उलूक टाइम्स: जूता
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गुरुवार, 7 मार्च 2019

करना कुछ नहीं है होता रहता है होता रहेगा सूरज की ओर देख कर बस छींक देना है



एक 
जूता
मार रहा है 

नहीं 
देखना है 

कुछ
नहीं कहना है 

एक 
जूता
खा रहा है 

नहीं 
देखना है 

कुछ
नहीं कहना है 

दूर दर्शन 
दिखा रहा है 

दिखा
रहा होगा 

बस
 देख लेना है 

अखबार में 
छप गया है 

छपा
दिया गया होगा 

बस
सोच लेना है 

उसके साथ
खड़े रहना है 

मजबूती से 

मजबूरी है 

जमीर 
होता ही है 

परेशान
करे 
तो बेच देना है 

घर की 
बातें हैं 

जनता
के बीच 
जा जा कर 
क्यों कहना है 

दिल्ली 
दूर
नहीं होती है 

दूरबीन लगाये 
बस उधर देखना है 

अकेले 
रहना भी 
कोई रहना है 

गिरोह में 
शामिल
नहीं होना
हिम्मत 
का काम 
हो सकता है 

पर
आत्मघाती 
हो जाता है 

सोच लेना है 

कविता करना 
कहानी कहना 
शाबाशी लेना 
शाबाशी देना 

गजब बात है 

सच की
थोड़ी सी
वकालत करना

बकवास 
करना 
हो जाता है 

ये भी
देख लेना है 

‘उलूक’ 

अपने 
आस पास के 
जूते जुराबों को 
छुपा देना है 

बस 
चाँद के
पाँव धो लेने है 

और
 सोच सोच कर 
बेखुदी में
कुछ पी लेना है 


कुछ भी 
हो जाये 

लेकिन 

बस 
धरती पर 
उतारा गया 

गफलत का 

वही चाँद 
देख लेना है 

वही चाँद 
खोद लेना है ।

चित्र साभार: https://openclipart.org

शुक्रवार, 16 मई 2014

लो आ गई अच्छे दिन लाने वाली एक अच्छी सरकार

घर से निकलना
रोज की तरह
रोज के रास्ते से
रोज के ही वही
मिलने वाले लोग

रोज की हैलो हाय
नमस्कार पुरुस्कार

बस कुछ हवा का
रुख लग रहा था
कुछ कुछ अलग
बदला बदला सा

सबसे पहले वही
तिराहे का मोची
जूता सिलता हुआ

उसके बाद
चाय के
खोमचे वाला
दो महीने से
सर पर रखी
उसकी वही टोपी
पार्टी कार्यालय
से मिली हुई

नगरपालिका के
दिहाड़ी कर्मचारियों
के द्वारा खुद
दिहाड़ी पर रखे हुऐ
अट्ठारह बरस के
हो चुके लड़के

अच्छे लोगों के
खुद के घरों को
साफ कर सड़क
पर फेंके गये
पालीथीन में
तरतीब से बंद कर
मुँह अंधेरे फेंके गये
कूड़े के ढेरों से
उलझते हुऐ

उसी सब के बीच
तिराहे पर मेज पर
रखा रँगीन टी वी
और उसके चारों
ओर लगी भीड़
गिनते हुऐ
हार और जीत

भीख माँगने वाले
अपनी पुरानी
उसी जगह पर
पुराने समय के
हिसाब से
रोज की तरह
चिल्लाते हुऐ
नमस्कार
कुछ दे जाते
सरकार

सड़क पर
सुनसानी
और उससे लगे
हुऐ घरों से
लगातार
आ रहा चुनाव
विश्लेषण का शोर

माल रोड में
गाड़ियाँ और
दौड़ते हुऐ
दुपहियों पर
लहराते झंडे

खुशी से झूमते
कुछ लोग
दिमाग में लगता
हुआ बहुत जोर

बस यह समझने
की कोशिश कि
कुछ बदल गया है
और वो है क्या

लौटते लौटते
अचानक समझ में
जैसे कुछ चमका
कुछ समझ आया

‘उलूक’ को अपने
पर ही गुस्सा
ऐसे में आना
ही था आया

बेवकूफ था
पता था
पर इतना ज्यादा
सोच कर अपनी
बेवकूफी पर
खुद ही मुस्कुराया

फिर खुद ही
खुद को ही
इस तरह से
कुछ समझाया

आज का दिन
आने वाले
अच्छे दिनों का
पहला दिन है

कितने लोग
इस दिन को
कब से रहे
अंगुलियों
में गिन हैं
किसके आने
वाले हैं

इस सब के
गणित के
पीछे पीछे
मत जा
बस तू भी
सबकी तरह
अब तो
हो ही जा

शुरु हो जा
अच्छे दिनों को
आना है सोच ले
और खुश हो जा ।

रविवार, 27 अक्टूबर 2013

सबसे बड़ा सच तो झूठ होता है

सच को बस छोड़कर
सब कुछ चलता हुआ दिखाई देता है

सच सबके पास होता है 
जेब में कमीज और पेंट की
हाथ में कापी और किताब में

एक के सच से दूसरे को
कोई मतलब नहीं होता है

अपने अपने सच होते हैं
सब का आकार अलग होता है
सच किसी के पैर की चप्पल या जूता होता है

एक का सच 
दूसरे के काम का नहीं होता है 
कोई किसी के सच के बारे में
किसी से कुछ नहीं कहता है

हाँ झूठ बहुत ही मजेदार होता है
सब बात करते हैं झूठ की
झूठ का आकार नहीं होता है
एक का झूठ दूसरे के भी
बहुत काम का होता है

पर किसी को पता नहीं होता है
झूठ कहाँ होता है

सूचना का अधिकार
झूठ को ढूंढने का ही हथियार होता है 
सबसे ज्यादा चलता हुआ
वही दिख रहा होता है

सच
बेवकूफ
मैं सच हूं सोच सोच कर
एक जगह ही बैठा होता है

जहाँ पहुचने की कोई सोच भी नहीं सकता है
झूठ वहाँ जरूर पहले से ही पहुंचा होता है
झूठ के पैर नहीं होते है
'उलूक'
बहकाने के लिये ही
शायद यूँ ही कह दिया होता है । 

चित्र साभार: https://www.megapixl.com/

मंगलवार, 3 जुलाई 2012

कपडे़ का जूता

आज
एक छोटी
सी कहानी है

जो मैने
बस थोडे़
से में ही
यहां पर
सुनानी है

ये भी
ना समझ
लिया जाये
कि कोई
सुनामी है

जैसे
सबकी
कहानी होती है

किसी की
नयी तो
किसी की
बस
थोड़ी सी
पुरानी होती है

इसमें
एक मेरा
राजा है
और
दूसरी उसकी
अपनी रानी है

राजा मेरा
आज बहुत
अच्छे मूड
में नजर
आ रहा था

अपनी रानी
के लिये
तपती धूप में
एक मोची
के धौरे बैठा
कपड़े के जूते
सिलवा रहा था

मोची
पसीना
टपका रहा था

साथ में
कपड़े पर
सूईं से
टाँके भी 
लगाता
जा रहा था

राजा
आसमान के
कौओं को
देख कर
सीटी बजा
रहा था

मोची
कभी जूते
को देख
रहा था

कभी
राजा को
देख कर
चकरा रहा था

लीजिये
राजा जी

ये लीजिये
तैयार हो गया
ले जाइये

पर
चमड़ा छोड़
कपड़े पर
क्यों आ गये
बस ये बता
कर हमें जाइये

इतनी ही
विनती है हमारी
जिज्ञासा हमारी
जाते जाते
मिटा भी जाइये

राजा ने
जूता उठाया
मोची के हाथ
में उसके
दाम को टिकाया

अपना दायें
गाल को
छूने के लिये
मोची
की ओर
गाल को बढ़ाया

मोची भी
अब जोर से
खिलखिलाया

अरे
पहले अगर
बता भी देते तो
आपका क्या जाता

कपड़ा
जरा तमीज से
मैं भी काट ले जाता

एक कपड़े
का जूता
अपनी लुगाई
के लिये
भी शाम
को ले जाता

आपकी
तरह मेरा
गाल भी
बजने बजाने
के काम
से पीछा
छुड़ा ले जाता
राजा तेरा
क्या जाता।