusa.org

गुरुवार, 30 जुलाई 2015

सब कुछ सामने एक साथ बातें पकड़े कोई कैसे आफत की बात

महीने
के अंतिम
दिनों के
मुद्दों पर

भारी पड़ती
महत्वाकाँक्षाऐं

अहसास

जैसे
महीने के
वेतन में से
बची हुई

कुछ
भारी खिरची

आवाज
करती हुई
बेबात में

जेब को
ही जैसे
फाड़ने
को तैयार

पुरानी
पैंट की
कच्ची
पड़ती हुई
कपड़े की
जेब से

दिखाई
देती हुई

जमाने
के साथ
चलने से
इंकार
कर चुकी
चवन्नी के
साथ में
एक अठन्नी

जगह
घेरने को
इंतजार करते
दिमाग के
कोने को

अपने अपने
हिसाब से

राशन
पानी
बिजली
गैस दूध
अखबार
सब्जी
टेलिफोन के
बिल के
बिलों के
हिसाब किताब
की हड़बड़ाहट
के साथ

टी वी पर
चलती बहस

लाशें
जलती कहीं

कहीं
दफन होती

कहीं
कानून

कहीं धर्म

आम आदमी
की समस्यायें

उसकी
महत्वाकाँक्षाऐं

उसके मुद्दे

सब गडमगड

थोड़ा देश

थोड़ा
देश भक्ति
के साथ साथ

रसोई
से आती
तेज आवाज
खाना
बन चुका है
लगा दूँ क्या ?

चित्र साभार: www.123rf.com

बुधवार, 28 जनवरी 2015

उसके आने और उसके जाने का फर्क नजर आ रहा है

सात समुंदर पार
से आकर
वो आईना
दिखा रहा है
धर्म के नाम पर
बंट रहे हो
बता रहा है
पता किसी
को भी नहीं था
वो बस इतना
और इतना ही
बताने के लिये
तो आ रहा है
धूम धड़ाम से
फट रहे हों
पठाके खुशी के
कोई खुशफहमी
की फूलझड़ी
जला रहा है
दिल खोल के
खड़े हैं राम भक्त
पढ़ रहे हैं साथ में
हनुमान चालिसा भी
हनुमान अपने को
बता कर कोई
मोमबत्तियाँ
बाँट कर
जा रहा है
एक अरब
से ज्यादा
के ऊपर थोपा
गया मेहमान
मुँह चिढ़ा कर
सामने सामने
धन्यवाद
हिंदी में
बोल कर
जा रहा है
अपनी अपनी
सोच और
अपनी अपनी
समझ है यारो
तुम लोगों का
अमेरिका होगा
’उलूक’ को
दूसरा पाकिस्तान
नजर आ रहा है
कुछ नहीं हो
सकता आजाद
होने के बाद
आजादी का
नाजायज फायदा
एक गुलाम और
उसका बाप
उठा रहा है
विवेकानंद भी
हंस रहा है
ऊपर कहीं
सुना है
मेरे भाई बंधुओ
जनता से
कहने का
नुकसान उसे
आज समझ मे
आ रहा है ।
चित्र साभार: http://www.canstockphoto.com/

बुधवार, 3 सितंबर 2014

कतार बनाना सीख जाता तो तेरा भी बेड़ा पार हो जाता


कतार में लगी हो कोई भी चीज
तो सभी को बहुत अच्छी लगती है

और हर जगह के
कुछ लोग बहुत माहिर होते हैं कतार बनवाने में

ऐसे सभी कतार बनाने वाले 
जानते हैं बहुत अच्छी तरह एक दूसरे को 

इन सब कतार बनाने वालों की रिश्तेदारियाँ
कभी जात हो जाती है
कभी इलाका हो जाता है
कभी धर्म हो जाता है
मजे की बात है कभी कभी सकर्म हो जाता है

कतार बनाने वाले पहचानते हैं
कौन सबसे अच्छी कतार बनाता है

कतार बनाने की इच्छा पूरी करने के लिये
एक कतार बनाने वाला
दूसरे कतार बनाने वाले के पास ही जाता है

कतारें देख कर कतार बनाने वाले
कभी सीखते हैं कतार बनाना 
और
अपनी अपनी कतार की कमिंयों को दूर कर ले जाना

लेकिन ये सारे कतारें बनाने वाले
कभी किसी कतार में नहीं होते हैं
सही बात भी है
हलवाई भी कहाँ खाता है अपनी बनाई हुई मिठाई
और
इसमें कहाँ कहा जा सकता है कि है कोई भी बुराई

पता नहीं तुम्हारे जमाने में क्या होता होगा
पर मेरे जमाने में हर दूसरा आदमी
जो अपनी जिंदगी में कभी भी
किसी कतार में शामिल नहीं हो पाता है
कतार बना ही ले जाता है

और जो कतार में चला जाता है 
पूरी जिंदगी कतार से बाहर नहीं आ पाता है

उसके लिये लैफ्ट लैफ्ट रह जाता है
और राईट राईट रह जाता है

‘उलूक’ को अपने चारों ओर दिखाई देते हैं
बस और बस कतार बनाने वाले
और फिर भी बेचारा
ना कतार बनाना सीख पाता है
ना ही किसी कतार में शामिल ही हो पाता है ।

चित्र साभार: http://www.shutterstock.com/

बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

धर्म की शिक्षा जरूरी है भाई नहीं तो लगेगा यहीं पर है मार खाई

चुनाव
की आहट

धर्म ने
सुन ली है

और

भटकना
शुरु हो गई हैं

कुछ
अतृप्त आत्माऐं

मुक्ति की चाह में

चुनाव
के बाद

अपनी
नाव को किनारे
लगाने के लिये

कक्षाऐं
चालू हो चुकी हैं

जिनमें

किसी भी
परीक्षा को
लाँघने का
कोई रोढ़ा नहीं है

वैसे भी

पढ़ने
मनन करने
के लिये
नहीं होता है धर्म

बस
कुछ विशेष
लोगों को

मिला होता है
अधिकार
सिखाने का

धर्म और
धार्मिक
मान्यताऐं भी

आदमी होना

सबसे बड़ा
अधर्म होता है

सीधे सीधे
नहीं
सिखाया जाता है

कोमल
मन में
बिठाया जाता है

एक
लोमड़ी की
चालाकी से
प्रेरणा लेते हुऐ

सीखने
वाले को
पता नहीं
होता है कभी भी

जिस
दीक्षा को देकर

उसे
सड़क पर

लोगों को
धर्म का
शीशा दिखाने
के लिये
भेजा जा रहा है

उस
शीशे में

भेजने
वाले को
अपना चेहरा
देखना भी

अभी
नहीं आ
पा रहा है

आने
वाले समय
के लिये

धार्मिक
गुरु लोग

जिन
मंदिर मस्जिद
गुरुद्वारे चर्च
की कल्पना में

अपने
अपने मन में
लड्डू बम
बना रहे होते हैं

उनके
फूटने से

वो
नहीं मरने
वाले हैं
वो अच्छी
तरह से  जानते हैं

बस

प्रयोग में
लाये जा रहे
धनुषों को

ये पता
नहीं होता है

कि
समय की
लाश पर
बहुत खुशी
के साथ

यही लोग

कल
जब ठहाके
लगा रहे होंगे

धर्म
के कच्चे
पाठ की
रोटियाँ
लिये हुऐ

कुछ
कोमल मन

अपने अपने
भविष्य के
रास्तों में
पड़े हुऐ
काँटो को
हटाते हटाते

हताशा में
कुछ भी
नहीं निगलते
या उगलते

अपने को
पाकर बस
उदास से
हो जा रहे होंगे

और

उस समय
उनके ही

धार्मिक
ठेकेदार
गुरु लोग

गुलछर्रे
कहीं दूर
उड़ा रहे होंगे

अपने अपने
काम का
पारिश्रमिक

भुना रहे होंगे।

बुधवार, 3 अक्तूबर 2012

निपट गये सकुशल कार्यक्रम

गांंधी जी
और शास्त्री जी

दो एक दिन से
एक बार फिर से 

इधर भी और उधर भी
नजर आ रहे थे

कल का पूरा दिन
अखबार टी वी समाचार
कविता कहानी और
ब्लागों में छा रहे थे

कहीं तुलना हो रही थी
एक विचार से
किसी को इतिहास
याद आ रहा था

नेता इस जमाने का
भाषण की तैयारी में
सत्य अहिंसा और
धर्म की परिभाषा में
उलझा जा रहा था

सायबर कैफे वाले से
गूगल में से कुछ
ढूंंढने के लिये गुहार
भी लगा रहा था

कैफे वाला उससे
अंग्रेजी में लिख कर
ले आते इसको

कहे जा रहा था

स्कूल के बच्चों को भी
कार्यक्रम पेश करने
को कहा जा रहा था

पहले से ही बस्तों से
भारी हो गई
पीठ वालो का दिमाग
गरम हुऎ जा रहा था

दो अक्टूबर की छुट्टी
कर के भी सरकार को
चैन कहाँ आ रहा था

हर साल का एक दिन
इस अफरा तफरी की
भेंट चढ़ जा रहा था

गुजरते ही जन्मोत्सव
दूसरे दिन का सूरज
जब व्यवस्था पुन:
पटरी पर  होने का
आभास दिला रहा था

मजबूरी का नाम
महात्मा गांंधी होने का
मतलब एक बार फिर
से समझ में आ रहा था ।

सोमवार, 23 अप्रैल 2012

आहा मेरा पेड़

मुर्गे
मुर्गियां
कबूतर तीतर
मेरे पेड़ की
एक मिसाल हैं

हर एक
अपना
अपनी
जगह पर
धर्म निभाते हैं

मुर्गियां
मुर्गियों के साथ
कबूतर
कबूतर के साथ
हमेशा
ही पाये जाते हैं
कव्वे
कव्वों से ही
चोंच लड़ाते हैं
धर्म
निरपेक्षता का एक
उत्तम
उदाहरण दिखाते हैं

जंगल के
कानून
किसी को भी
नहीं पढ़ाये जाते हैं
बड़े छोटे
का कोई भेद
नहीं किया जाता है
कभी कभी
उल्लू को भी
राजा बनाया जाता है

कोई
झगड़ा फसाद
नहीं होता है
मेरे पेड़ पर कभी
सरकारी चावल
ताकत के अनुसार
घौंसलों में ही
पहुंचा दिया जाता है

पेड़
के अंदर
कोई लाल बत्ती
नहीं लगाता है

जंगल
जाने पर ही
लाल बत्ती है करके
बस शेर को ही बताता है

कोई किसी
को कभी
थोड़ा सा भी
नहीं डराता है
जिसकी जो
मन में आये
कर ले जाता है

बहुत ही
भाईचारा है,
आनन्द ही
आ जाता है
साल के
किसी दिन जब
सफेद कौआ
काले कौऎ को
साथ लेकर
कबूतर के
घर जाता हुवा
दिखाई दे जाता है।

रविवार, 5 फ़रवरी 2012

गाय

हाथी बंदर मे
वो बात कहाँ
जो गाय और
बैल में है

गाय हमारी
माता है

हमको कुछ
नहीं आता है

बैल हमारा
बाप है

नम्बर देना
पाप है

बचपन से
सुनते आये हैं

गाय वाकई में

भारतीय है
बैल थोड़ा
चीनी
दिखाई
देता है

इसलिये
बैल कहीं
नहीं
दिखाई देता है


आदमी
की बात

जो नहीं
सोच पाता है

वो गाय से
समझाता है


गाय कभी
नहीं बताती

अपना धर्म
बैल ने भी
नहीं कहा

कभी वो
चीनी है


गाय बैल
के नाम

लड़ाई
मत करो


मुझे
बताओ ना

गाय के
बच्चा होता है

कैल्शियम
कैसे दिया

जाता है
उसे बच्चा

होने के बाद
और क्यों

कोई बतायेगा?