गीत हों
गजल हों
कविताएं हों
चाँद हो
तारे हों
संगीत हो
प्यार हो
मनुहार हो
इश्क हो
मुहब्बत हो
अच्छा है
अच्छी हो
ज्यादा
ना हो
एक हो
कोई
सूरत हो
खूबसूरत हो
फेस बुक
में हो
तस्वीर हो
बहुत ही
अच्छा है
दो हों
लिखे हों
शब्द हों
सौ हों
टिप्पणिंयां हों
कहीं कुछ
नहीं हो
उस पर
कुछ नहीं
होना हो
बहुत
अच्छा है
तर्क हों
कुतर्क हों
काले हों
सफेद हों
सबूत हों
गवाह हों
अच्छी सुबह
अच्छा दिन
और
अच्छी रात हो
अच्छा है
भीड़ हो
तालियाँ हो
नाम हो
ईनाम हो
फोटो हो
फूल हों
मालाऐं हों
अखबार हो
समाचार हो
और भी
अच्छा है
झूठ हों
बीज हों
बोने वाले हों
गिरोह हो
हवा हो
पेड़ हों
पर्यावरण हो
गीत हों
गाने वाली
भेड़ हों
हाँका हो
झबरीले
शेर हों
अच्छा है
फर्क नहीं
पड़ना हो
दिखना
कोई
और हो
दिखाना
कोई
और हो
करना
कहीं
और हो
भरना
कहीं
और हो
बोलने वाला
भगवान हो
चुप रहने
वाला
शैतान हो
सबसे
अच्छा है
‘उलूक’ हो
पहाड़ा हो
याद हो
आदमी
एकम
आदमी हो
और
आदमी
दूना
भगवान हो
बाकी
सारा
हो तो
राम हो
नहीं तो
हनुमान हो
कितना
अच्छा है।
चित्र साभार: http://www.shutterstock.com/
जरूरत
नहीं है
आज के
अर्जुनों को
गाँडीव की
ना ही शंख
पाँचजन्य की
ना ही
जरूरत है
कृष्ण और
उसके
अर्जुन से किये
संवादों की
या किसी
गीता की
आज के
सारे अर्जुन
धृतराष्ट्र होने
में गर्व
महसूस
करते हैं
आँखे होती हैं
फिर भी
गाँधारी की
तरह नहीं
करते हैं
खुली आँख से
अपने सामने
हो रहे
कुछ भी को
देखना पसंद
नहीं करते हैं
जमाने के साथ
चलने
उठने बैठने
के शौकीन
होते हैं
अपने खुद के
दिमाग से
कुछ भी
सोचना अपनी
तौहीन
समझते हैं
दूर अंधेरे में
बैठे किसी
चमकीले
चमगादड़ की
चमक से
प्रभावित हो
कहीं भी
उल्टा लटक
किसी और
की उल्टी
बात पर
उल्टी कर
लेना पसन्द
करते हैं
अपने
आस पास
हो रही
लूट पर
चुप रहते हैं
कुछ नहीं
कहते हैं
बेवकूफ
समझते हैं
दुनियाँ को
भौँकते हैं
अपनी
गलियों से
दूर कहीं
जा कर
वीडियो
फेसबुक में
अपलोड
किये होते हैं
‘उलूक’
जानता है
अपने मोहल्ले
अपनी गली
अपने शहर
के सियारों
को
नोच लेता है
अपने सिर के
बाल दो चार बस
जब सारे
शहर के सियार
देश के वफादार
कुत्ते होने का
दम भर कर
फेसबुक में
भौंक रहे होते हैं ।
चित्र साभार: www.canstockphoto.com
कोशिश
कर तो सही
उतारने की
सब कुछ कभी
फिर दौड़ने
की भी
उसके बाद
दिन की
रोशनी में ही
बिना झिझक
जो सब
कर रहे हैं
क्यों नहीं हो
पा रहा है तुझसे
सोचने का
विषय है तेरे लिये
उनके लिये नहीं
जिन्होने उतार
दिया है सब कुछ
कभी का
सब कुछ के लिये
हर उतारा हुआ
उतारे हुए के साथ
ही खड़ा होता है
तू बस देखता
ही रहता है
दोष
किसका है
उतार कर तो देख
बस एक बार
शीशे के सामने ही सही
अकेले में
समझ सकेगा
पहने हुऐ
होने के नुकसान
जाति उतारने
की बात नहीं है
क्षेत्र उतारने
की बात नहीं है
धर्म उतारने
की बात नहीं है
कपड़े उतारने
की बात भी नहीं है
बात उतरे हुए
को सामने से
देख कर ही
समझ में आती है
निरन्तरता
बनाये रखने
के लिये वैसे भी
बहुत जरूरी है
कुछ ना कुछ
करते चले जाना
समय के साथ
चलने के लिये
समय की तरह
समय पहने तो
पहन लेना
समय उतारे तो
उतार लेना अच्छा है
सब को सब की
सारी बातें समझ में
आसानी से नहीं आती हैं
वरना आदमी
के बनाये आदमी
के लिये नियमों
के अन्दर किसी को
आदमी कह देने
के जुर्म में कभी भी
अन्दर हो सकता है
कोई भी आदमी
आमने सामने
ही पीठ करके
एक दूसरे से
निपटने में
लगे हुऐ
सारे आदमी
अच्छी तरह
जानते हैं
उतारना पहनना
पहनना उतारना
तू भी लगा रह
समेटने में अपने
झड़ते हुए परों को
फिर से चिपकाने की
सोच लिये ‘उलूक’
जिसके पास
उतारने के लिये
कुछ ना हो
उसे पहले कुछ
पहनना ही पड़ता है
पंख ही सही
समय की मार
खा कर गिरे हुए ।
चित्र साभार:
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सुमित जी की पुत्री अदिति के जन्मदिन पर
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आओ
बिटिया
आज
मनायें
हम सब
मिलकर
तुम्हारा
जन्मदिन
थोड़ा थोड़ा
सब मुस्कुराएं
बाँटे खुशियाँ
वर्ष के एक दिन
कुछ बन जायें
सुन्दर से फूल
कुछ मधु
मक्खियाँ
और कुछ
रंगबिरंगी
तितलियाँ
आओ बिटिया
आज सब
मिलजुल कर
इतना फैलायें
रंग और खुश्बू
इतना खिलायें
और बाँटें
प्यार से मधु
आज के शुभ
दिन के
लिये ही नहीं
आने वाले वर्ष
के लिये ही नहीं
हमेशा के लिये
इतना इतना
हो जाये
जो सब की
पहुँच तक
पहुँचता
चला जाये
थोड़ा थोड़ा
आओ बिटिया
आज तुम्हारे
जन्मदिन
की इस
दावत को
यादगार
एक बनायें
बेटियों के प्यार
बेटियों के व्यवहार
बेटियों के उदगार
आओ
आज के दिन
सब को बतायें
बेटियों के सर्वश्रेष्ठ
होने की बात को
गर्व से फैलायें
आओ बिटिया
आज तुम्हारे
जन्मदिन
के साथ सारी
बिटियाओं
का जन्मदिन
मनायें
बिटिया के
जन्मदिन
को इतना
यादगार
बनायें
आओ
बिटिया
हम सब
और तुम
मिलकर
फूलों
तितलियों
भवरों
पेड़ पौंधौं
नदी पहाड़
बादल
समुद्र
के साथ
तुम्हारा
जन्मदिन
मनायें
कुछ इस
तरह से
जैसे
सब कुछ
मिलकर
इंद्रधनुष
बन जाये
प्रकृति में
प्रकृति का
समावेश
हो जाये
याद करें
सारी
बेटियों को
प्रार्थना करें
सब के लिये
सारी की
सारी दुआयें
तुम्हारे लिये
एकत्रित
कर लायें
आओ
बिटिया
आज
मनायें
हम सब
मिलकर
तुम्हारा
जन्मदिन।
कुछ फोड़
कुछ मतलब
कुछ भी
फोड़ने में
कुछ लगता
भी नहीं है
नफे नुकसान
का कुछ
फोड़ लेने
के बाद
किसी ने
कुछ सोचना
भी नहीं है
फोड़ना कहीं
जोड़ा और
घटाया हुआ
दिखता भी
नहीं है
बेहिसाब
फूट रहा
हो जहाँ
कुछ भी
कहीं भी
कैसे भी
और
फोड़ रहा
हो हर कोई
अपनी औकात
के आभास से
धमाका बनाया
जा रहा हो
खरीदने बेचने
के हिसाब से
आज जब
इतना
आजाद है
आजादी
और
कुछ ना कुछ
फोड़ने की
हर किसी
में है बहुत
ज्यादा बेताबी
तू भी नाप
तू भी तौल
अपनी औकात
और
निकल बाहर
परवरिश
में खुद के
अन्दर पनपे
फालतू मूल्यों
के बन्धन
सारे खोल
और
फिर फोड़
कुछ तो फोड़
फोड़ेगा नहीं
तो धमाका
कैसे उगायेगा
धमाका नहीं
अगर होगा
बाजार में
क्या बेचने
को जायेगा
फोड़
कुछ भी
फोड़
किसी ने
नहीं देखनी
है आग
किसी ने
नहीं देखना
है धुआँ
बाकी करता
रह सारे
काम अपने
अपनी दिनचर्या
चाहे नोंच माँस
चाहे नोंच हड्डियाँ
चाहे जमा कर
चाहे सुखा
बूँद बूँद
इन्सानी खून
पर फोड़
कुछ फोड़
नहीं फोड़ेगा
अपने संस्कारी
उसूलों में
दब दबा
जायेगा
सौ पचास
साल बाद
देश द्रोही
या
गाँधी
की पात में
खड़ा कर
तुझे एक
अपराधी
घोषित कर
दिया जायेगा
इसलिये
बहुत जरूरी है
कुछ फोड़।
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