उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 16 मई 2014

लो आ गई अच्छे दिन लाने वाली एक अच्छी सरकार

घर से निकलना
रोज की तरह
रोज के रास्ते से
रोज के ही वही
मिलने वाले लोग

रोज की हैलो हाय
नमस्कार पुरुस्कार

बस कुछ हवा का
रुख लग रहा था
कुछ कुछ अलग
बदला बदला सा

सबसे पहले वही
तिराहे का मोची
जूता सिलता हुआ

उसके बाद
चाय के
खोमचे वाला
दो महीने से
सर पर रखी
उसकी वही टोपी
पार्टी कार्यालय
से मिली हुई

नगरपालिका के
दिहाड़ी कर्मचारियों
के द्वारा खुद
दिहाड़ी पर रखे हुऐ
अट्ठारह बरस के
हो चुके लड़के

अच्छे लोगों के
खुद के घरों को
साफ कर सड़क
पर फेंके गये
पालीथीन में
तरतीब से बंद कर
मुँह अंधेरे फेंके गये
कूड़े के ढेरों से
उलझते हुऐ

उसी सब के बीच
तिराहे पर मेज पर
रखा रँगीन टी वी
और उसके चारों
ओर लगी भीड़
गिनते हुऐ
हार और जीत

भीख माँगने वाले
अपनी पुरानी
उसी जगह पर
पुराने समय के
हिसाब से
रोज की तरह
चिल्लाते हुऐ
नमस्कार
कुछ दे जाते
सरकार

सड़क पर
सुनसानी
और उससे लगे
हुऐ घरों से
लगातार
आ रहा चुनाव
विश्लेषण का शोर

माल रोड में
गाड़ियाँ और
दौड़ते हुऐ
दुपहियों पर
लहराते झंडे

खुशी से झूमते
कुछ लोग
दिमाग में लगता
हुआ बहुत जोर

बस यह समझने
की कोशिश कि
कुछ बदल गया है
और वो है क्या

लौटते लौटते
अचानक समझ में
जैसे कुछ चमका
कुछ समझ आया

‘उलूक’ को अपने
पर ही गुस्सा
ऐसे में आना
ही था आया

बेवकूफ था
पता था
पर इतना ज्यादा
सोच कर अपनी
बेवकूफी पर
खुद ही मुस्कुराया

फिर खुद ही
खुद को ही
इस तरह से
कुछ समझाया

आज का दिन
आने वाले
अच्छे दिनों का
पहला दिन है

कितने लोग
इस दिन को
कब से रहे
अंगुलियों
में गिन हैं
किसके आने
वाले हैं

इस सब के
गणित के
पीछे पीछे
मत जा
बस तू भी
सबकी तरह
अब तो
हो ही जा

शुरु हो जा
अच्छे दिनों को
आना है सोच ले
और खुश हो जा ।

गुरुवार, 15 मई 2014

बहुत जोर की हँसी आती है जब चारों तरफ से चोर चोर की आवाज आती है

सारे हैं शायद
चोर ही हैं
चोर जैसे
दिख तो
नहीं रहे हैं
पर लग रहा है
कि चोर हैं
इसलिये क्योंकि
सब मिलकर
चोर चोर
चिल्ला रहे हैं
किसको कह रहे
हैं चोर चोर
बस यही नहीं
बता रहे हैं
कुछ ऐसा जैसा
महसूस हो रहा है
चोर उसको चोर
कह रहा है
जो चोरों को
बहुत लम्बे
समय से चोरी
करते हुऐ
देख रहा है
कौन क्या क्या
चोर रहा है
उसको सब
पता है
उसको क्या
पता है
ये चोरों को
भी पता है
अब चोरों की
दुनियाँ में
जो चोर नहीं है
सबसे बड़ा
चोर तो वही है
अच्छा है चोरों
की दुनियाँ में
पुलिस नहीं होती है
चोर के पास ही
चोर को सजा में
ईनाम देने की
एक धड़ी होती है
घड़ी घंटी तभी
बजाती है जब
कहीं किसी दिन
चोरी नहीं होने की
खबर आती है
‘उलूक’ को वैसे तो
रात में ही आँख
खोलने में
विश्वास होता है
दिन में उसका
देखा हुआ
देखा जैसा भी
नहीं होता है
उसके घर से
शुरु होते हैं चोर
और कोई भी
मैं चोर हूँ
बिल्कुल भी
नहीं कहता है
मौका मिलता है
जैसे ही थोड़ा
सा कहीं भी
किसी के साथ
मिलकर चोर चोर
जरूर कह लेता है ।

बुधवार, 14 मई 2014

स्वर्ग जाना जरूरी नहीं होता है जब उसके बारे में बताने वाला आस पास ही पाया जाता है

काला चश्मा
पहन कर
अपने आस पास
की गंदगी को
रंगीन कपड़े
से ढक कर
उसके ऊपर से
खुश्बू छिड़क कर
उसके पास पूरी
जिंदगी बिता देना

बहुत से लोगों को
बहुत अच्छी तरह
से आता है

सबकी नहीं भी
होती होगी
पर बहुतों
की होती है
एक ऐसी ही आदत

उसमें शामिल
होते हैं हम भी
पूरी तरह
एक नहीं
कई बार

कथा भागवत
करने में माहिर
ऐसे लोगों को
गीता से लेकर
कुरान का भी ज्ञान
रुपिये पैसे के ऊपर
लगने वाले ब्याज
की तरह आता है

कीचड़ के ऊपर से
धोती को समेरते हुऐ
बातों बातों में एक
बहुत लम्बे रास्ते से
ध्यान हटाने की
कला में पारँगत
ऐसे ही लोग
स्वर्ग के बारे में
बताते चले जाते हैं

बहुत से लोगों की
इच्छा भी होती है
जिंदा ही स्वर्ग
भ्रमण करने की

उनके लिये ही
सारा इंतजाम
किया जाता है

देखते सुनते
सब लोग हैं
जानते बूझते
सब लोग है

यही सब लोग
बहुत दूर के
बजते हुऐ
ढोलों और
नगाड़ों की तरफ
कान लगाये हुऐ
खड़े होकर
काट लेते हैं समय

इनमें से कोई
भी कभी स्वर्ग
ना जिंदा जाता है
ना ही मरने के
बाद ही इनको
वहाँ आने
दिया जाता है

नगाड़ों
की आवाज
सुनाई भी
नहीं देती है

कुछ बज रहा है
कहीं दूर बहुत
बता दिया जाता है

क्या करे
कोई उनका
जिनको अपने
आसपास के
पेड़ पौंधों
को तक पागल
बनाना आता है

वो बताते
चले जाते हैं
स्वर्ग के इंद्र
के बारे में

कब वो स्वर्ग के
लायक नहीं
रह जाता है

ऐसे समय में
स्वर्ग को फिर से
स्वर्ग बनाने के लिये
नये इंद्र को लाने
ले जाने का ठेका
दूर कहीं बैठ कर
ही हो जाता है

कथाऐं
चलती रहती है
कथा वाचक
बताता चला जाता है

फिर से एक बार
स्वर्ग बनने बनाने की
कथा शुरु हो चुकी है

सीमेंट और रेत के
शेयरों का बहुत
तेजी से ऊपर चढ़ना
शुरु हो जाने का अब
और क्या मतलब
निकाला जाता है ।

मंगलवार, 13 मई 2014

बहुत कुछ ऐसे वैसे भी कह दिया जाता है बाद में पता चल ही जाता है

कई बार समझ में
नहीं आ पाता है
खाली स्थान
ही स्थान है या
किसी का गोदाम है
बिना किराये का
जिसमें कोई आ कर
रोज भूसा रख जाता है
कुछ कीमती सामान
रख कर जा रहा हूँ
पोटली में बांध कर
खोल कर बिल्कुल भी
नहीं देखना है जैसी
राय जाते जाते
जरूर दे जाता है
अक्ल हीनता का
आभास कभी
नहीं होता जिनको
उनसे आदतन
हो ही जाता है
भरोसा करना
ऐसे में ही हमेशा से
बहुत ज्यादा महँगा
पढ़ जाता है
कागज कलम दवात
लेकर रोज पेड़ के
नीचे बैठा जाता है
अब सोच का
क्या किया जाये
ऐसा जैसा भी तो
सोचा ही जाता है
रोज सबेरे मुँह अंधेरे
भी तो दिशा मैदान
आदमी ही जाता है
क्या निकाला कैसा था
क्या कभी किसी घर के
आदमी को भी
आकर कोई बताता है
अपनी पेट की बात
अपने तक रख
ही ले जाता है
पर उसमें एक सच
तो जरूर समाहित
माना ही जाता है
जैसा खाया होता है
उसी तरह का
बाहर भी आता है
कलम से निकलने
वाला लेकिन
बहुत बार वो सब
नहीं निकल पाता है
पोटली खाली थी या
किरायेदार गोबर सँभाल
कर निकल जाता है
पता ही नहीं चलता
होनी लिखने की जगह
कब बहुत कुछ
अनहोनी हो जाता है
ढोल की पोल खोलने
वाला खोल तो
बहुत कुछ जाता है
बाद में आता है और
पक्का अंदाज आ पाता है
कुछ ढोलों को तो
पहले से ही पूरा ही
खुला रखा जाता है ।

सोमवार, 12 मई 2014

सियार ने खड़े किये हुऐ हैं कान होशियारी जरूर दिखायेगा

आज हो ही गया
लग पड़ कर पूरा
बहुत दिन से
लग रहा था
कहीं है कुछ तो
अधूरा अधूरा
कल से दो चार
दिन के लिये
कोई कहीं
नहीं जायेगा
उसके बाद कौन
कहाँ पहुँच जायेगा
ये सब मशीनों का
मूड ही बता पायेगा
किस ने खर्च किया है
और कुछ खरीदा है
किस को मौका मिला
है बेचने का जिसने
बेच भी दिया है
बहुमत बनेगा और
सौ आना पक्का बनेगा
पर शक्ल उसी तरह
की ही तो ले पायेगा
जिस तरह का बहुमत
रोज कोई अपने
आसपास हमेशा
अपने जैसों के
साथ मिल बैठ
कर बनायेगा
कान का पूँछ से
वैसे तो कम ही
पड़ता है मतलब
कान पूँछ के पास
हो सकता है
नहीं भी जायेगा
काम निकालने
निकलवाने की भी
प्रैक्टिस करनी
पड़ती है जनाब
काम निकालने
के लिये बिना
पूँछ वाला भी
किसी और की
पूँछ मोड़ कर
अपने कान के
पीछे से भी
निकाल ले जायेगा
अँगुली में लगा
हुआ काला निशान
इतनी जल्दी भी
फीका नहीं हो जायेगा
कहीं खिलेगा चमकेगा
कहीं नीला होते होते
काला पड़ जायेगा
जो भी होगा
अच्छा होगा
अच्छे को ही
आगे ला
कर दिखायेगा
नहीं भी होगा
तो अच्छा
ही आया है
मान कर तसल्ली
करने का
संदेश दे जायेगा
कितनी बार
हो चुका है
इसी तरह का
क्या पता
इस बार
कुछ नया
इतिहास बनायेगा
छोटे छोटे गाँवों से
मिलकर बने देश ने
हमेशा गाँव दिखाया है
इसी बार बताया
जा रहा है
शहर से
होता हुआ शहर
अपनी चाल दिखायेगा
सोलहवाँ सावन
है सरकार
सरकार बनने
बनाने में
देख लीजियेगा
सोलह गुल
जरूर खिलायेगा
इसकी बने तो इसकी
उसकी बने तो उसकी
जैसी कहने वालों का
बोलबाला हमेशा ही
जलवा बिखेरता रहा है
इस बार भी नहीं चूकेगा
अपना दाँव चलाने का
मौका जरूर
निकाल ले जायेगा ।