उलूक टाइम्स: पैसा
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शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

पागलों के साथ कौन खड़ा होना चाहता है ?

किसी को कुछ
समझाने के लिये
नहीं कहता है
‘उलूक’ आदतन
बड़बड़ाता है
देखता है अपने
चश्मे से अपना
घर जैसा
है जो भी
सामने से
नजर आता है
बक बका जाता
है कुछ भी
अखबार में जो
कभी भी
नहीं आता है
तेरे घर में नहीं
होता होगा
अच्छी बात है
उसके घर में
बबाल होता है
रोज कुछ ना
कुछ बेवकूफ
रोज आकर
साफ साफ
बता जाता है
रुपिये पैसे का
हिसाब कौन
करता है
सामने आकर
पीछे पीछे
बहुत कुछ
किया जाता है
अभी तैयारियाँ
चल रही है
नाक के लिये
नाक बचाने
के लिये झूठ
पर झूठ
अखबार में दिखे
सच्चों से बोला
जाता है
कौन कह रहा है
झूठ को झूठ
कुछ भी कह
दीजिये हर कोई
झूठ के छाते के
नीचे आकर खड़ा
होना चाहता है
किसी में नहीं है
हिम्मत सच के
लिये खड़े होने
के लिये हर कोई
सच को झूठा
बनाना चाहता है
‘उलूक’ के साथ
कोई भी नहीं है
ना होगा कभी
पागलों के साथ
खड़ा होना भी
कौन चाहता है ।

 चित्रसाभार: www.clipartsheep.com

मंगलवार, 10 मार्च 2015

वो लेखा अधिकारी जो नहीं कोशिश करता है हिसाब किताब समझने की ज्यादा समय एक ही कुर्सी पर बिता ले जाता है

अधिकारी का
मतलब 
अधिकार
से ही 
होता
होगा शायद 

ऐसा महसूस
होता है 

और ऐसा नजर 
भी आता है 
पैसे का
हिसाब किताब 

करने वाले को 
लेखाधिकारी
कहा जाता है 

लेखाधिकारी का
बहुत 
कम संख्या
में पाये जाने 

का हिसाब समझ 
में नहीं आता है 
वैसे तो सरकार
की 
नजर लेकर
सरकारी आदमी ही 

कुर्सी पर बैठाया
जाता है 
पर
कभी कभी
हिसाब किताब 

की मजबूरियाँ
गैर सरकारी 

को भी कुर्सी पर
बैठा ले जाता है

‘उलूक’ की आँख
भी देखती है 
पैसे
का हिसाब किताब 

पैसा खाने खिलाने
में उसे 
भी बहुत
मजा आता है

हर अधिकारी
के कार्यकाल 

की अवधि अलग
अलग होती है 

लेकिन लेखाधिकारी
बहुत 
थोड़े समय में
यहाँ से वहाँ 

कर दिया जाता है 
लेखा का हिसाब
समझने  
वाले
का इतना छोटा 

कार्यकाल
क्यों होता है 

किसी से पूछने
पर भी 
पता
नहीं चल पाता है 

थोड़ी सी जासूसी
करने पर 
कुछ
कुछ कहीं खुला 

हुआ नजर आता है 
लेखाधिकारी आता है 
कोशिश करता है 
समझने की
हिसाब किताब को 

और जैसे ही
समझने वाले को 

पता चलता है
वो समझ गया 

तुरंत उसका
स्थानांतरण 

किसी दूसरी
जगह का 

हिसाब किताब
समझने 
के लिये
कर दिया जाता है ।

चित्र साभार: www.presentermedia.com

सोमवार, 9 जुलाई 2012

सुझाव

पहले खुद ही
पेड़ और पौंधे
घर के आसपास
अपने लगाता है
फिर बंदर आ गये
बंदर आ गये
भी चिल्लाता है
किसने कहा था
इतनी मेहनत कर
अपने लिये खुद
एक गड्ढा तैयार कर
कटवा क्यों नहीं देता
सब को एक साथ
पैसा आ जायेगा बहुत
तेरे दोनो हाथ
जमीन भी खाली
सब हो जायेगी
ये अलग बात
वो अलग से तुझको
नामा दिलवायेगी
फिर सुबह पीना
शाम को पीना
मौज में सारी
जिंदगी तू जीना
पढ़ा लिखा है बहुत
सुना है ऎसा
बताया भी जाता है
फिर क्यों पर्यावरण
वालों के सिखाये
में तू आता है
थोड़ा सा अपनी
बुद्धी क्यों नहीं
कभी लगाता है
बंदर भी औकात में
अपनी आ जायेंगे
जब पेड़ ही
नहीं रहेंगे कहीं
तो क्या खाक
हवा में उड़कर
इधर उधर जायेंगे
कुछ समझा कर
बेवकूफी इतनी
तो ना कर
अभी भी सुधर जा
हमारी जैसी सोच
अपनी भी बना
बहुमत के साथ
अगर आयेगा
तो जीना भी
सीख जायेगा
कम से कम
बंदरों का
मुकाबला कर
ले जायेगा
मौका मिल
गया कभी तो
देश चलाने
वालों में शायद
कहीं से
घुस जायेगा
किस्मत फूट
गयी खुदा
ना खास्ता
कभी तेरी
तो क्या पता
भारत रत्न
ही तू कहीं से
झपट लायेगा।

गुरुवार, 29 अक्टूबर 2009

संदेश


चाँद पे जाना मंगल पे जाना
दुनिया बचाना बच्चो
मगर 
भूल ना जाना ।

मोबाइक में आना मोबाइल ले जाना
कापी पेन बिना लेकिन स्कूल ना जाना ।

केप्री भी बनाना हिपस्टर सिलवाना
खादी का भी थोड़ा सा नाम कुछ बचाना ।

जैक्सन का डांस हो बालीवुड का चांस हो
गांधी टैगोर की बातें कभी तो सुन जाना ।

पैसा भी कमाना बी एम डब्ल्यु चलाना
फुटपाथ मे सोने वालों को ना भूल जाना ।

भगत सिंह का जोश हो सुखदेव का होश हो
आजाद की कुर्बानी जरा बताते चले जाना ।

पंख भी फैलाना कल्पना में खो जाना
दुनिया बनाने वाले ईश्वर को ना भुलाना ।

कम्प्टीशन में आना कैरियर भी बनाना
माँ बाबा के बुढापे की लाठी ना छुटवाना ।


चित्र साभार: 
https://www.vecteezy.com/