उलूक टाइम्स

मंगलवार, 10 जुलाई 2012

असली / नकली

अच्छे शहद
की पहचान
कर देती है
बडे़ बड़ों
को हैरान
आजकल
बाजार में
भी नहीं
आ रहा है
मेरा शहद
बेचने वाला
मित्र भी
बहुत नखरे
दिखा रहा है
सोचा घर में
ही क्यों ना
बनाया जाये
घर में आने
वाली
मधुमक्खियों
को ही क्यों
ना पटाया जाये
सच है हवा में
रहकर जमीन
बेचना या
जमीन में
रहकर हवाई
जहाज उड़ाना
सबको बिना पढे़
ही आ जाता है
इसलिये कोशिश
करने में
क्या जाता है
यही सोचकर
असली खेतों में
चला जाता हूँ
असली फूलों को
काट काट कर
असली गुलदस्ते
बना लाता हूँ
बैठे बैठे राह
तकता जाता हूँ
मधुमक्खियों का
आना तो दूर
दिखना भी
बंद हो जाता है
गूगल में देखने
पर भी इसका
कोई समाधान जब
नहीं मिल पाता है
तब मजबूरी में
ये बेवकूफ
सारी बातें
अपने प्रकृति
प्रेमी मित्र
के संग
बांंटने  चला
जाता है
मित्र एक
प्लास्टिक के
फूलों का गुलदस्ता
ले कर आता है
चीनी के घोल में
उसको डुबाता है
कूड़े के ढेर
के बगल में
उसको फेंक
कर चला आता है
तुरंत ही सारा
शांत माहौल
मधुमखियों की
भिनभिनाहट
से गुंजायमान
हो जाता है
असली शहद
बनाने का
असली तरीका
और उस
शहद को
पहचानने वाले
असली लोगों
का पता
देखिये कितनी
आसानी से
मिल जाता है।

सोमवार, 9 जुलाई 2012

सुझाव

पहले खुद ही
पेड़ और पौंधे
घर के आसपास
अपने लगाता है
फिर बंदर आ गये
बंदर आ गये
भी चिल्लाता है
किसने कहा था
इतनी मेहनत कर
अपने लिये खुद
एक गड्ढा तैयार कर
कटवा क्यों नहीं देता
सब को एक साथ
पैसा आ जायेगा बहुत
तेरे दोनो हाथ
जमीन भी खाली
सब हो जायेगी
ये अलग बात
वो अलग से तुझको
नामा दिलवायेगी
फिर सुबह पीना
शाम को पीना
मौज में सारी
जिंदगी तू जीना
पढ़ा लिखा है बहुत
सुना है ऎसा
बताया भी जाता है
फिर क्यों पर्यावरण
वालों के सिखाये
में तू आता है
थोड़ा सा अपनी
बुद्धी क्यों नहीं
कभी लगाता है
बंदर भी औकात में
अपनी आ जायेंगे
जब पेड़ ही
नहीं रहेंगे कहीं
तो क्या खाक
हवा में उड़कर
इधर उधर जायेंगे
कुछ समझा कर
बेवकूफी इतनी
तो ना कर
अभी भी सुधर जा
हमारी जैसी सोच
अपनी भी बना
बहुमत के साथ
अगर आयेगा
तो जीना भी
सीख जायेगा
कम से कम
बंदरों का
मुकाबला कर
ले जायेगा
मौका मिल
गया कभी तो
देश चलाने
वालों में शायद
कहीं से
घुस जायेगा
किस्मत फूट
गयी खुदा
ना खास्ता
कभी तेरी
तो क्या पता
भारत रत्न
ही तू कहीं से
झपट लायेगा।

रविवार, 8 जुलाई 2012

सावन / बादल / बरसात

बादलों
में भी

हिस्सा
दिखाता है

अपना सावन
अपनी रिमझिम
अपनी बरसात

अपनी
तरह से
चाहता है

खाली पेट
हो तो

दिलाता है
सूखे खेत
की याद

रोटी
पेट में
जाते ही
जरूर
आती है याद

फिर से बरसात

कोई बस
देखना भर
चाहता है
कुछ बूँदे

छाता खोल
ले जाता है

किसी को
भीगना होता है

खुले
आसमान
के नीचे
चला आता है

वो
उसकी
बारिश में

अपनी
बारिश
कहाँ
मिलाता है

सब को
अपनी अपनी
बारिश करना
आता है

कोई
अपने चेहरे
में ही बारिश
दिखाता है

किसी
का बादल

उसके
नयनों में ही
छा जाता है

किसी को
आ जाता है

कलम से
बरसात को
लिख ले जाना

कोई
अपने अंदर
ही बरसात
कर ले जाता है

पानी
कहीं पर
भी नजर
नहीं आता है

और
किसी का पेट

इतना
भर जाता है

कितना
खा गया
पता ही नहीं
चल पाता है

बादल
ऎसे में
गोल घूमना
शुरु हो जाता है

बारिश
का नाम भी
तब अच्छा
नहीं लगता

लेकिन
रोकते रोकते
भी बादल
फट जाता है

पानी
ही पानी
चारों तरफ
हो जाता है

कितने मन
और
कितने सावन

किसके
हिस्से में
कितने बादल

तब
जाके थोड़ा
समझ में
आता है ।

चित्र साभार: 
https://www.gettyimages.in

शनिवार, 7 जुलाई 2012

अल्विदा भास्कर

डा0 यशवंत भास्कर जोशी, विभागाध्यक्ष, कम्प्यूटर विज्ञान विभाग, कुमाऊँ विश्वविद्यालय, की असमय मृत्यू पर श्रद्धांंजलि

बूढ़ी माँ की
पथराई आँखों
के प्रश्नो को
अनुत्तरित
वहीं कहीं
छोड़ते हुए
किसी को
उठा के
ले जाना
एक रास्ते
ले जाकर
अग्नि को
समर्पित कर
के आना
वापस लौट
कर आना
खाली हाथ
फिर उसी
रास्ते से
सोचते हुऎ
समय से
पहले चल
दिया एक
साथी 'भास्कर'
मिलने शायद
खुद ही
सूर्यदेव से
विधि का
विधान है
हर किसी
के समझ
में ये
आता है
फिर भी
जाने वाला
पता नहीं
कहाँ कहाँ
किसके लिये
कितने कितने
शून्य छोड़
जाता है
और खुद
एक शून्य
होकर के
पता नहीं
किस शून्य
में विलीन
हो जाता है
ये हमें
कहां फिर
पता चल
पाता है।

शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

ढूँढ सके तो ढूँढ

सूरज निकलते
ही एक सवेरा
ढूँढता है
चाँद निकलते
ही एक अंधेरा
ढूँढता है
पढ़ लिख कर
सब कुछ 
एक पाठशाला
ढूँढता है
पीता नहीं है
एक  मधुशाला
ढूँढता है
मरने से डरता है
फिर भी हाला
ढूँढता है
कुआँरा है अपना
एक साला
ढूँढता है
मंदिर में जाकर
ऊपर वाला
ढूँढता है
बना कर मकान
एक घर
ढूँढता है
घर घर में
जाकर एक
बेघर ढूँढता है
सब के काम
में एक खता
ढूँढता है
संभाला कहाँ
खुद का पता
ढूँढता है
सोता नहीं है
लेकिन सपने
ढूँढता है
ठोकर लगा कर
सब को अपने
ढूँढता है
सब कुछ है
फिर भी
कुछ कुछ
ढूँढता है
सारी उमर
बेसबर
ढूँढता है
कोई नहीं
कहीं एक
कबर
ढूँढता है।