दो और दो
जोड़ कर
चार ही तो
पढ़ा रहा है
किसलिये रोता है
दो में एक
इस बरस
जोड़ा है उसने
एक अगले बरस
कभी जोड़ देगा
दो और दो
चार ही सुना है
ऐसे भी होता है
एक समझाता है
और चार जब
समझ लेते हैं
किसलिये
इस समझने के
खेल में खोता है
अखबार की
खबर पढ़ लिया कर
सुबह के अखबार में
अखबार वाले
का भी जोड़ा हुआ
हिसाब में जोड़ होता है
पेड़
गिनने की कहानी
सुना रहा है कोई
ध्यान से सुना कर
बीज बोने के लिये
नहीं कहता है
पेड़ भी
उसके होते हैं
खेत भी
उसके ही होते हैं
हर साल
इस महीने
यहाँ पर यही
गिनने का
तमाशा होता है
एक भीड़ रंग कर
खड़ी हो रही है
एक रंग से
इस सब के बीच
किसलिये
उछलता है
खुश होता है
इंद्रधनुष
बनाने के लिये
नहीं होते हैं
कुछ रंगों के
उगने का
साल भर में
यही मौका होता है
एक नहीं है
कई हैं
खीचने वाले
दीवारों पर
अपनी अपनी
लकीरें
लकीरें खीचने
वाला ही एक
फकीर नहीं होता है
उसने
फिर से दिखानी है
अपनी वही औकात
जानता है
कुछ भी कर देने से
कभी भी यहाँ कुछ
नहीं होना होता है
मत उलझा
कर ‘उलूक’
भीड़ को
चलाने वाले
ऐसे बाजीगर से
जो मौका मिलते ही
कील ठोक देता है
अब तो समझ ले
बाजीगरी बेवकूफ
किसी किसी
आदमी की
सोच में
हमेशा ही एक
हथौढ़ा होता है ।
चित्र साभार: cliparts.co
जो भी
आप समझायेंगे
हजूर
हम समझा देंगे
किस
किस को
समझाना है
क्या क्या
और
कैसे कैसे
बताना है
हमें
लिख कर
बता देंगे
हजूर
हम समझा देंगे
मत
समझियेगा
हम भी
समझ
ले रहे हैंं
वो सब
जो
आप
लोगों को
समझाने
के लिये
हमें समझा रहे हैं
हम
आप के
कहे को
जैसे का तैसा
इधर से उधर
पहुँचा देंगे हजूर
हम समझा देंगे
खाली
किस लिये
अपना दिमाग
लगाना है
आप के
दिमाग में जब
सब कुछ सारा
बहुत सारा
तेज धार
का पैमाना है
इशारा
करिये तो सही
पानी में ही
आग लगा देंगे
हजूर
हम समझा देंगे
अखबार में
आने वाली है
खबर पक कर
रात भर में
नमक
मसालों को
ही बदलवा देंगे
हजूर
हम समझा देंगे
नहीं होगा
नहीं होगा
छपवा कर
रखवा भी
दिया होगा
कहाँ तक
रखवायेगा कोई
और
ऊपर से
जोर की डाँठ
पड़वा देंगे
हजूर
हम समझा देंगे
चिंता
जरा सा
भी मत
कीजियेगा
ज्यादा
से ज्यादा
कुछ नहीं होगा
टेंट
लगवा कर
दो चार दिन
एक भीड़
को बैठा देंगे
हजूर
हम समझा देंगे
‘उलूक’
तू भी
आँख बन्द कर
कान में उँगली
डाल कर बैठा रह
किसी
दिन आकर
तुझे भी
दो चार दिन
देश
चलाने की
किताब के
दो पन्ने
तेरे शहर के
पढ़ा देंगे
हजूर
हम समझा देंगें।
चित्र साभार: http://www.newindianexpress.com
पता नहीं
क्या क्या
उल्टा सीधा
देख सुन कर
आ जा रहा है
चुपचाप
बैठ ले रहा था
कुछ दिन के लिये
बीच बीच में इधर
फिर से
जरा सा में
सनक जा रहा है
कोई
क्यों नहीं
समझा रहा है
बेटी बेटी
नहीं कही
जा सकती है
जब उम्र
पचास पचपन
के पार
हो जाती है
बेटी की
बेटियाँ पैदा
हो जाती हैं
उम्र के
किसी मोड़
पर जा कर
माँग भी
उजड़ जाती है
सुगम के
सपने
देखते देखते
दुर्गम की
कठिन हवा धूप
में सूख जाती है
ऐसी महिला को
कैसे सोच रहा है
लक्ष्मीबाई
खुद को मान
लेने का हक
बेटी पढ़ाओ
बेटी बचाओ
के नारों के
जमाने में
फालतू में
यूँ ही मिल
जा रहा है
अखबार
रेडियो दूरदर्शन
सब देख रहे हैं
सब सही हो रहा है
इनमें से कोई भी
उसके लिये
रोने नहीं जा रहा है
बेटी
कहलवाने
का भाव उसके
सनकी हो गये
दिमाग में से
नहीं निकल
पा रहा है
उसकी समस्या है
तू किसलिये
फनफना रहा है
अगर कोई
बेटी
धमका रहा है
ठन्ड रख
उसके सनकने
का दण्ड भी उसे
निलम्बित कर के
दिया जा रहा है
बहुत सही
हो रहा है
‘उलूक’
तेरे सनकने
के लिये रोज
एक ना एक
बखेड़ा
जरूरी किताब
के जरूरी पाठ
का एक जरूरी
दोहा हो जा रहा है।
चित्र साभार: https://drawingismagic.com
आज
अचानक
गली के
मोड़ पर
तेजी से
भागता हुआ
कबीर मिला था
एक नयी
बहुत मंहगी
चमकीली
साफ सुथरी
चादर से
ढका हुआ
उड़ता हुआ
जैसे एक
बुलबुला
बन रहा था
पूछ बैठा
था कोई
भाई तू
लगभग
पाँच सौ
साल से
यूँ ही
पड़ा रहा था
अब
किस लिये
मजार
छोड़ कर
भाग आया
एक नयी
चादर में
उलझा हुआ
अपना
एक पाँव
बाहर
निकाल
कर उसने
चादर को
किनारे लगाया
जोर से
चिल्लाया
समझा करो
कबीर था
तब तक
जब तक
किसी को
मेरे जुलाहे
होने का
पता नहीं था
पाँच सौ
साल में
बदल जाती
है कायनात तक
मैं तो
उस जमाने
के सीधे साधे
आदमियों के
बीच का था
बस एक
फकीर था
हिंन्दू रहा था
ना मुसलमान रहा था
जुलाहे होने का
थोड़ा सा बस
अभिमान रहा था
दोहे
कह बैठा था
उस समय
के हिसाब से
पर आज
उन सब में जैसे
सारी जिन्दगी का
फलसफाऐ शैतान था
किसे पता था
पाँच सौ साल बाद
रजिया गुँडों के
बीच फंस जायेगी
कबीर के दोहे
किताबों से
दब जायेंगे
ईवीएम
की मशीन
कबीर के
भजन गायेगी
संगीत सुनायेगी
‘उलूक’
कब सुधरेगा
पता नहीं
उसकी बकवास
करने की आदत
भी नहीं जायेगी
कबीर ने
कुछ कहा था
समझना जरूरी
भी नहीं था
कल शायद
सूर की भी बारी
कहीं ना कहीं
आ जायेगी
तुलसी
फंसा हुआ है
मन्दिर की
सोच रहा है
पता नहीं
कौन सी कब्र
किस समय
और किसलिये
खोली जायेगी
बकवास है
शहर की
नहीं है
विनती है आपसे
मत कह देना
कबीर की आत्मा
मेरे घर में रुकी थी
कल चली जायेगी।
चित्र साभार: http://www.pngnames.com
छोड़ें
शराफतें
करें
शरारतें
कुछ
खुराफातें
अपनी
नहीं भी हों
कोई बात नहीं
पर गिनें
सामने वाले की
बड़ी या छोटी
जो भी दिख जाये
सामने से
वो वाली आतें
रोकें
लटक कर
आगे बढ़ रही
घड़ी की सूईयों पर
समय
को खींचें
पीछे ले जायें
बायीं नाक से
खींच कर हवा
आहिस्ता
दायीं नाक से
बाहर का रास्ता
बना कर दिखायें
उल्टा पीछे को
चलने का
रास्ता सिखायेंं
बहुत
जरूरी है
समय को भी
सीख लेना
इस जमाने में
करना प्राणायाम
उसके भी
निकाले
जा सकते हैं
कभी भी
कैसे भी
कहीं भी
प्राण
लिखाकर
थाने में
चोर रहा था
बेशरम
आने वाले
समय के
पेड़ों से
समय से
पहले ही
पके हुऐ
लाल पीले
हरे आम
पीछे चलें
उल्टे पैरों से
मुँह आगे कर
कहीं भी
जाकर गिनें
गिरे हुऐ मरे हुऐ
बटेर और तीतर
शिकारी को
बिल्कुल भी
नहीं पकड़ना
है ठानकर
गिनती बढ़ायें
सौ के दस
हजार दिखायें
उस
समय के चित्र
इस समय
के अखबार
में छपवायें
ढोल नगाड़े
बजवायें
तीतर बटेरों
की आत्मायें
आकर
बता गयी हैं
शिकारी
के नाम पते
हरे पेड़ों के
झड़ गये
पत्तों पत्तों
पर लिखवा
लिखवा
कर बटवायें
मुनादी करवायें
पिछ्ली पीढ़ी
के भूत पिशाचों
को फाँसी की
सजा दिलवायें
आओ
‘उलूक’
संकल्प करें
प्राणवान
कुछ भी
समझ
में आये
उसका श्राद्ध
गया जाकर
प्राण
निकलवाने
से पहले
करवाने
का आदेश
करवायें
आओ
भूत खोद
कर लायें
भविष्य की
बात आये
उससे पहले
उसकी कब्र
वर्तमान में
ही बनाकर
मंगलगीत
मिलकर गायें।
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