तालियों के
शोर के बीच
बोलने की
बेवकूफी
करता है
फिर ढूँढता
भी है अपनी
ही आवाज को
कान तक
बहुत कुछ
पहुँच रहा
होता है
उसमें खुद
का बोला
गया कुछ
नहीं होता है
प्रकृति
बहुत कुछ
सिखाती है
अपने ही
आसपास की
लेकिन
खुली आँख
का अँधा
नयनसुख
अपने ही
चश्मे का
आईना बना
अपनी ही
जुल्फों में
अपनी ही
बेखुदी से
खेल रहा
होता है
सोचता ही
नहीं है
जरा सा भी
कि सियारों
का हूँकना
अकेला कभी
नहीं होता है
आवाज से
आवाज
को मिलाता
दूसरा तीसरा
भी कहीं
आसपास
ही होता है
कुत्तों का
भौंकना
तक उस
माहौल में
अपने मूल
को भूल कर
सियारों के
ही अन्दाज
की उसी
आवाज में
अपने आप
ही अपनी
आवाज को
तोल रहा
होता है
हर तरफ
हुआँ हुआँ
का शोर ही
जो कुछ भी
जिसे भी
बोलना
होता है
बोल रहा
होता है
तालियाँ
ना सियारों
को आती
हैंं बजानी
ना कुत्तों
का ध्यान
तालियों के
शोर की
ओर हो
रहा होता है
‘उलूक’
कानों
में अपने
अपने ही
हाथ लगाये
अपना
ही कहा
अंधेरे में
ढूँढने की
खातिर
डोल रहा
होता है
कुछ नहीं
सुनाई देता
है कहीं से
भी उसे
सुनाई भी
कैसे दे
जब
हर समय
हर तरफ
एक हाथ से
बज रही
तालियों
का शोर
ही सब
कुछ बोल
रहा होता है ।
चित्र साभार: k--k.club
शोर के बीच
बोलने की
बेवकूफी
करता है
फिर ढूँढता
भी है अपनी
ही आवाज को
कान तक
बहुत कुछ
पहुँच रहा
होता है
उसमें खुद
का बोला
गया कुछ
नहीं होता है
प्रकृति
बहुत कुछ
सिखाती है
अपने ही
आसपास की
लेकिन
खुली आँख
का अँधा
नयनसुख
अपने ही
चश्मे का
आईना बना
अपनी ही
जुल्फों में
अपनी ही
बेखुदी से
खेल रहा
होता है
सोचता ही
नहीं है
जरा सा भी
कि सियारों
का हूँकना
अकेला कभी
नहीं होता है
आवाज से
आवाज
को मिलाता
दूसरा तीसरा
भी कहीं
आसपास
ही होता है
कुत्तों का
भौंकना
तक उस
माहौल में
अपने मूल
को भूल कर
सियारों के
ही अन्दाज
की उसी
आवाज में
अपने आप
ही अपनी
आवाज को
तोल रहा
होता है
हर तरफ
हुआँ हुआँ
का शोर ही
जो कुछ भी
जिसे भी
बोलना
होता है
बोल रहा
होता है
तालियाँ
ना सियारों
को आती
हैंं बजानी
ना कुत्तों
का ध्यान
तालियों के
शोर की
ओर हो
रहा होता है
‘उलूक’
कानों
में अपने
अपने ही
हाथ लगाये
अपना
ही कहा
अंधेरे में
ढूँढने की
खातिर
डोल रहा
होता है
कुछ नहीं
सुनाई देता
है कहीं से
भी उसे
सुनाई भी
कैसे दे
जब
हर समय
हर तरफ
एक हाथ से
बज रही
तालियों
का शोर
ही सब
कुछ बोल
रहा होता है ।
चित्र साभार: k--k.club