उलूक टाइम्स

मंगलवार, 9 सितंबर 2014

वैसे तो फेसबुक पर जो भी चाहे एक खाता खुलवा सकता है

लिखने लिखाने
के विषयों पर

क्या कहा
जा सकता है

कुछ भी कभी भी
खाली दिमाग को

फ्यूज होते
बल्ब के जैसे
चमका सकता है

कभी
घर की
एक बात
उठ सकती हैं

कभी
पड़ोसी का
पड़ोसी से पंगा

एक मसालेदार
मीनू बना सकता है

काम करने
की जगह पर
एक नहीं
कई पाकिस्तान
बनते बिगड़ते ही हैं

रोज का रोज
नवाज शरीफ
के भेजे आम
एक आम आदमी
कहाँ पचा सकता है

घर पर
आता भी हो
अगर
अखबार रोज

सामने के पन्ने
की खबरों पर
ज्यादा कुछ नहीं
कहा जा सकता है

उल्टी खोपड़ी वाले
उल्टा शुरु करते हैं
पढ़ना अखबार को

हमेशा ही
पता होता है
बस उन्हें ही

पीछे का पन्ना
कुछ ना कुछ
नया गुल
जरूर खिला
सकता है

‘अमर उजाला’
के पेज सोलह पर
आज ही छ्पी
शोध की खोज से
अच्छा विषय
क्या हो सकता है

लगा

ये तो
अच्छे खासों से
कुछ नया
कुछ करवा
सकता है

भारत
की खबरें
पकते पकाते
कच्ची पक्की
भले ही
रह सकती हैं

अमेरिका
से पका कर
भेजा हुआ ही
बिना जले भुने
भी आ सकता है

कहा गया है
बहुत दावे के साथ

‘शर्मीले लोग
फेसबुक पर बिताते
हैं ज्यादा वक्त’

दो सौ
प्रतिशत
सत्य है

और
बेशरमों को
ये
वक्तव्य
बहुत
बड़ी
राहत भी

दिलवा
सकता है


‘उलूक’
बेशरम
भी है


और

फेसबुक
पर भी

बिताता है
ज्यादा समय

किसी ने
कहाँ
किया

है शोध

कि
शोध
करने वालों
का हर तीर

निशाने
पर
जा
कर
ठिकाना
बना सकता है । 



चित्र: गूगल से साभार ।