उलूक टाइम्स: इंसान
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रविवार, 8 अक्टूबर 2023

मैं ही बस बिजूरवा रहूँगा कुछ और हो नहीं रहा हूँ

 

सितम्बर २०२३ तक  "उलूक टाइम्स" के साठ लाख पृष्ठ दृश्य के लिए पाठकों का आभार
चूहों की दौड़ के बीच में कहीं है
वो ही एक चूहा नहीं है
बस मैं ही कुछ हो नहीं रहा हूँ

नकाब चूहे का है मान लिया है उसने
किसी को छूआ नहीं है
मैं ही बस कुछ उनींदा हूँ सो नहीं रहा हूँ

सबकी दुआओं में रहता है
अहसास कभी हुआ नहीं है
बस एक  मैं ही हूँ जो खो नहीं रहा हूँ

घेर कर रखना चाह रहे हैं बंधुआ नहीं है
मैं ही हूँ बस बाहर हूँ और रो नहीं रहा हूँ

सही गलत कुछ भी लिखना जुआ नहीं है
बस एक मैं ही
ताश के पत्तों का जोकर हो नहीं रहा हूँ

नहीं भी है तब भी
ना लिखिए कहीं भी एक कुंआ नहीं है
बौछार लिख दीजिये
मैं ही बस बादल हो नहीं  रहा हूँ
 
सब जिम्मेदार हैं सब ईमानदार है
बस पूछिए वही जो हुआ नहीं है
मैं अभी हूँ यहीं कहीं हूँ
खो नहीं रहा हूँ

सब इज्जतदार हैं डरिये नहीं
मामा है कहीं बुआ नहीं
 है कहीं
ताऊ बन गया है यहीं
मैं ही बस इंसान हो नहीं रहा हूँ

खोज रहा हूँ
शायद कोई जाग रहा हो
 
मैं एक ही हूँ बस जो ढो नहीं रहा हूँ

किताब में
दो और दो चार बताया गया है
  
बस मैं ही नहीं और भी हैं
जो कहें
आठ होने की बाट जोह नहीं रहा हूँ

खबर अखबार में है एक मैं ही  सो रहा हूँ
सारे सोये हुओं ने दस्तखत किये हैं
मैं ही बस कह रहा हूँ रो नहीं रहा हूँ

अखबार छापता है खबर
जो दुधारू खबरी उसे देता है
खबरी ने सबूत दिए हैं
बस एक मैं ही कोई खबर बो नहीं रहा हूँ

ईमानदार शब्दकोष का  एक शब्द है
 सारे चोर
 ईमानदार है मुझे भी होना है कुछ
बस मैं ही यूं ही हो नहीं रहा हूँ

सभी
  कौए
पंख फैला कर मोर हो गए हैं
नाचना मुझे भी है आँगन टेढ़े हैं
मैं ही बस बिजूरवा रहूँगा
कुछ और हो नहीं रहा हूँ

हर कोई
लटका कर घूम रहा है 
गले में ताबीज किस्मत का अपनी
किसी एक रंग का
मैं ही बस काला रहूँ
अच्छा है खुश
 हो नहीं रहा हूँ

गेरुआ है सफ़ेद है हरा है तिरंगे में
खून का रंग लाल है सींचना है बागवां
  है
‘उलूक’ बकबकी कहे
अभी तो चुप हो नहीं रहा हूँ


चित्र साभार:  https://www.freepik.com/

मंगलवार, 1 सितंबर 2020

लिख ही लें थोड़ा सुकून इधर से लेकर उधर तक फैल चुके हों जहाँ जर्रा जर्रा बेजुबान

 

डा० कफ़ील खान

भगवान जी और अल्ला मियाँ
का तो पता नहीं 
पर सुबह अच्छी खबर मिली और अच्छा लगा

पता नहीं किसे सुनाई दी
किसे कुछ भी
अब भी पता नहीं चला 

आदमी के आदमी ने आदमी पर
लगा कर इल्जाम बता कर गुनाहगार 

बोल कर कुछ
दिखा कर कर गया जैसे कोई
शब्दों से कत्लेआम 

कर दिया गया अन्दर
बिना पूछे बिना देखे हथियार और कत्ल का सामान 

लगा दी गयी धारायें
एक आदमी पर सारी सभी भीड़ की 
मानकर उसे एक नहीं कई कई आदमी एक साथ
जैसे हो एक जगह उगाये खुद की ही हजारों जुबान 

फ़िर आदमी ने ही कर दिया इन्कार
देने से सजा झूठ की
कुछ बचा हुआ होगा वहाँ शायद इंसान 

‘उलूक’ काट लिये दिन सैकड़ों
काल कोठरी में बेगुनाह ने

सजा कौन देगा यंत्रणा देने वाले गुनहगार को
कौन सा अल्ला या कौन सा भगवान ?


चित्र साभार: https://www.gograph.com/
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Alexa Traffic Rank 130398 Traffic Rank in इंडिया 12663 01/09/2020 के दिन 9:25 पीएम 
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मंगलवार, 9 जुलाई 2019

खुद अपना मन्दिर बना कर खुद मूर्ती एक होना चाहता है साफ नजर आता है देखिये अपने आसपास है कोई ऐसा जो भगवान जैसा नजर आता है


"ब्लॉग उलूक पर पच्चीस  लाख कदमों  को शुक्रिया"


भगवान बस 
भगवानों से ही 

रिश्ते बनाता है 

किसी 
आदमी से 
बनाना चाह लिया 
रिश्ता कभी उसने तो 

सब से 
पहले उसे 
एक भगवान बनाता है 

एक 
आदमी 
उसे जरा 
सा दमदार 
अगर नजर 
आ भी जाता है 

उससे 
तार मिलाने 
की इच्छा को 
उभरता हुआ 
महसूस यदि 
कर ही जाता है 

सबसे पहले 
उस आदमी से 
आदमियत 
निकाल कर 
उसे भगवान 
बनाता है 

भगवानों की 
श्रँखलायें होती है 

इंसानियत 
के साये से 
बहुत दूर होती हैं 

भगवान 
इन्सान को 
पाल सकता है 

मौज में 
आ गया कभी 
तो कुत्ता भी 
बना ले जाता है 

हर 
इन्सान 
के आसपास 

कई 
भगवान होते हैं 

कौन 
कितना 
भगवान 
हो चुका है 

समय 
के साथ 
चलता हुआ 
आदमी का 
अच्छा बुरा 
समय ही 
उसे 
समझाता है 

कुछ 
आदमी 
भगवान ने 
भगवान 
बना दिये होते हैं 

भगवान 
से बहुत 
ज्यादा 
भगवान 

उनकी 
हरकतों से 
बहता हुआ 
नजर आता है 

धीरे धीरे 
हौले हौले 
हर तरफ 
हर जगह 
बस भगवान 
ही नजर आता है 

‘उलूक’ 
देखता 
चलता है 

आदमी के 
बीच से 
होते हुऐ 
भगवान 
कई सारे 

देखने 
में मजा 
भी आता है 

आदमी 
तो आदमी 
ही होता है 

भगवान 
बना भी दिया 
अगर किसी 
ने ले दे के 

औकात 
अपनी 
फिर भी 
आदमी 
की ही 
दिखाता है


 चित्र साभार: https://making-the-web.com

रविवार, 13 सितंबर 2015

कभी हिसाब लगायें अपने अंदर इंसानियत कितने दिन चलेगी कब तक कितनी बचेगी

अचानक
कौंधा कुछ

औंधे लेटे हुऐ
जमीन पर

घरेलू
कुत्ते के पास

मन हुआ
कुछ चिंता कर
उपाय खोजा जाये

इंसान की
घटती हुई
इंसानियत पर

इस से पहले
कि इंसानियत ही
इतिहास हो जाये

कुछ देर
के लिये सही
कुछ बातें
खाली यूँ ही

दिल
बहलाने के लिये
झूठ मूठ के लिये ही
खुद से कह ली जायें

समझ में
आ चुकी
अब तक की
सारी बातें
पोटलियों में बधीं

खुद के अंदर
गाँठे खोल कर
फिर से देखी जायें

रोज की
इधर की उधर
और उधर की इधर
करने की आदत से

थोड़ी देर के
लिये ही सही
कुछ तौबा
कर ली जाये

इस सब में
उलझते उलझते

टटोला गया
खुद के ही अंदर
बहुत कुछ भीतर का

पता ही
नहीं चला
कैसे और कब

बालों वाला
कुछ जानवर जैसा
आदमी हो चला

और
समझ में
आने लगा
पास में बैठा हुआ
घरेलू जानवर

कितना
कितना इंसान
क्यों और कैसे हो चला

थोड़ा सा धैर्य बंधा

चलो इधर
खत्म भी हो
जाती है इंसानियत

तब भी
कहीं ना कहीं
तो बची रहेगी

किसी
मोहनजोदाड़ो
जैसी खुदाई में

‘उलूक’
की राख में ना सही

कुत्ते
की हड्डी में
शर्तिया
कुछ ना कुछ
तो पक्का ही मिलेगी ।

चित्र साभार: schools-demo.clipart.com

सोमवार, 27 जुलाई 2015

नमन श्रद्धाँजलि विनम्र हे महापुरुष महाइंसान माननीय डा0 ऐ पी जे अब्दुल कलाम

एक अहसास है
और रहेगा भी
हमेशा तेरे लिये
कहीं दिल के किसी
एक कोने में कहीं
नहीं बता सकता
सही सही किस
जगह और कहाँ
लिख नहीं सकता
लिखना भी कठिन
है कुछ भी यहाँ
लिख भी दिया
समझेगा कौन
उस जगह जहाँ
शब्द ढूढने में
माहिर हैं और
कम नहीं बहुत
हैं सारे हैं लोग
यहाँ से लेकर
गिनती नहीं है
कहाँ से कहाँ
इंसान और
इंसानियत
डूबती रही है
एक बार नहीं
कई कई बार
पता नहीं
कहाँ कहाँ
तुझ जैसी पवित्र
आत्माऐं ही
होती हैं रही हैं
सदियों से डूबते
मरते हुऐ अँधेरे
में डूबते को तिनके
के सहारे की
जैसी प्राण रोशनी
होता रहा है जिससे
जीवित मरता जहाँ
अवसान हुआ होगा
पवित्र शरीर का
अमर आया था है
और रहेगा नाम
धरती पर आकाश
पर तेरा जैसा सच में
इंसानियत से भरा
इंसानों में सबसे
बड़ा इंसान दूसरा
इसके बाद अब
कब दिखेगा
कौन जाने यहाँ ।

चित्र साभार: pages.rediff.com

गुरुवार, 27 नवंबर 2014

इंसानियत तो बस एक मुद्दा हो जाता सरे आम दिन दोपहर की रोशनी में उसे नंगा किया जाता है अंधा ‘उलूक’ देखने चला आता है

एक नहीं 
कई बार 
कहा है
तुझसे 

दिन में मत 
निकला कर 
निकल भी 
जाता है अगर 
तो जो दिखता है 
मत देखा कर 

ऐसा देख
कर आना 
फिर यहाँ आ 
कर बताना 

क्यों करता है 
रात का
निशाचर है 
दिन वालों की 
खबर रखता है 

हर प्रहर के 
अपने नियम कानून 
बनाये जाते हैं 

दिन के दिन में 
रात के रात में 
चलाये जाते हैं 

उल्लुओं की दुनियाँ 
के कब्रिस्तान 
दिन की फिल्मों में 
ही दिखाये जाते हैं 

इंसान इंसान होता है 
इंसान ही उसे 
समझ पाते हैं 

बलात्कार होना 
लाश हो जाना 
कीड़े पड़ जाना 
लाश घर में रख कर 
आँदोलित हो जाना 

वाजिब है 
समझ में भी आता है
आक्रोश होना
अलग बात होती है
आक्रोश दिखाया जाता है

स्कूल बंद कराये जाते हैं
बाजार बंद कराये जाते हैं
बंद कराने वाले
अपने अपने रंग बिरंगे
झंडे जरूर साथ
ले कर आते हैं

अखबार वाले
समाचार
बनाने आते हैं
टी वी वाले
वीडियो
बनाने आते हैं

अगला चुनाव
दिमाग में होता है
राजनीतिज्ञ
वक्तव्य दे जाते हैं

सब कुछ साफ साफ
देख लेता है ‘उलूक’

दिन के उजाले में भी
घटना दुर्घटना
महज मुद्दे हो जाते हैं

सबके लिये
काम होता है
मुद्दे भुनाने का

बस भोगने वाले
अपने आँसू खुद
ही पी जाते हैं

इंसान का हुआ होता
है बलात्कार और
बस इंसान ही खो जाते हैं
कहीं भी नजर नहीं आते हैं

सोच में आती है
कुछ देर के लिये
एक बात
सभी अपने रंगीन
झंडों को भूलकर

किसी एक घड़ी के लिये
काले झंडे एक साथ
एक सुर में
क्यों नहीं उठा पाते हैं ।

चित्र साभर: gladlylistening.wordpress.com

गुरुवार, 13 नवंबर 2014

कभी लिख तो सही पेड़ जंगल मत लिख डालना लिखना बस एक या डेढ़ दो पेड़

पेड़ के इधर पेड़
पेड़ के उधर पेड़
बहुत सारे पेड़
एक दो नहीं
ढेर सारे पेड़
चीड़ के पेड़
देवदार के पेड़
नुकीली पत्तियों
वाले कुछ पेड़
चौड़ी पत्तियों
वाले कुछ पेड़
सदाबहार पेड़
पतझड़ में
पत्तियाँ झड़ाये खड़े
कई कई हजार पेड़
आदमी के आस
पास के पेड़
बहुत दूर
आदमी की पहुँच
से बाहर के पेड़
पेड़ के पास
के आदमी
आदमी और पेड़
पेड़ और आदमी
आदमी के
पास के आदमी
पेड़ के पास के
कुछ खुश
कुछ उदास पेड़
पेड़ से कुछ नहीं
कहते कभी
भी कुछ पेड़
आदमी से
कुछ नहीं लेते
कभी भी कुछ पेड़
आदमी से सभी कुछ
कह देते आदमी
जमीनों पर खुद ही
उग लेते
पनप लेते पेड़
जमीनों से कटते
उजड़ते पेड़
आदमी के
हाथ से कटते पेड़
आदमी के हाथ से
कटते आदमी
आदतन आदमी
के होते सभी पेड़
पेड़ को
जरूरत ही नहीं
पेड़ के होते
नहीं आदमी
पेड़ के होते
हुऐ सारे पेड़
पेड़ ने कभी
नहीं मारे पेड़
इंसानियत के
उदाहरण पेड़
इंसान के सहारे
एक ही नहीं
सारे के सारे पेड़
‘उलूक’ तेरी तो
तू ही जाने
किस ने तेरी सोच
में से आज
क्यों और
किसलिये
निकाले पेड़ ही पेड़ ।

चित्र साभार: imageenvision.com

गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

भूख

भूख तब लगती है
जब पेट खाली होता है
सुना ही है बस कि
भूख बना सकती है
एक इंसान को हैवान
भूख से मरते भी हैं
कहीं कुछ लोग कभी
यहाँ तो बिना चश्मा
लगाये भी साफ साफ
दिखाई दे रहा है
गले गले तक
भरे हुवे पेट
कैसे तड़फ रहे हैं
निगल रहे हैं
कुछ भी कभी भी
यहाँ तक भूख
को भी निगल
लेते हैं ये ही लोग
बिना आवाज किये
उनकी भूख देखी
ही नहीं जाती है
और मर जाती है भूख।