उलूक टाइम्स: स्वर्ग
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सोमवार, 31 अगस्त 2015

शाख में बैठे ‘उलूक’ की श्रद्धांजलि माननीय एम एस कालबुर्गी जी वैसे भी कौन सा आपको स्वर्ग जाना है

पढ़ने लिखने वाले
विदव्तजनो के लिखे
कहे को पढ़ने के बाद
कुछ कहा करो विद्वानो
बेवकूफों की बेवकूफी
के आसपास टहल कर
अपनी खुद की छीछालेदारी
तो मत किया करो
 टिप्पणी दे कर
मत बता जाया करो
बिना पढ़े कुछ भी
लिख दिये गये पर
कह गये हो निशान
छोड़ कर मत
बता जाया करो
आया भी करो
और जाया भी करो
ये कल 'रवीश कुमार'
पर लिखे गये उसके
खुद के लिखे गये पर
उलूक के लिखे गये पर
लिखने वालों के
लिये लिख दिया
अब आगे सुनिये
अगस्त के महीने के
अंतिम दिन का पन्ना
कान बंद कर के सुनना
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
की घोटे गये गले में
एक और गला गिनना
शोर मचाना ताली बजाना
गाना बना कर गाना
किसी एक बेवकूफ के लिये
एक बेवकूफ झंडा बन जाना
खुद कुछ भी नहीं होना
किसी के खाने के ऊपर के
खाने को जमा करने करवाने
का रास्ता हो जाना
लगे रहिये लेकिन
कर्नाटक के एक और
दाभोलकर
एम एस काल्बुर्गी
का सरे आम मारा जाना
दिखा गया आईना
एक बार फिर
से ढोल पीटने
वालों को इस देश के
ढोलचियों के लिये
उसमें हम सब हैं
तुम मैं और वो और
शाख पर बैठा उलूक
हमेशा की तरह
जिम्मेदार देश की
बरबादी के लिये
देखता हुआ सारे
ढपोरशंखी पहरेदारों
को अपनी रात
की बंद आँखों से ।

चित्र साभार: www.abplive.in

सोमवार, 22 सितंबर 2014

सब कुछ नीचे का ही क्यों कहा जाये जब कभी ऊपर का भी होना होता है

ऊपर
पहुँचने पर

अब
ऊपर
कहने पर

पूछ
मत बैठना

कौन सा ऊपर

वही ऊपर
जहाँ से ऊपर

सुना है
कुछ भी
नहीं होता है

बचा कुचा
बाकी जो
भी होता है

सब
उस ऊपर
के नीचे
ही होता है

हाँ
तो उस ऊपर

अब
मुझे ही
कुछ संशय
यहाँ होना
यहीं से
शुरु होता है

ऊपर
अगर पहुँच
भी गया तो

कहाँ
भेजा जायेगा

दो जगह

यहाँ
नीचे वालों को
समझाई
गई होती हैंं 

जिंदा
रहते रहते

एक
ऊँची जगह
पर स्वर्ग

और
एक
नीची जगह
पर नरक
होता है

अब
ऐसी बात
पूछी भी
किससे जाये

पता नहीं
किस किस को
उस ऊपर
के बारे में

क्या क्या
पता होता है

यहाँ के
हिसाब से
इस जमाने में
सही ही
सही होता है

और
सही का ही
बहुमत होता है

अल्पमत वाला
हमेशा ही
गलत होता है

सही को
देख देख कर
खुंदक में
कुछ ना कुछ
कहता रहता है

उसी को
कहना होता है
उसी कहने को
उसी को
सुनना भी होता है

याद
ना रह जाये कहीं
बहुत दिनों तक

इसलिये
लिख लिखा के
कहीं पर
रख देना होता है

इस सब
लिखे लिखाये
के
हिसाब किताब
पर ही

ऊपर
जा कर के
कर देना होता है

‘उलूक’
नीचे के सारे
स्वर्गवासियों के साथ

जिसे
नहीं रहना होता है

उसे
ऊपर जाकर भी

ऊपर के
नीचे वाले में
ही रहना होता है ।

चित्र साभार: http://theologyclipart.com/

बुधवार, 14 मई 2014

स्वर्ग जाना जरूरी नहीं होता है जब उसके बारे में बताने वाला आस पास ही पाया जाता है

काला चश्मा
पहन कर
अपने आस पास
की गंदगी को
रंगीन कपड़े
से ढक कर
उसके ऊपर से
खुश्बू छिड़क कर
उसके पास पूरी
जिंदगी बिता देना

बहुत से लोगों को
बहुत अच्छी तरह
से आता है

सबकी नहीं भी
होती होगी
पर बहुतों
की होती है
एक ऐसी ही आदत

उसमें शामिल
होते हैं हम भी
पूरी तरह
एक नहीं
कई बार

कथा भागवत
करने में माहिर
ऐसे लोगों को
गीता से लेकर
कुरान का भी ज्ञान
रुपिये पैसे के ऊपर
लगने वाले ब्याज
की तरह आता है

कीचड़ के ऊपर से
धोती को समेरते हुऐ
बातों बातों में एक
बहुत लम्बे रास्ते से
ध्यान हटाने की
कला में पारँगत
ऐसे ही लोग
स्वर्ग के बारे में
बताते चले जाते हैं

बहुत से लोगों की
इच्छा भी होती है
जिंदा ही स्वर्ग
भ्रमण करने की

उनके लिये ही
सारा इंतजाम
किया जाता है

देखते सुनते
सब लोग हैं
जानते बूझते
सब लोग है

यही सब लोग
बहुत दूर के
बजते हुऐ
ढोलों और
नगाड़ों की तरफ
कान लगाये हुऐ
खड़े होकर
काट लेते हैं समय

इनमें से कोई
भी कभी स्वर्ग
ना जिंदा जाता है
ना ही मरने के
बाद ही इनको
वहाँ आने
दिया जाता है

नगाड़ों
की आवाज
सुनाई भी
नहीं देती है

कुछ बज रहा है
कहीं दूर बहुत
बता दिया जाता है

क्या करे
कोई उनका
जिनको अपने
आसपास के
पेड़ पौंधों
को तक पागल
बनाना आता है

वो बताते
चले जाते हैं
स्वर्ग के इंद्र
के बारे में

कब वो स्वर्ग के
लायक नहीं
रह जाता है

ऐसे समय में
स्वर्ग को फिर से
स्वर्ग बनाने के लिये
नये इंद्र को लाने
ले जाने का ठेका
दूर कहीं बैठ कर
ही हो जाता है

कथाऐं
चलती रहती है
कथा वाचक
बताता चला जाता है

फिर से एक बार
स्वर्ग बनने बनाने की
कथा शुरु हो चुकी है

सीमेंट और रेत के
शेयरों का बहुत
तेजी से ऊपर चढ़ना
शुरु हो जाने का अब
और क्या मतलब
निकाला जाता है ।

शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

समय के साथ मर जाने वाले लिखे पढ़े को छापने से क्या होगा

पेड़ की शाख पर ही
बैठ कर देखा था
जटायू ने भी
बहुत कुछ उस समय
बहुत कुछ बताया भी था
मरते मरते तक भी
राम को सीताहरण
का आँखों देखा हाल
तुलसीदास जी तो
लिख भी गये थे
रामचरित मानस में
जंगल के बीच हुआ
सारा का सारा बबाल
दूरियाँ बहुत थी
बात जाती ही थी
बहुत दूर तलक जब
निकल ही लेती थी
गजल तब भी बनती थी
संगीत भी दिया जाता था
अपसरायें भी उतर लेती थी
कभी कभी ऊपर
आसमान से नीचे
इस धरती पर
धरती पर ही जैसे
एक स्वर्ग उतर आता था
लिखा गया होगा
जरूर कहीं ना कहीं
सच भी होगा
एक कहाँनी नहीं होगी
जरूर इतिहास के किसी
मोड़ का वर्णन होगा
और इसी लिये तो
उस जमाने का राम
आज तक जिंदा होगा
औरत का अपहरण
और उसके घर से
उसके निष्काशन का बिल
उस समय की संसद में
ही पास हो गया होगा
इसी लिये बेधड़क
हिम्मती लोगों के द्वारा
आज तक प्रयोग
हो रहा होगा
बस राम राज्य की
कल्पना को कहीं
ऊपर से संशोधन
के लिये लौटा
दिया गया होगा
जटायू को दूर तक
नहीं देखने की
चेतावनी भी तभी
दे दी गई होगी
एक उल्लू भी तभी से
हर शाख पर बैठा
दिया गया होगा
और इन्ही उल्लुओं
की खबर छापने के लिये
उल्लुओं में सबसे उल्लू
को एक अखबार निकालने
के लिए कह
दिया गया होगा
इतिहास भी होगा
सीता और राम
भी चलता चलेगा
तुलसीदास की
रामचरित मानस की
रायल्टी के लिये
सुप्रीम कोर्ट का
फैसला भी होगा
उल्लूक की समझ में
नहीं आई तो बस
यही बात कि उसने
उल्लूक के अखबार
की किताब छाप लेने
को क्यों कहा होगा
शायद उसे मालूम
हो गया होगा
आने वाले समय में
कूड़े के व्यापार में ही
नुकसान कम और
नफा ज्यादा होगा !

रविवार, 20 मई 2012

वट सावित्री

श्रीमती जी
सुबह से
ही आज
इधर उधर
जा रही थी


कभी
नयी साड़ी
पहन रही थी


कभी
नाक में
नथ चड़ा
रही थी


अरे
आज तो
जल्दी उठ
कर के नहा
भी लीजिये
का हल्ला
मचा रही थी


पता चला
'वट सावित्री'
का व्रत कर


पूजा
घर पर ही
करवा रही थी


मैने पूछा उनसे


अजी ये
वट सावित्री
क्या बला है


घरवाली बोली


मेरे इस व्रत
को करने से ही
आपका होने
वाला भला है


सावित्री
के पति
सत्यवान
के प्राण
वट वृक्ष के नीचे
जब लेने आता
है यमराज


वापस
लौटने में
स्वर्ग के
द्वार तक
सावित्री को
अपने ही पीछे
आता हुवा
पाता है जब धर्मराज


उसकी
जिद के आगे
जब वो हार जाता है


सत्यवान
के प्राण
उसे लौटाता
है यमराज


इसी लिये
सावित्री
वट वृक्ष
के साथ
अभी तक
पूजी जाती है


हर पत्नी को
प्राण प्यारी
का दर्जा वो
ऎसे ही
दिलवाती है


पत्नी
पति के
प्राणों को
बिल्कुल भी
निकलने देना
कभी नहीं
चाहती है


एक ही बार में
पति के प्राण
निकाल निकाल
के यमराज
अगर ले जायेगा


तो बताइये
पत्नी के
निकालने
के लिये फिर
क्या कुछ
रह जायेगा


यमराज जी
आप ये काम
पत्नियों
को ही
सौंप दीजिये


काहे
पंगे में पड़ते हैं
धीरे धीरे
प्राण प्यारी को ही
पति परमेश्वर
के प्राण
निचोड़ने दीजिये।