उलूक टाइम्स

मंगलवार, 2 सितंबर 2014

देखता कुछ और है बताता कुछ और चला जाता है

दिल
की बातें

कहाँ उतर
पाती हैं

इतनी
आसानी से
जबान से

कागज के
पास तक
पहुँच कर
भी फिसल
जाती हैं

दिल में
कुछ और होता है
लिखना
कुछ और होता है
जबान तक
कुछ और आता है
लिखा
कुछ और ही जाता है

बहुत कुछ होता है
आस पास की
हवा को हमेशा
बताने के लिये

पर हवा है कि
उससे रुका ही
कहाँ जाता है

उसे भी
कहाँ है
फुरसत
अपने गम
और खुशी
जमाने को
दिखाने के लिये

उसकी
बातों को भी
कहाँ कौन
सुन पाता है

कुछ आवाज
जैसी जरूर
सुनाई देती है

जिसे हल्के होने 

पर एक सरसराहट
कह दिया जाता है

कुछ तेजी से
चलना चाहती है
कभी तो

तूफान आने का
हल्ला मचा
दिया जाता है

‘उलूक’ भी
जानता है
समझता है

उसके खाने के
दाँतो को भी
कोई नहीं
देख पाता है

सबकी
आदत और
संगत का असर
उस पर भी होता है

बहुत बार वो भी
एक हाथी होने से
अपने को नहीं
बचा पाता है

मान लेना बहुत
मुश्किल होता है

अपना ही कर्म
अपनी ही आँखों में
बहुत आसानी से
बहुत बार धूल
झोंक ले जाता है ।

चित्र साभार : http://www.shutterstock.com/