उलूक टाइम्स: बापू
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मंगलवार, 2 अक्टूबर 2018

फिर से एक नया साल बापू एक और दो अक्टूबर बीत गया

बापू

फिर
टकराये हम

फिर
पता चला
एक साल
और ऐवें
ही बीत गया

समझ में
आ गयी
हों जैसे

फिर से
कुछ
और बातें

फिर से
हुऐ
कुछ भ्रम

जैसे खुद
गोल किया हो
अपने गोल पर

और
महसूस
साथ में किया
जीत गया

बापू

छोटी
छोटी बातें
दुनियाँ की
दुनियाँदारी की

लगता है
धीरे धीरे
अब
पूरा का पूरा
मन भीग गया

देखना
खुद का खुद से
ठीक नहीं

देख रहे हों
सब
जो कुछ

कुछ कुछ
देखना
लगता है
अब तो
सीख गया

बापू

पढ़ते
पढ़ते तुझको

दिखा
नहीं जमाना
बगल से
निकल
दूर कहीं

लिख चुका
कोई
धुन नयी
कोई
गीत नया

सीखा
नाच जीवन का
रख कर कदम
तेरे कदमों पर
जितना भी

नाँच ना जाने
आँगन टेढ़ा
सुनकर
नयी पौंध से

सारा
सब कुछ
जैसे रीत गया

एक पूरी
एक आधी सदी
का पैमाना बापू

सारी
दुनियाँ ने देखा
सोचा और समझा

ढाला
कुछ कुछ
जीवन में अपने

पूरब
लेकर
पश्चिम को
जैसे प्रीत गया

अपने
अन्दर के सच
ढक लेने का
हथियार बापू

अपना
खुद का सच

दुनियाँ की
आखों में

झोंकने
के लिये
झूठ नया

‘उलूक’

एक सौ
पचास साल
की
मेहनत पर

कोई आकर
कुछ दिन में

कितना कितना
गोबर लीप गया ।

चित्र साभार: http://devang-home.blogspot.com

रविवार, 1 अक्टूबर 2017

हैप्पी बर्थ डे टू यू बापू ‘उलूक’ दिन में मोमबत्तियाँ जलाता है

‘दुकान’ एक ‘दीवार’
जहाँ ‘दुकानदार’
सामान लटकाता है

दुकानों का बाजार
बाजार की दुकाने
जहाँ कुछ भी नहीं
खरीदा जाता है

हर दुकानदार
कुछ ना कुछ बेचना
जरूर चाहता है

कोई अपनी दुकान
सजा कर बैठ जाता है
बैठा ही रह जाता है

कोई अपनी दुकान
खुली छोड़ कर
किसी दूसरे की
दुकान के गिरते
शटर को पकड़ कर
दुकान को बन्द होने से
रोकने चले जाता है

किसी की
उड़ाई हवा को
एक दुकान एक
दुकानदार से लेकर
हजार दुकानदारों
द्वारा हजार दुकानों
में उड़ा कर
फिर जोर लगा कर
फूँका भी जाता है

‘बापू’
इतना सब कुछ
होने के बाद भी
अभी भी तेरा चेहरा
रुपिये में नजर आता है

चश्मा
साफ सफाई
का सन्देश
इधर से उधर
करने में काम में
लगाया जाता है

मूर्तियाँ पुरानी
बची हुई हैं तेरी
अभी तक
कहीं खड़ी की गयी
कहीं बैठाई गयी हुई
एक दिन साल में
उनको धोया पोछा
भी जाता है

छुट्टी अभी भी
दी जाती है स्कूलों में
झंडा रोहण तो
वैसे भी अब रोज
ही कराया जाता है

चश्मा धोती
लाठी चप्पल
सोच में आ जाये
किसी दिन कभी
इस छोटे से जीवन में
जिसे पता है ये मोक्ष
'वैष्ण्व जन तो तैने कहिये'
गाता है गुनगुनाता है

जन्मदिन पर
नमन ‘बापू’
‘महात्मा’ ‘राष्ट्रपिता’
खुशकिस्मत ‘उलूक’
का जन्म दिन भी
तेरे जन्मदिन के दिन
साथ में आ जाता है
'दो अक्टूबर'
विशेष हो जाता है ।

चित्र साभार: india.com

शनिवार, 13 जून 2015

शुरुआत हो चुकी है बापू अभी तो बस नोट से जा रहे हैं

जब से सुना है
बापू दस रुपिये
के नये छपे नोट
में नजर नहीं
आ रहे हैं
कल्पना करने में
कुछ नहीं जाता है
देखने की कोशिश
कर रहा हूँ
एक चित्र
बना कर
बिगाड़ कर
सुधार कर
रंग भी
भर रहा हूँ
मगर रंग हैं
कि कूची से
ही शर्मा रहे हैं
लाल हरे पीले
काले सफेद
हो जा रहे हैं
इतनी बड़ी
बात भी नहीं है
तिरंगे के रंग
भी तो अब
अलग अलग
झंडों में दिखाये
जा रहे हैं
कहीं गेरुऐ हैं
कहीं हरे हैं
कहीं सफेद ही
बेच दिये
जा रहे हैं
अभी तो
दस रुपिये के
नोट से ही
हटाये जा रहे हैं
जल्दी ही
सपने में ही नहीं
होगा बस सच होगा
और तेरे देखते
देखते ही होगा
‘उलूक’ जब
दिखेगा कि
बापू की मूर्तियों
को वर्दी पहने हुऐ
कुछ अनुशाशित लोग
क्रेन से उठवा उठवा
कर थाने के मालखाने
में जमा करवा रहे हैं ।

चित्र साभार: www.shutterstock.com

शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

बापू इस पुण्यतिथी पर आप ही कुछ नया कर लीजिये

बापू अब तो
कुछ नया
कर लीजिये
बहुत पुरानी
हो गई
धोती आपकी
नई डिजायन
कर करवा कर
डिजायनर
कर लीजिये
इतना गरीब
भी नहीं रहा
अब देश कि
आप धोती से
ही बदन
छुपाते रहें
आठ दस लाख
की सिल्क धोती
कम से  कम
पहन कर
जनता के
सामने आने
की अपनी
आदत कर लीजिये
जन्मदिन के तोहफे
जन्मदिन पर फिर
सुझा देंगे आपको
अभी बहुत दिन हैं
पुण्यतिथी पर
पहनियेगा नहीं भी
कोई बात नहीं
खरीद कर
बिकवाने की बात
ही कर लीजिये
गुजरात की या
हिंदुस्तान की सफेद
धोती हो ये भी
जरूरी नहीं
कौन पूछ रहा है
ग्लोबलाइजेशन
का फंडा सिखा
कर लंदन से ही
आयात कर लीजिये
हमने तो ना
आप को देखा बापू
ना ही आपकी
धोती को कभी
कहीं नजर तो
आइये कभी
धोती हाथ में
लेकर ही सही
आमना सामना
तो कर लीजिये
आदत हो गई है
‘उलूक’ को अब
झूठ के साथ
सफल प्रयोग
कर लेने की
कुछ हमें कर
लेने दीजिये नया
नये जमाने की
नयी चोरियाँ
आप बस फोटो में
बने रहने की
अपनी आदत अब
पक्की कर लीजिये ।

चित्र साभार: shreyansjain100.blogspot.com

शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2014

सत्य पर प्रयोग जारी है बंद कमरों में किया जा रहा है

सत्य क्या है बापू
जो तूने समझाया वो
या जो लोग आज
समझा रहे हैं
सत्य कहने की
कोशिश करने वाले
पर बौखला कर
कभी आँख तो कभी
दाँत भींच कर
अपने दिखला रहे हैं
मीठा होना चाहिये
सभी कुछ
बता बता कर
हर कड़वी चीज को
मिट्टी के नीचे
दबाते जा रहे हैं
पर सत्य भी
बेशरम जैसा
बाज नहीं आ रहा है
पौलीथीन की नहीं
गलने वाली थैलियों
जैसा हो जा रहा है
जरा सा पानी
गिरा नहीं
मिट्टी के ऊपर
थैली का एक
छोटा कोना
निकल कर
बाहर आ
जा रहा है
तालियाँ पहले
बजवा कर
मदारी बंदर को
नचवा रहा है
जमूरा जम्हाई
ले रहा है
सो भी नहीं
पा रहा है
तमाशा करने
की आदत है
तमाशबीन को
कल तक सड़क पर
किया करता था
आज पेड़ की फुन्गी
के ऊपर बैठा
कठफोड़वा बना
नजर आ रहा है
अब बन ही गया तो
फिर अपना लकड़ी में
छेद कर कीड़े निकाल
कर खाने की कला
क्यों नहीं दिखा रहा है
बापू रोना सत्य को
बस इसी बात पर
ही तो आ रहा है
जो काम करने को
दिया जा रहा है
उसी से ध्यान हटाने
के लिये आज हर कोई
कोई दूसरे काम की
झंडी हिला हिला कर
सबका ध्यान हटा रहा है
जिसकी समझ में
आ रहा है वो कह दे रहा है
और पढ़ने वालों की
जम के गालियाँ खा रहा है
‘उलूक’ सत्य क्या है
सोचने पर अभी क्यों
जोर लगा रहा है
सत्य पर प्रयोग जारी है
जब तक कुछ निकल कर
बाहर नहीं आ रहा है
अभी तो बस इतना
समझ में आ रहा है
भैंस के चारों तरफ
शोर हो रहा है
किस की है पता नहीं
चल पा रहा है
क्योंकि
हर कोई एक लाठी
लेकर हवा में
जोर जोर से
घुमा रहा है ।

चित्र साभार: http://pratikdas1989.blogspot.in/2011/04/my-experiments-with-social-service.html

गुरुवार, 2 अक्टूबर 2014

बापू आजा झाड़ू लगाने जन्मदिन के दिन बहुत सा कूड़ा कूड़ा हो गया

बापू तेरा भी था
आज जन्मदिन
और मेरा भी
हर साल होता था
इस साल भी हो गया

पिछले सालों में
कभी भी नहीं
हो पाया वैसा

जैसा आज
कुछ कुछ ही नहीं
बहुत कुछ होना
जैसा हो गया

बापू तेरा हुआ
होगा कभी
या नहीं भी
हुआ होगा

पर मेरा दिल तो
आज क्या बताऊँ तुझे
झिझक रहा हूँ बताने में
झाड़ू झाड़ू होते होते
पूरा का पूरा बस
झाड़ूमय हो गया

झाडू‌ लगाती थी
कामवाली घर पर
रोज ही लगाती थी
मेरे घर का कूड़ा
बगल के घर की  

गली में सँभाल कर

भी जरूर आती थी

झाड़ू देने वाली
नगरपालिका की
दिहाड़ी मजदूर
अपने वेतन से बस
झाड़ू ही तो एक
खरीद पाती थी

झाड़ू क्राँति के
आ जाने से उसका
भी लगता है कुछ
जीने का मकसद
कम से कम आज
तो हो ही गया

झाड़ू उसके हाथ का
तेरे नाम पर आज
लगता है जैसे एक
स्वतंत्रता की जंग
करता हुआ यहाँ
तक पहुँच कर
शहीद हो गया

केजरीवाल नहीं
भुना पाया झाड़ू को
झाड़ू सोच सोचकर
भी कई सालों तक

गलती कहाँ हुई थी
उससे आज बहुत
बारीकी से देखने से
उसे भी लगता है
कुछ ना कुछ
महसूस हो गया

छाती पीट रहा होगा
आज नोचते हुऐ
अपने सिर के बालों को

झाड़ू नीचे करने के
बदले हाथ में लेकर
ऊपर को करके
क्यों खड़ा हो गया

चिंतन करना ये तो
अब वाकई बहुत ही
जरूरी जैसा हो गया

बहुत सी चीजें काम
की हैं कुछ ही के लिये
और बेकाम की
हैं सबके लिये

ये सोचना अब
सही बिल्कुल भी
नहीं रह गया

इस साल दायें
हाथ में झाड़ू ने
दिखाया है कमाल

अगले साल देख लेना
बापू तेरा लोटा भी
लोगों के शौचालय
से निकल कर

बेपेंदी लुढ़कना छोड़
बायें हाथ में आकर
आदमी के
झाड़ू की तरह
झाड़ू के साथ
कंधे से कंधा मिला
कर आदमी का
एक नेता हो गया

जो भी हुआ है
अच्छा हुआ है
बाहर की सफाई
धुलाई के लिये

‘उलूक’ तेरे लिये
अपने अंदर की
गंदगी को सफाई से
अपने अंदर ही
छुपा के रख लेने का
एक और अच्छा
जुगाड़ जरूर हो गया

बापू तू अपने चश्में
और लाठी का रखना
सावधानी से
अब खयाल
और मत कह बैठना
अगले ही साल
चुरा लिया किसी
बहुत बड़े ने
बड़ी होशियार से

और तू चोर चोर
चिल्लाने के लायक
भी नहीं रह गया ।

चित्र साभार: http://vedvyazz.blogspot.in/2011/01/of-service-and-servitude_17.html

शनिवार, 28 सितंबर 2013

कल तक चाँद हो रहा था रात ही रात में दाग हो गया

सुबह के
अखबार से
सबको पता
हो गया
बच्चा बापू
से बहुत
नाराज हो गया
उसके जवान
हो जाने का
जैसे कहीं कोई
ऐलान हो गया
घर के अंदर
लग रहा था
कल ही कल
में कोई
संग्राम हो गया
अंदर ही अंदर
पक रहा हलुवा
पता नहीं कैसे
आम हो गया
चाँद के सुंदर
होने की बात
पीछे हो गई
दाग होने से
ही वो आज
बेकाम हो गया
माँ की
अंगुली छोड़
अचानक
बेटा खड़ा
हो कर
आम हो गया
विदेश गये
बापू जी
का वहाँ रहना
हराम हो गया
एक बड़ा
दाग होना
होने जा रहा था
सोने में सुहागा
अचानक कोड़ में
खाज हो गया
कुछ खास बड़ा
नहीं बस एक
छोटा सा
अध्यादेश
मुंह में शहद
हो रहा था
गले तक पहुंचते
पहुंचते मुर्गे की
हड्डी हो गया
सच्ची मुच्ची में
लगने लगा है
किसी को कुछ
कुछ हो गया
क्या था कल तक
घर का ही आदमी
घर ही घर में
क्या से क्या
आज हो गया
बेवफा तू ऐसे में
पूरी पूरी रात
चैन की नींद
कैसे सो गया ।

गुरुवार, 31 जनवरी 2013

कलियुगी गांंधियों का कारनामा बापू तू ना घबराना


टाँग अढ़ाना 
अब छोड़ दे पूरा का पूरा आदमी अढ़ा
खुद नहीं कर सकता है अगर किसी एक को मोहरा तू बना

मोहरा
हाथी 
घोड़ा या ऊँट में से कोई भी हो सकता है
प्यादों को एक आवाज में सजा या गजबजा सकता है 

प्यादे
नये 
जमाने की हवा खाये खिलखिलाये होते हैं
समझदारी से अपनी टाँगों का बीमा भी कराये होते हैं
टाँग अढ़ाने वाले को मुँह बिल्कुल नहीं लगाते हैं
पूरा फसाने वाले पर दिलो जान से कुर्बान बातों बातों में हो जाते हैं
मौज में आते हैं
तो कम्बल 
डाल कर फोटो भी खिंचवाने में जरा भी नहींं शर्माते हैं

टाँग अढा‌ने 
वाला तो 
बेचारा सतयुग से मार खाता ही आ रहा है
राम के जमाने में तो रावण मारा गया था
कलियुग में आकर राम ही खुद अपनी टाँग अढ़ा रहा है

सबको प्यार 
से समझाया जा रहा है
अभी भी वक्त है
थोड़ी 
समझदारी खरीद या लूट कर जा ले आ
जवान बंदरों की सेना ही बस अब बना
पुराने बंदरों को घर पर ही रहना है का नुस्खा जा थमा

हनुमान जी 
की 
फोटो बंटवा छपवा बिकवा राम को पेड़ पर चढ़ा
रावण के हाथ में एक आरी दे के आ

टाँग अढ़ाना 
बन्द कर पूरा अढ़ना सीख जा
नये जमाने का गांंधी तू ही कहलायेगा सब्र कर थोड़ा रुक जा

ताली बजवाना 
जारी रख हाथों को काम में ला
टाँग का भरोसा छोड़ दे मान भी जा मत अढ़ा।

 चित्र साभार: https://xioenglish.wordpress.com/

रविवार, 17 जून 2012

तेरा दिन है आज बापू


हैप्पी फादर्स डे बापू
आज मुझे तू बहुत याद आ रहा है
सुना है तेरा दिन है
और तू उसे धूमधाम से कहीं मना रहा है
अखबार टी वी मीडिया
हर जगह तेरी फोटो को दिखाया जा रहा है

बचपन से बढ़कर जवान भी अगर कोई हो जाता है
बापू तू सामने खड़ा बेटे को हर जगह नजर आता है

शादी होते ही बेटे की
बापू लोगों का वेट थोड़ा सा कम हो ही जाता है
तू बापू के साथ एक लड़की का ससुर जो हो जाता है

समझदार बापू अगर हो
अपने बैंक बैलेंस से बैलेंस इसको कर ही ले जाता है
दिमागदार बापू इस तरह
मरने मरने तक बापू का तमगा
चमकाये चला जाता है बहुत कुछ पाता है

फादर्स डे को ग्रीटिंग कार्ड डाकिया भी उसको देने आता है
जेब अपनी हल्की कर गया जिंदगी में गल्ती से भी कहीं
वो वाला बापू पूअर डैडी हो जाता है

फादर्स डे के दिन
अखबार के विज्ञापन में बाप का फोटो देखता है
थोड़ी देरे को सँजीदा हो जाता है 
बेटे की चिंता में फिर से कहीं खो जाता है ।

चित्र साभार https://www.dreamstime.com/