उलूक टाइम्स: बाजीगरी
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शनिवार, 16 अक्तूबर 2021

कई दिन हो गये बके कुछ आज कर ही लेते हैं तिया पाँचा इस से पहले कोशिश करे पन्ना आज का भी कुछ खिसक जाने की


काले श्यामपट पर
सफेद चौक से लकीरें खींच कर

कोशिश कर लेना
खुद पढ़ लेने की तैयारी 

जैसे
किसी को भी कुछ भी
पढ़ा ले जाने की


रेत पर बना कर
यूँ ही कुछ आढ़ा तिरछा
सोच कर बन गया लो ताजमहल

खुश हो लेना
कौन देख रहा है
नूरजहाँ और शाहजहाँ की बात

वो भी
पुराने किसी फसाने की


इतिहास और भूगोल

तराजू हैं ना
दशमलव के पाँच छ: सात या
और भी स्थान तक
तौल सकने वाले

एक पन्ना इस किताब का 
उधर कर लेना

खेलना
खेल से ही नहीं होता
बाजीगरी सीख
कुछ तो कभी इस जमाने की

हवा के साथ
फोटो खींच रहे होते हैं कुछ जवान
जोशे जवानी के साथ

हवा हवा हो गयी 
कब कहाँ पता चलता है
सब भरम होता है

बातें बहुत करते हैं लोग बेबात में
बात ही बात में
कोशिश कर के बात को भरमाने की

कुछ नहीं लिखने का गम ठीक है
कुछ भी नहीं लिखने से

कोशिश करते करते 
जमाना गुजर जाता है

कुछ नहीं से कुछ हो लेने के ख्वाब
सबसे अच्छे होते हैं
हवाई जहाज सोच कर
मक्खियाँ और मच्छर उड़ाने की

‘उलूक’
कलाबाजी बाजीगरी
पता नहीं 
और भी बहुत कुछ है जरूरी
आज के जमाने में

शऊर
जिसे मानता है हर दूसरा
काम नही आनी है शराफत
तेरे जैसे खामख्याली दीवाने की


चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

रविवार, 15 जुलाई 2018

किसी किसी आदमी की सोच में हमेशा ही एक हथौढ़ा होता है

दो और दो
जोड़ कर
चार ही तो
पढ़ा रहा है
किसलिये रोता है

दो में एक
इस बरस
जोड़ा है उसने
एक अगले बरस
कभी जोड़ देगा
दो और दो
चार ही सुना है
ऐसे भी होता है

एक समझाता है
और चार जब
समझ लेते हैं
किसलिये
इस समझने के
खेल में खोता है

अखबार की
खबर पढ़ लिया कर
सुबह के अखबार में

अखबार वाले
का भी जोड़ा हुआ
हिसाब में जोड़ होता है

पेड़
गिनने की कहानी
सुना रहा है कोई
ध्यान से सुना कर
बीज बोने के लिये
नहीं कहता है

पेड़ भी
उसके होते हैं
खेत भी
उसके ही होते हैं

हर साल
इस महीने
यहाँ पर यही
गिनने का
तमाशा होता है

एक भीड़ रंग कर
खड़ी हो रही है
एक रंग से
इस सब के बीच

किसलिये
उछलता है
खुश होता है

इंद्रधनुष
बनाने के लिये
नहीं होते हैं

कुछ रंगों के
उगने का
साल भर में
यही मौका होता है

एक नहीं है
कई हैं
खीचने वाले
दीवारों पर
अपनी अपनी
लकीरें

लकीरें खीचने
वाला ही एक
फकीर नहीं होता है

उसने
फिर से दिखानी है
अपनी वही औकात

जानता है
कुछ भी कर देने से
कभी भी यहाँ कुछ
नहीं होना होता है

मत उलझा
कर ‘उलूक’
भीड़ को
चलाने वाले
ऐसे बाजीगर से
जो मौका मिलते ही
कील ठोक देता है

अब तो समझ ले
बाजीगरी बेवकूफ

किसी किसी
आदमी की
सोच में
हमेशा ही एक
हथौढ़ा होता है ।

चित्र साभार: cliparts.co

बुधवार, 7 मार्च 2012

पुराना

सत्य अहिंंसा
की बात
गांधी तू क्यों
अब भी
आता है याद

मान जा
अब छोड़ दे
याद आना
और दिलाना
अगली बार
अगर आया
तुझे प्रमाण
पत्र होगा
हमको
दिखलाना

पुराना हो
चुका है
स्वतंत्रता संग्राम
की है आँधी
कि तू वाकई
में है गांंधी

गांधी
समझा
कर भाई

तेरे जमाने
में होता होगा
जो होता होगा

अब वो होता है 
जो वैसे
नहीं  होता है

बनाया जाता है 
मसाले डाल कर
पकाया  जाता है

पांच चोर
अगर कहेंगे
तेरे को सच्चा
तभी कुछ
हो पायेगा
तेरा कुछ अच्छा

इसलिये
थोड़ा
शर्माया कर
सच झूठ
की बात
हो रही हो
कहीं अगर
तो कूद कर
खाली भी
मत आ
जाया कर

उस
जमाने में
तू बन सका
महात्मा

इस जमाने में
अब कोशिश
भी मत करना

तू तो तू तेरी
बेच है सकता
कोइ भी आत्मा

इसलिये अब
भी मान जा
ले जा अपनी
धोती चश्मा
लाठी किताबे

दिखना
भी नहीं
कहीं फोटो
में भी

हमें सीखने
सिखाने
दे बाजीगरी

जब तक
तू बैठा रहेगा
हमारे नोटों में

कैसे
सीखेंगे हम
नये जमाने की
नयी नयी
कारीगरी।

मंगलवार, 3 जनवरी 2012

दोस्त

आईना क्यों
नहीं दिखाता
मेरा सच मुझे
उसे देखने
के लिये
कहां से लाऊं
मैं तुम्हारी
पैनी नजर
आईना मेरा
दोस्त तो कभी
नहीं रहा
फिर भी
उसने कभी
नहीं दिखाया
मुझे मेरे अंदर
का हैवान
मैने सोचा
आईना दिखाता
है हमेशा सच
तुम्हारी पैनी
नजर बड़ी
कमाल की
है मेरे दोस्त
जो मेरा
आईना कभी
नहीं देख
पाया मेरे
अंदर छुपा
तुमने देख
ही डाला
अपनी इस
बाजीगरी को
देश के नाम
कर डालो
और दिखा,
दो दुनिया को
सारे वो सच
जो सामने
नहीं आते
किसी के
कभी भी
तुम्हें देख
कर छुप
नहीं पाते
आओ कुछ
करो देश
के लिये
मेरे तो झूट
बहुत छोटे हैं
इस देश
के सामने।

सोमवार, 21 नवंबर 2011

टी ऎ डी ऎ

एक पैन
एक कागज
ही तो
चाहिये होता
है बस

बनाने
के लिये
चार लोग
एक कार
को

रेल
हवाई जहाज
या बैलगाड़ी
के चार लोग

बाजीगरी
खूँन में
नहीं आती
किसी के

हुनर सिखाने
में माहिर
हो गये हैं
मेरे मोहल्ले
के लोग ।