उलूक टाइम्स: अच्छे दिन
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रविवार, 4 अक्टूबर 2015

गांंधी बाबा देखें कहाँ कहाँ से भगाये जाते हो और कहाँ तक भाग पाओगे

गांंधी जी

मैं कह
ही रहा था

कल परसों
की ही
बात थी

कब तक
बकरी की
माँ की तरह
खैर मनाओगे

दो अक्टूबर
तुम्हारी
बपौती नहीं है

किसी दिन
मलाई में
गिरी मक्खी
की तरह
निकाल कर
कहीं फेंक
दिये जाओगे

हो गया शुरु
तुम्हारा भी
देश निकाला

आ गई है खबर
सरकार ने सरकारी
आदेश है निकाला

‘गांंधी आश्रम’
के सूचना पटों
से अभी
निकाले जाओगे

‘खादी भारत’
होने जा रहा है
नया नामकरण

खादी
बुनने बुनाने
की किताबों
से भी भगा
दिये जाओगे

काम
हो रहा है
हर जगह तेजी से

नाम से
नाम को

हर जगह
मिटता मिटाता
लुटता लुटाता

अब आगे
यही सब
देख पाओगे

बहुत
कर लिये मौज
बाबा गांंधी

इतिहास
की किताबों से
खोद निकाल कर

जल्दी ही
खेतों के
गड्ढों में भी
बो दिये जाओगे

देख रहा है
‘उलूक’

बहुत कुछ
देखना है

अच्छा
होने वाला
अच्छे दिनों में

राष्ट्रपिता
की कुर्सी पर
जल्दी ही
किसी नेता जी को

ऊपर से अपने
बैठा हुआ पाओगे ।


चित्र साभार: news.statetimes.in

मंगलवार, 9 जून 2015

हाय मैगी किसने किया ये हाल तेरा हिसाब नहीं लगा पा रहे हैं

हाय मैगी
तू शहीद होने
जा रही है और
हम कुछ नहीं
कर पा रहे हैं
बहुत शर्म
आ रही है
कैसे हुआ
किसने किया
पता ही नहीं
कर पा रहे हैं  

फिर कैसे कहा
जा रहा है

समझ में नहीं
आ रहा है कि
अच्छे दिन
आ रहे हैं
बगुले खुश हैं
मेरे आसपास के
भजन गा रहे हैं
मछलियाँ 
अब
दिख रही हैं 
सतह पर
घड़ियाल तक
आँसू नहीं
बहा रहे हैं
अमन है चैन है
बिक रहा है
बहुत सस्ते में
सब ही खरीद
कर अपने अपने
घर परिवार
के लिये लिये
जा रहे हैं
‘उलूक’ ही बस
एक है इन
सब के बीच में
जिसके गले में
ही कहीं शब्द
अटक जा रहे हैं
गीत गाना चाहता है
मैगी तेरे वियोग का
मगर सुर ही
बिगड़ जा रहे हैं
कब लौटेगी
कैसे लौटेगी
चिंता हो रही है
लोग समझ
नहीं पा रहे हैं
थोड़ी सी ही सही
सांत्वना मिली है
जब से सुना है
बाबा रामदेव
देश के लिये
देश की मिट्टी
से बनी देश
वासियों के लिये
जल्दी ही खुद
बनाने जा रहे हैं।

चित्र साभार: www.fotosearch.com

शुक्रवार, 16 मई 2014

लो आ गई अच्छे दिन लाने वाली एक अच्छी सरकार

घर से निकलना
रोज की तरह
रोज के रास्ते से
रोज के ही वही
मिलने वाले लोग

रोज की हैलो हाय
नमस्कार पुरुस्कार

बस कुछ हवा का
रुख लग रहा था
कुछ कुछ अलग
बदला बदला सा

सबसे पहले वही
तिराहे का मोची
जूता सिलता हुआ

उसके बाद
चाय के
खोमचे वाला
दो महीने से
सर पर रखी
उसकी वही टोपी
पार्टी कार्यालय
से मिली हुई

नगरपालिका के
दिहाड़ी कर्मचारियों
के द्वारा खुद
दिहाड़ी पर रखे हुऐ
अट्ठारह बरस के
हो चुके लड़के

अच्छे लोगों के
खुद के घरों को
साफ कर सड़क
पर फेंके गये
पालीथीन में
तरतीब से बंद कर
मुँह अंधेरे फेंके गये
कूड़े के ढेरों से
उलझते हुऐ

उसी सब के बीच
तिराहे पर मेज पर
रखा रँगीन टी वी
और उसके चारों
ओर लगी भीड़
गिनते हुऐ
हार और जीत

भीख माँगने वाले
अपनी पुरानी
उसी जगह पर
पुराने समय के
हिसाब से
रोज की तरह
चिल्लाते हुऐ
नमस्कार
कुछ दे जाते
सरकार

सड़क पर
सुनसानी
और उससे लगे
हुऐ घरों से
लगातार
आ रहा चुनाव
विश्लेषण का शोर

माल रोड में
गाड़ियाँ और
दौड़ते हुऐ
दुपहियों पर
लहराते झंडे

खुशी से झूमते
कुछ लोग
दिमाग में लगता
हुआ बहुत जोर

बस यह समझने
की कोशिश कि
कुछ बदल गया है
और वो है क्या

लौटते लौटते
अचानक समझ में
जैसे कुछ चमका
कुछ समझ आया

‘उलूक’ को अपने
पर ही गुस्सा
ऐसे में आना
ही था आया

बेवकूफ था
पता था
पर इतना ज्यादा
सोच कर अपनी
बेवकूफी पर
खुद ही मुस्कुराया

फिर खुद ही
खुद को ही
इस तरह से
कुछ समझाया

आज का दिन
आने वाले
अच्छे दिनों का
पहला दिन है

कितने लोग
इस दिन को
कब से रहे
अंगुलियों
में गिन हैं
किसके आने
वाले हैं

इस सब के
गणित के
पीछे पीछे
मत जा
बस तू भी
सबकी तरह
अब तो
हो ही जा

शुरु हो जा
अच्छे दिनों को
आना है सोच ले
और खुश हो जा ।