उलूक टाइम्स

रविवार, 15 जून 2014

पिताजी आइये आपको याद करते है आज आप का ही दिन है


आधा महीना जून का पूरा हुआ

पता चलता है
पितृ दिवस होता है इस महीने में

कोई एक दिन नहीं होता है
कई दिन होते हैं
अलग अलग जगह पर अपने अपने हिसाब से

क्या गणित है इसके पीछे
कोशिश नहीं की जानने की कभी
गूगल बाबा को भी पता नहीं होता है

यूँ भी पिताजी को गुजरे कई बरस हो गये

श्राद्ध के दिन
पंडित जी याद दिला ही देते है
सारे मरने पैदा होने के दिनों का
उनके पास लेखा जोखा
किसी पोटली में जरूर बंधा होता है

आ जाते है सुबह सुबह
कुछ तर्पण कुछ मंत्र पढ़ कर सुना देते हैं

अब चूंकि खुद भी पिता जी बन चुके हैं

साल के बाकी दिन
बच्चों की आपा धापी में ही बिता देते हैं

पिताजी लोग शायद धीर गंभीर होते होंगे

अपने पिताजी भी
जब याद आते हैं तो कुछ ऐसे जैसे ही याद आते हैं

बहुत छोटे छोटे कदमों के साथ
मजबूत जमीन ढूँढ कर उसमें ही रखना पाँव

दौड़ते हुऐ कभी नहीं दिखे हमेशा चलते हुऐ ही मिले

कोई बहुत बड़ी इच्छा आकाँक्षा
होती होगी उनके मन में ही कहीं 
दिखी नहीं कभी भी

कुछ सिखाते नहीं थे कुछ बताते नहीं थे
बस करते चले जाते थे कुछ ऐसा 
जो बाद में अब जा कर पता चलता है

बहुत कम लोग करते हैं ज्यादातर

अब कहीं भी वैसा कुछ नहीं होता है

गाँधी जी के जमाने के आदमी जरूर थे
गाँधी जी की बाते कभी नहीं करते थे

और समय भी हमेशा एक सा कहाँ रहता है
समय भी समय के साथ
बहुत तेज और तेज बहने की कोशिश करता रहता है

पिताजी का जैसा
आने वाला पिता बहुत कम होता हुआ दिखता है

क्या फर्क पड़ता है पिताजी आयेंगे पिताजी जायेंगे

बच्चे आज के कल पिताजी हो जायेंगे
अपने अपने पिताजी का दिन भी मनायेंगे

भारतीय संस्कृति में
बहुत कुछ होने से कुछ नहीं कहीं होता है

एक एक करके
तीन सौ पैंसठ दिन किसी के नाम कर के

गीत पश्चिम या पूरब से लाकर
किसी ना किसी बहाने से
किसी को याद कर लेने की दौड़ में
हम अपने आप को कभी भी दुनियाँ में
किसी से पीछे होता हुआ नहीं पायेंगे

‘उलूक’
मजबूर है तू भी आदत से अपनी
अच्छी बातों में भी तुझे छेद हजारों नजर आ जायेंगे

ये भी नहीं 
आज के दिन ही कुछ अच्छा सोच लेता

डर भी नहीं रहा कि
पिताजी पितृ दिवस के दिन ही नाराज हो जायेंगे।

चित्र साभार: 
https://www.gograph.com/

शनिवार, 14 जून 2014

एंटी करप्शन पर अब पढ़ाई लिखाई भी होने जा रही है

बड़ी खबर है
रहा नहीं गया
कुछ और लिखने
की सोचने की
जरूरत ही
नहीं पड़ी आज
अखबार की खबर
से ही बहुत
कुछ मिल गया
अच्छे दिन जब
आने ही वाले हैं
इसीलिये अच्छी
खबरें भी आ रही हैं
बहुत कुछ होने
जा रहा है
आने वाले दिनो में
बता रही हैं
असली बात तो
इन्ही बातों में
रह जा रही है
खुशी होने से
कलम भी भटक
कर उधर को
चली जा रही है
तो सुनिये
खबर ये आ रही है
विश्वविध्यालय
पढ़ायेंगे एंटी
करप्शन का पाठ
मानव संसाधन
मंत्रालय की मंशा
कुछ इस तरह
का बता रही है
डिग्री कोर्सों में होगा
एंटी करप्शन
का टापिक
ये बात समझ में
बहुत अच्छी तरह
से आ रही है
पर्यावरण पढ़ाना
शुरु किया था
कुछ साल पहले
उसे पढ़ाने के लिये
पढ़ाने वाले को
कुछ भी पढ़ने की
जरूरत कहाँ
हो जा रही है
कामर्स विषय वाली
कामर्स विभाग में
पर्यावरण पढ़ा
ले जा रही है
इतिहास भी होता है
पर्यावरण में
इतिहास वाली
अपने विभाग में
बता पा रही है
करप्शन पर भी
किसी ट्रेनिग की
जरूरत नहीं पढ़ेगी
विश्वविध्यालयों के
लोगों को भी
करप्शन का कोर्स
जहाँ की जनता
बहुत पहले से समझ
और समझा रही है
अच्छा है कुछ लोगों की
ऊपरी आय कर लेने
के लिये एक और रास्ता
अच्छे दिन लाने वाली
एक अच्छी सरकार
जल्दी ही लाने जा रही है ।

शुक्रवार, 13 जून 2014

गौण ही है पर यही है बताने के लिये आज भी

उसके चेहरे पर
शिकन नहीं है
सुना है उसकी
शोध छात्रा ने
शिकायत की है
छेड़ छाड़ की

अच्छे दिन
लाने वाले लोगों
को वैसे भी
देश देखना है
ये बातें तो
छोटे लोग
करते हैं तेरे जैसे

कोई हल्ला गुल्ला
जब नहीं है कहीं
कोई एफ आई आर
नहीं है कोई कहीं
कोई सबूत नहीं है

फिर अगर कोई
खुले आम बिना
किसी झिझक
मुस्कुराते हुऐ
घूमता है तो
तेरे को काहे
चिढ़ लग रही है

लड़के लड़कियाँ
परीक्षा दें या
मोमबत्तियाँ लेकर
शहर की गलियों में
शोर करने निकल पड़े
निर्भया होने से
तो बच ही गई है

वैसे भी जब तक
कोई अपराध
सिद्ध नहीं
हो जाता है
अपराध कहाँ
और कब
माना जाता है

और  अगर
घर की बात
घर में रहे तो
अच्छा होता है

‘उलूक’
तुझे तो
इस सब
के बारे में
सोच कर ही
झुर झुरी
हो जाया
करती है

उनको पता
चल गया
तू सोच रहा है
तो बबाल
हो जायेगा

उसने किया है
तो होने दे
बड़े आदमी
के बड़े हाथ
और सारे
आस पास के
बड़े लोग
उसके साथ

तू अपनी
गुड़ गुड़ी
खुशी से
यहाँ छाप
सिर खुजा
और उसको
मौज करते हुऐ
रोज का रोज
देखता जा
फाल्तू की
अपनी बात
उलूक टाइम्स में
ला ला कर सजा ।

गुरुवार, 12 जून 2014

हद नहीं होती जब हदों के साथ उसे पार किया जाता है

हदें पार करना
आसान होता है

बस समझने तक
सालों गुजर जाते हैं

पिता जी किया
करते थे बस
हद में रहने की बात

शायद
उस समय
नहीं की जाती
होंगी पार हदें
उस तरह से
जिस तरह से पार
कर ली जाती हैं आज

बहुत आसान
होता है हदों को
पार कर ले जाना
यूँ ही खेल खेल में

बनाना
होता है बहुमत
दिखाना
भी होता है

वो सब
गलत होता है

जो अकेले
अकेले में
एक अकेले ने
कर लिया होता है

और
पिताजी
आप भी तो
अकेले ही
हुआ करते थे
लिये धनुष
और तीर
अपने विचारों का
अपने ही हाथ

सीखने
वाला भी
अकेला रहा
करता था
कभी भी नहीं
बन पाता था बहुमत

एक और एक
दो की बातों का
समझ में आने
लगा है अब
पार करने का
तरीका हदों को

सीखा
नहीं जाता है
लेकिन बस
सलीका
बहुमत बनाने का

समझ में
आती है
बहुत छोटी सी
एक बात

जो अकेले
किया जाता है
वो सही
कभी नहीं होता
गलत हो जाता है

बहुमत के द्वारा
एक अकेले को
हद में रहना
लेकिन
बहुत आसानी से
सिखा दिया जाता है

और
उसी हद को
बहुत प्यार से
बहुमत बना के
बहुत सी हदों के
साथ साथ शहीद
कर दिया जाता है

'उलूक'
अकेला चना
बस एक चना
ही रह जाता है।

बुधवार, 11 जून 2014

रोज होती है मौत रोज ही क्रिया कर्म रोज बनती हैं अस्थियाँ

रोज होती है मौत 
रोज ही क्रिया कर्म 
रोज बनती हैं अस्थियाँ
विसर्जित होने के लिये 

जिनको कभी भी नहीं मिलना होता है 
कोई संगम
प्रवाहित होने के लिये 

कपड़े से मुँह बंद कर रख दी जाती हैं 
मिट्टी के घड़े में रखी हुई हैं सोच कर 
अपने ही अगल बगल कहीं 

महसूस करने के लिये कि
हैंं आस पास कहीं 

दिखते रहने के लिये
पर दिखाई नहीं जाती हैं 
किसी को भी कभी भी

इसलिये नहीं
कि कोई दिखाना नहीं चाहता है 
बल्कि इसलिये
कि दिखा नहीं पाता है 

सभी के पास होते हैं
अपने अपने अस्थियों के 
गले गले तक भरे मिट्टी के कुछ घड़े 
फोड़ने के लिये 

पर ना तो
घड़ा फूटता है कभी 
ना ही राख फैलती है कहीं
किसी गंगाजल में 
प्रवाहित होने के लिये 

बस
एक के बाद एक 
इकट्ठा होते चले जाते हैं 
अस्थियों के घड़े 
कपड़े से मुँह बंद किये हुऐ 

जिसमें अस्थियाँ 
हड्डियों और माँस की नहीं 
एक सोच की होती हैं 

और
रोज ही
किसी पेड़ पक्षी
या आसपास उड़ती धूल मिट्टी
की बात को लेकर 
लिख ही लेता है कोई यूँ ही कुछ

और रोज बढ़ जाता है
एक अस्थि का घड़ा 
अगल बगल कहीं 
कपड़े से बंधा हुआ 

बंद किये हुऐ
एक सोच को 
जो बस
दफन होने के लिये 
ही जन्म लेती है । 

चित्र साभार: https://hindi.oneindia.com/