उलूक टाइम्स

रविवार, 13 सितंबर 2015

कभी हिसाब लगायें अपने अंदर इंसानियत कितने दिन चलेगी कब तक कितनी बचेगी

अचानक
कौंधा कुछ

औंधे लेटे हुऐ
जमीन पर

घरेलू
कुत्ते के पास

मन हुआ
कुछ चिंता कर
उपाय खोजा जाये

इंसान की
घटती हुई
इंसानियत पर

इस से पहले
कि इंसानियत ही
इतिहास हो जाये

कुछ देर
के लिये सही
कुछ बातें
खाली यूँ ही

दिल
बहलाने के लिये
झूठ मूठ के लिये ही
खुद से कह ली जायें

समझ में
आ चुकी
अब तक की
सारी बातें
पोटलियों में बधीं

खुद के अंदर
गाँठे खोल कर
फिर से देखी जायें

रोज की
इधर की उधर
और उधर की इधर
करने की आदत से

थोड़ी देर के
लिये ही सही
कुछ तौबा
कर ली जाये

इस सब में
उलझते उलझते

टटोला गया
खुद के ही अंदर
बहुत कुछ भीतर का

पता ही
नहीं चला
कैसे और कब

बालों वाला
कुछ जानवर जैसा
आदमी हो चला

और
समझ में
आने लगा
पास में बैठा हुआ
घरेलू जानवर

कितना
कितना इंसान
क्यों और कैसे हो चला

थोड़ा सा धैर्य बंधा

चलो इधर
खत्म भी हो
जाती है इंसानियत

तब भी
कहीं ना कहीं
तो बची रहेगी

किसी
मोहनजोदाड़ो
जैसी खुदाई में

‘उलूक’
की राख में ना सही

कुत्ते
की हड्डी में
शर्तिया
कुछ ना कुछ
तो पक्का ही मिलेगी ।

चित्र साभार: schools-demo.clipart.com