हदें पार करना
आसान होता है
बस समझने तक
सालों गुजर जाते हैं
पिता जी किया
करते थे बस
हद में रहने की बात
शायद
उस समय
नहीं की जाती
होंगी पार हदें
उस तरह से
जिस तरह से पार
कर ली जाती हैं आज
बहुत आसान
होता है हदों को
पार कर ले जाना
यूँ ही खेल खेल में
बनाना
होता है बहुमत
दिखाना
भी होता है
वो सब
गलत होता है
जो अकेले
अकेले में
एक अकेले ने
कर लिया होता है
और
पिताजी
आप भी तो
अकेले ही
हुआ करते थे
लिये धनुष
और तीर
अपने विचारों का
अपने ही हाथ
सीखने
वाला भी
अकेला रहा
करता था
कभी भी नहीं
बन पाता था बहुमत
एक और एक
दो की बातों का
समझ में आने
लगा है अब
पार करने का
तरीका हदों को
सीखा
नहीं जाता है
लेकिन बस
सलीका
बहुमत बनाने का
समझ में
आती है
बहुत छोटी सी
एक बात
जो अकेले
किया जाता है
वो सही
कभी नहीं होता
गलत हो जाता है
बहुमत के द्वारा
एक अकेले को
हद में रहना
लेकिन
बहुत आसानी से
सिखा दिया जाता है
और
उसी हद को
बहुत प्यार से
बहुमत बना के
बहुत सी हदों के
साथ साथ शहीद
कर दिया जाता है
'उलूक'
अकेला चना
बस एक चना
ही रह जाता है।
आसान होता है
बस समझने तक
सालों गुजर जाते हैं
पिता जी किया
करते थे बस
हद में रहने की बात
शायद
उस समय
नहीं की जाती
होंगी पार हदें
उस तरह से
जिस तरह से पार
कर ली जाती हैं आज
बहुत आसान
होता है हदों को
पार कर ले जाना
यूँ ही खेल खेल में
बनाना
होता है बहुमत
दिखाना
भी होता है
वो सब
गलत होता है
जो अकेले
अकेले में
एक अकेले ने
कर लिया होता है
और
पिताजी
आप भी तो
अकेले ही
हुआ करते थे
लिये धनुष
और तीर
अपने विचारों का
अपने ही हाथ
सीखने
वाला भी
अकेला रहा
करता था
कभी भी नहीं
बन पाता था बहुमत
एक और एक
दो की बातों का
समझ में आने
लगा है अब
पार करने का
तरीका हदों को
सीखा
नहीं जाता है
लेकिन बस
सलीका
बहुमत बनाने का
समझ में
आती है
बहुत छोटी सी
एक बात
जो अकेले
किया जाता है
वो सही
कभी नहीं होता
गलत हो जाता है
बहुमत के द्वारा
एक अकेले को
हद में रहना
लेकिन
बहुत आसानी से
सिखा दिया जाता है
और
उसी हद को
बहुत प्यार से
बहुमत बना के
बहुत सी हदों के
साथ साथ शहीद
कर दिया जाता है
'उलूक'
अकेला चना
बस एक चना
ही रह जाता है।
आपकी रचना का
जवाब देंहटाएंएक शब्द
पिता
बाकी सब गौण
याद ही बाकी है
पिता की
फादर्स डे पर शुभकामनाएँ
आभार यशोदा जी । पिता जी यहाँ भी एक याद हैं बस । कविता सब लिखते हैं कोई गौण भी लिखे :)
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (13-06-2014) को "थोड़ी तो रौनक़ आए" (चर्चा मंच-1642) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आभार !
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति को आज कि बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - थोड़ी हँसी, थोड़ी गुदगुदी में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंआभार हर्ष ।
हटाएंबहुत सुंदर लेखन , सर धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में प्रकार की जानकारियाँ )
आभार आशीष ।
हटाएंभीड की मानसिकता बहुत अलग होती है ,कभी सही कभी गलत होती है।
जवाब देंहटाएंआभार ।
हटाएं"पिता" इस एक शब्द में कितना वज़न है ! आभार आपका
जवाब देंहटाएंआभार ।
हटाएंबढ़िया लिख रहें हैं बंधुवर। शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का।
जवाब देंहटाएंआभार ।
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