एक छोटी सी बात
छोटी सी कहानी
छोटी सी कविता
छोटी सी गजल
या और कुछ
बहुत छोटा सा
बहुत से लोगों को
लिखना सुनाना
बताना या फिर
दिखाना ही
कह दिया जाये
बहुत ही अच्छी
तरह से आता है
उस छोटे से में ही
पता नहीं कैसे
बहुत कुछ
बहुत ज्यादा घुसाना
बहुत ज्यादा घुमाना
भी साथ साथ
हो पाता है
पर तेरी बीमारी
लाईलाज हो जाती है
जब तू इधर उधर का
यही सब पढ़ने
के लिये चला जाता है
खुद ही देखा कर
खुद ही सोचा कर
खुद ही समझा कर
जब जब तू
खुद लिखता है
और खुद का लिखा
खुद पढ़ता है
तब तक कुछ
नहीं होता है
सब कुछ तुझे
बिना किसी
से कुछ पूछे
बहुत अच्छी तरह
खुद ही समझ में
आ जाता है
और जब भी
किसी दिन तू
किसी दूसरे का
लिखा पढ़ने के लिये
दूसरी जगह
चला जाता है
भटक जाता है
तेरा लिखना
इधर उधर
हो जाता है
तू क्या लिख देता है
तेरी समझ में
खुद नहीं आता है
तो सीखता क्यों नहीं
‘उलूक’
चुपचाप बैठ के
लिख देना कुछ
खुद ही खुद के लिये
और देना नहीं
खबर किसी को भी
लिख देने की
कुछ कहीं भी
और खुद ही
समझ लेना अपने
लिखे को
और फिर
कुछ और लिख देना
बिना भटके बिना सोचे
छोटा लिखने वाले
कितना छोटा भी
लिखते रहें
तुझे खींचते रहना है
जहाँ तक खींच सके
कुत्ते की पूँछ को
तुझे पता ही है
उसे कभी भी
सीधा नहीं होना है
उसके सीधे होने से
तुझे करना भी क्या है
तुझे तो अपना लिखा
अपने आप पढ़ कर
अपने आप
समझ लेना है
तो लगा रह खींचने में
कोई बुराई नहीं है
खींचता रह पूँछ को
और छोड़ना
भी मत कभी
फिर घूम कर
गोल हो जायेगी
तो सीधी नहीं
हो पायेगी ।
चित्र साभार: barkbusterssouthflorida.blogspot.in
छोटी सी कहानी
छोटी सी कविता
छोटी सी गजल
या और कुछ
बहुत छोटा सा
बहुत से लोगों को
लिखना सुनाना
बताना या फिर
दिखाना ही
कह दिया जाये
बहुत ही अच्छी
तरह से आता है
उस छोटे से में ही
पता नहीं कैसे
बहुत कुछ
बहुत ज्यादा घुसाना
बहुत ज्यादा घुमाना
भी साथ साथ
हो पाता है
पर तेरी बीमारी
लाईलाज हो जाती है
जब तू इधर उधर का
यही सब पढ़ने
के लिये चला जाता है
खुद ही देखा कर
खुद ही सोचा कर
खुद ही समझा कर
जब जब तू
खुद लिखता है
और खुद का लिखा
खुद पढ़ता है
तब तक कुछ
नहीं होता है
सब कुछ तुझे
बिना किसी
से कुछ पूछे
बहुत अच्छी तरह
खुद ही समझ में
आ जाता है
और जब भी
किसी दिन तू
किसी दूसरे का
लिखा पढ़ने के लिये
दूसरी जगह
चला जाता है
भटक जाता है
तेरा लिखना
इधर उधर
हो जाता है
तू क्या लिख देता है
तेरी समझ में
खुद नहीं आता है
तो सीखता क्यों नहीं
‘उलूक’
चुपचाप बैठ के
लिख देना कुछ
खुद ही खुद के लिये
और देना नहीं
खबर किसी को भी
लिख देने की
कुछ कहीं भी
और खुद ही
समझ लेना अपने
लिखे को
और फिर
कुछ और लिख देना
बिना भटके बिना सोचे
छोटा लिखने वाले
कितना छोटा भी
लिखते रहें
तुझे खींचते रहना है
जहाँ तक खींच सके
कुत्ते की पूँछ को
तुझे पता ही है
उसे कभी भी
सीधा नहीं होना है
उसके सीधे होने से
तुझे करना भी क्या है
तुझे तो अपना लिखा
अपने आप पढ़ कर
अपने आप
समझ लेना है
तो लगा रह खींचने में
कोई बुराई नहीं है
खींचता रह पूँछ को
और छोड़ना
भी मत कभी
फिर घूम कर
गोल हो जायेगी
तो सीधी नहीं
हो पायेगी ।
चित्र साभार: barkbusterssouthflorida.blogspot.in