लिखते लिखते
कभी
अचानक
महसूस होता है
लिखा ही
नहीं जा रहा है
अब
लिखा नहीं
जा रहा है
तो
किया क्या
जा रहा है
अपने
ही ऊपर
अपना ही शक
गजब
की बात
नहीं है क्या
लेकिन
कुछ सच
वाकई में
सच होते हैं
क्यों होते हैं
ये तो
पता नहीं
पर होते है
लिखते लिखते
कब
लेखक
और पाठक
दोनो शुरु
हो चुके होते हैं
कुछ गिनना
क्या
गिन रहे होते हैं
ये तो नहीं मालूम
पर
दिखता
कुछ नहीं है
गिनने
की आवाज
भी नहीं होती है
बस
कुछ लगता है
एक दो तीन चार
सतरह अठारह
नवासी नब्बे सौ
अब
लेखक
कौन सी
गिनती कर
रहा होता है
गिनतियाँ
लिख
लिख कर
क्या गिन
रहा होता है
पाठक
क्या पढ़
रहा होता है
लेखक
का सौ
पाठक का नब्बे
हो रहा होता है
लेकिन हो
रहा होता है
ये
लेखक भी
जानता है
और
लेखक
की गिनतियों को
पाठक भी
पहचानता है
बस
मानता नहीं है
दोनों में से एक भी
गिनतियों
की बात को
बहस जारी
रहती है
गिनतियों में
ही होती है
गिनतियाँ
गड़बड़ाती है
सौ
पूरा होने
के बावजूद
अठहत्तर पर
वापिस
लौट आती है
लेखक
और पाठक
दोनो झल्लाते है
मगर
क्या करें
मजबूर होते हैं
अपनी अपनी
आदतों से
बाज नहीं आते हैं
फिर से
गिनना
शुरु हो जाते हैं
स्वीकार
फिर भी
दोनों ही
नहीं करते हैं
कि गिनती
करने के लिये
गिनते गिनते
इधर उधर
होते होते
बार बार
एक ही
जगह पर
गिनती करने
पहुँच जाते हैं ।
चित्र साभार: vecto.rs
कभी
अचानक
महसूस होता है
लिखा ही
नहीं जा रहा है
अब
लिखा नहीं
जा रहा है
तो
किया क्या
जा रहा है
अपने
ही ऊपर
अपना ही शक
गजब
की बात
नहीं है क्या
लेकिन
कुछ सच
वाकई में
सच होते हैं
क्यों होते हैं
ये तो
पता नहीं
पर होते है
लिखते लिखते
कब
लेखक
और पाठक
दोनो शुरु
हो चुके होते हैं
कुछ गिनना
क्या
गिन रहे होते हैं
ये तो नहीं मालूम
पर
दिखता
कुछ नहीं है
गिनने
की आवाज
भी नहीं होती है
बस
कुछ लगता है
एक दो तीन चार
सतरह अठारह
नवासी नब्बे सौ
अब
लेखक
कौन सी
गिनती कर
रहा होता है
गिनतियाँ
लिख
लिख कर
क्या गिन
रहा होता है
पाठक
क्या पढ़
रहा होता है
लेखक
का सौ
पाठक का नब्बे
हो रहा होता है
लेकिन हो
रहा होता है
ये
लेखक भी
जानता है
और
लेखक
की गिनतियों को
पाठक भी
पहचानता है
बस
मानता नहीं है
दोनों में से एक भी
गिनतियों
की बात को
बहस जारी
रहती है
गिनतियों में
ही होती है
गिनतियाँ
गड़बड़ाती है
सौ
पूरा होने
के बावजूद
अठहत्तर पर
वापिस
लौट आती है
लेखक
और पाठक
दोनो झल्लाते है
मगर
क्या करें
मजबूर होते हैं
अपनी अपनी
आदतों से
बाज नहीं आते हैं
फिर से
गिनना
शुरु हो जाते हैं
स्वीकार
फिर भी
दोनों ही
नहीं करते हैं
कि गिनती
करने के लिये
गिनते गिनते
इधर उधर
होते होते
बार बार
एक ही
जगह पर
गिनती करने
पहुँच जाते हैं ।
चित्र साभार: vecto.rs