शेरो शायरी
बहुत हो गयी
मजा उतना
नहीं आ रहा है
सुना है फिर से
चिट्ठियाँ लिखने
का चलन लौट
कर वापस
आ रहा है
कागज
कलम दवात
टिकट लिफाफे
के बारे में
पूछ रहा है कोई
कई दिनों से
इधर और उधर
के डाकखानों के
चक्कर लगा रहा है
चिट्ठियाँ
लिखना भेजना
डाकिये का पता
देख कर किसी
का घर ढूँढना
कितना होम वर्क
किया जा रहा है
बहुत जरूरी था
चिट्ठी लिखना
लिखवाना
समझ में भी
आ रहा है
फेस बुक
व्हाट्स अप
में अच्छी
तरह से
नहीं पीटा
जा रहा है
चिट्ठियाँ लिखी
जा रही हैं
उसके लिये
मुहूरत भी
निकाला
जा रहा है
बहस
नहीं होनी
चाहिये किसी मुद्दे पर
किसी विशेष दिन
समझ में आ रहा है
ध्यान भटकाना है
मुद्दे और दिन से
चिट्ठी लिखने की
सुपारी को
चिट्ठी
लिखवाने वाला
लिखने वाले
को उसी दिन
भिजवा रहा है
प्रेम पत्र नहीं
सरकारी
पत्र नहीं
कुशल क्षेम
पूछने में
शरमा रहा है
चिट्ठी प्यार का
संदेश नहीं
प्रश्नों का पुलिंदा
बनाया जा रहा है
चिट्ठी
लिख रहा है
लिखने वाला
लिफाफे में
बन्द कर
टिकट नहीं
लगा रहा है
डाकखाना
डाकिया की
बात कौन
किस से पूछे
‘उलूक’
लिखवाने वाला
गली मोहल्ले
सड़क की
दीवार पर
चिपका रहा है ।
चित्र साभार: Pinterest
शुरुआत में
आओ मिर्च
के कारोबार
को अपनायें
आओ
मिर्ची सोचें
मिर्ची सोचवायें
आओ
मिर्ची लगायें
मिर्ची लगवायें
आओ
मिर्ची बोयें
मिर्ची उगायें
आओ
मिर्ची दिखायें
मिर्ची बतायें
आओ
मिर्ची समझें
मिर्ची समझायें
बीच में
आओ
मिर्ची तुलवायें
मिर्ची धुलवायें
आओ
मिर्ची तोड़ें
मिर्ची सुखायें
आओ
मिर्ची बटवायें
मिर्ची पकवायें
आओ
मिर्ची खायें
मिर्ची खिलायें
आओ
मिर्ची लायें
मिर्ची फैलायें
और
अन्त में
आओ
मिर्च जलायें
धुआँ उड़ाये
आओ
मिर्च के गुच्छे में
निम्बू बँधवायें
आओ
‘उलूक’ की
राई मन्तर
करवायें ।
चित्र साभार: 123RF.com
कहीं भी
नहीं
होने का
अहसास
भी होता है
जर्रे जर्रे
में होने का
भ्रम भी
हो जाता है
अपने अपने
पन्नों की
दुनियाँ में
अपना अपना
कहा जाता है
पन्नों के ढेर
लग जाते हैं
किताब
हो जाना
नहीं
हो पाता है
ढूँढने की
कोशिश में
एक छोर
दूसरा
हाथ से
फिसल
जाता है
ऐसी
आभासी
दुनियाँ के
आभासों में
तैरते उतराते
एक पूरा साल
निकल जाता है
आभासी होना
हमेशा नहीं
अखरता है
किसी दिन
नहीं होने में
ही होने का
मतलब भी
यही
समझाता है
आभार
आभासी
दुनियाँ
आभार
कारवाँ
आभार
मित्रमण्डली
एक
छोटा सा
जन्मदिन
शुभकामना सन्देश
स्नेह
शुभाशीष
शुभकामनाओं का
एक ही
दिन में
कितने कितने
अहसास
करा जाता है
आल्हादित
होता होता
अपने होने
के एहसास
से ही ‘उलूक’
स्नेह की
बौछारों से
सरोबार
हो जाता है।
चित्र साभार: My Home Reference ecards
‘दुकान’ एक ‘दीवार’
जहाँ ‘दुकानदार’
सामान लटकाता है
दुकानों का बाजार
बाजार की दुकाने
जहाँ कुछ भी नहीं
खरीदा जाता है
हर दुकानदार
कुछ ना कुछ बेचना
जरूर चाहता है
कोई अपनी दुकान
सजा कर बैठ जाता है
बैठा ही रह जाता है
कोई अपनी दुकान
खुली छोड़ कर
किसी दूसरे की
दुकान के गिरते
शटर को पकड़ कर
दुकान को बन्द होने से
रोकने चले जाता है
किसी की
उड़ाई हवा को
एक दुकान एक
दुकानदार से लेकर
हजार दुकानदारों
द्वारा हजार दुकानों
में उड़ा कर
फिर जोर लगा कर
फूँका भी जाता है
‘बापू’
इतना सब कुछ
होने के बाद भी
अभी भी तेरा चेहरा
रुपिये में नजर आता है
चश्मा
साफ सफाई
का सन्देश
इधर से उधर
करने में काम में
लगाया जाता है
मूर्तियाँ पुरानी
बची हुई हैं तेरी
अभी तक
कहीं खड़ी की गयी
कहीं बैठाई गयी हुई
एक दिन साल में
उनको धोया पोछा
भी जाता है
छुट्टी अभी भी
दी जाती है स्कूलों में
झंडा रोहण तो
वैसे भी अब रोज
ही कराया जाता है
चश्मा धोती
लाठी चप्पल
सोच में आ जाये
किसी दिन कभी
इस छोटे से जीवन में
जिसे पता है ये मोक्ष
'वैष्ण्व जन तो तैने कहिये'
गाता है गुनगुनाता है
जन्मदिन पर
नमन ‘बापू’
‘महात्मा’ ‘राष्ट्रपिता’
खुशकिस्मत ‘उलूक’
का जन्म दिन भी
तेरे जन्मदिन के दिन
साथ में आ जाता है
'दो अक्टूबर'
विशेष हो जाता है ।
चित्र साभार: india.com
राम समझे
हुऐ हैं लोग
राम समझा
रहे हैं लोग
आज दशहरा है
राम के गणित
का खुद हिसाब
लगा रहे हैं लोग
आज दशहरा है
अज्ञानियों का ज्ञान
बढा रहे हैं लोग
आज दशहरा है
शुद्ध बुद्धि हैं
मंदबुद्धियों की
अशुद्धियों को
हटा रहे हैं लोग
आज दशहरा है
दशहरा है
दशहरा ही
पढ़ा रहे हैं लोग
आज दशहरा है
आँख बन्द रखें
कुछ ना देखें
आसपास का
कहीं दूर एक राम
दिखा रहे हैं लोग
आज दशहरा है
कान बन्द रखें
कुछ ना सुने
विश्वास का
रावण नहीं होते
हैं आसपास कहीं
बता रहे हैं लोग
आज दशहरा है
मुंह बन्द रखें
कुछ ना कहें
अपने हिसाब का
राम ने भेजा हुआ है
बोलने को एक राम
झंडे खुद बन कर
राम समझा रहे हैं लोग
आज दशहरा है
दशहरे की
शुभकामनाएं
राम के लोग
राम के लोगों को
राम के लोगों के लिये
देते हुऐ इधर भी
और उधर भी
‘उलूक’ को
दिन में ही
नजर आ
रहे हैं लोग
आज दशहरा है ।
चित्र साभार: Rama or Ravana- On leadership