उलूक टाइम्स

रविवार, 24 फ़रवरी 2019

हुवा हुवा का शोर हुवा कहीं हुवा कुछ जैसे और बड़ा जबरजोर हुवा

फिर
हुवा हुवा
का शोर हुवा

इधर से

गजब का
जोर हुवा

उधर से
जबरजोर हुवा

हुवा हुवा
सुनते ही

मिलने लगी

आवाजें
हुवा हुवा की

हुवा हुवा में

हुवा हुवा से

माहौल
सारा जैसे
सराबोर हुवा

चुटकुला एक

एक
बार फिर
अखबार में

खबर
का घूँघट ओढ़

दिखा आज
छपा हुवा

खबरों
को उसके
अगल बगल की

पता ही
नहीं चला

कब हुवा
कैसे हुवा
और
क्या हुवा

पानी
नदी का
बहने लगा

खुद ही
नहा धोकर

सब कुछ
सारा

आस पास
ऊपर नीचे का

पवित्र हुवा
पावन हुवा

पापों
के कर्ज में
डूबों का

सब कुछ
सारा माफ हुवा

ना
बम फटे
ना
गोली चली
ना
युद्ध हुवा

बस
चुटकुला
खबर
बन कर

एक बार
और

शहीद हुवा
इन्साफ हुवा

जंगल उगे
कागज में

मौसम भी

कुछ
साफ हुवा

हवा
चली
जोर की

फोटो में
बादल उतरा

पानी
बरसा

रिमझिम
रिमझिम
गिरते गिरते
भाप हुवा

पकाने
परोसने
खिलाने
वाले

शुरु हुऐ
समझाना

ऐसा हुवा

हुवा
जो भी

सदियों
बाद हुवा

‘उलूक’
पूछना
नहीं हुवा

कुछ भी बस

करते
रहना हुवा

हुवा हुवा

हो गया
हो गया

सच्ची
मुच्ची में

है हुवा हुवा ।

चित्र साभार: https://www.123rf.com

सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

लम्बी खींचने वालों की छोड़ ‘उलूक’ तुझे अपने कुर्ते को खुद ही खींच कर खुद का खुद ही ढकना है

फिर से
आ गया लिखने
एक और बकवास

चल बोल
अब क्या रह गया है

जिसे कहना है

फरवरी
का महीना है
वेतन नहीं
निकाल पायेगा
मार्च के महीने में

लग जा
भिड़ाने में
हिसाब किताब
आयकर का

बाकी
होनी को तो
अपनी जगह
उसी तरह
से होना है

जैसा
ऊपर वाले
ने करना है

प्रश्नों
को डाल दे
कबर में किसी

फिर
कभी खोद लेना
कौन सा किसी को
जवाब देने के लिये
कहीं से उतरना है

प्रश्न
दग रहे हैं
मिसाईल
की तरफ
प्रश्न करते ही
पूछने वाले पर
हवा में ही

जमीन
में वैसे भी
कौन सा
किसी को
मारना मरना है

चुन
ली गयी है
सरकारों
की सरकार

हजूर
इस प्रकार
और उस प्रकार

फर्क
कौन सा
जमीर बेचने
वाले के लेन देन
नफा नुकसान पर

जरा सा भी
कहीं पड़ना है

दो हजार
उन्नीस पर
नजर गड़ाये
हुऐ हैं सारे तीरंदाज

बिना
धनुष तीर के
अर्जुन ने लगाना
निशान आँख पर

मछली
की छोड़
ऊँट को करवट
बदलते देखना

उसी
तरफ लोटने
के लिये कहीं
नंगे किसी के
पाँवों पर
लुढ़कना है

‘उलूक’
कुछ नहीं
होना है तेरी
आदत को अब
इस ठिकाने
पर आकर

कौन सा
तूने भी
बकबास
करना छोड़ कर

तागा
लपेटने वाले
पतंग उड़ाते

देश के
पतंगबाजों से
पेच लड़ाने के लिये

अपनी
कटी पतंग
हाथ में लेकर
हवा में उड़ना है ।

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com

शनिवार, 16 फ़रवरी 2019

जरूरी काम निपटाना बहुत जरूरी होता है श्रद्धाँजलि तो मरे को देनी होती है उसके लिये जिंदों के पास समय ही समय होता है

तेज
दौड़ते रहने से
दिखायी नहीं
देती है प्रकृति

रुक लेना
जरूरी होता है

कहना
अपनी बात
और लिखना
उसी को

मजबूरी
हो सकता है
उसके लिये

जो बोलना
और लिखना
सीखते सीखते
भटक जाता है

कवि और
साहित्यकारों
के बीच में
रहने से भ्रम
हो ही जाता है

सामान्य लोग
और मानसिक
रूप से बीमार

साथ में
चलते रहते हैं

समय
समय देता है
समझने के लिये
पागलों को भी

एक ही
रास्ते में
चलने का
नुकसान

पागल
को ही
उठाना
पड़ जाता है

तरक्की
ऐसे ही
नहीं होती है

छोटा
बहुत जल्दी
बहुत बड़ा
हो जाता है

शतरंज
के मोहरे भी
ऊब जाते हैं

कब तक
चले कोई
एक ही
तरह से

किसी के
चलाने से
सीधा आढ़ा
या तिरछा

बिसात को
छोड़ कर
एक ना
एक दिन

हर कोई
बाहर
चला आता है

मौत
शाश्वत है
जीवन
चला जाता है

मोहरे
मरते नहीं हैं
बिसात से
बाहर
निकल आते हैं

बिसात में
बिताये समय का
सदउपयोग कर
मौत बेचना
शुरु हो जाते हैं

खेलने वाले
जब तक
समझ पाते हैं
शतरंज

मोहरे
समझाने वाले
खिलाड़ियों
की पाँत में
बहुत आगे
पहुँच जाते हैं

चुनाव
हार और जीत
शतरंज और मोहरे

हर तरफ फैल कर
अमरबेल की तरह
जिंदगी से
लिपट कर उसे चूसते हैं

कहीं हीमोग्लोबिन
चार पहुँच जाता है

कुछ शूरवीर
पन्द्रह सोलह
के पार हो जाते हैं

देश
देशभक्ति
शहीद याद आते ही

घर के दरवाजे
शोक में बन्द
कर दिये जाते हैं

‘उलूक’
देखता रहता है
ठूँठ पर बैठा
रात में दौड़ते चूहों को

सड़क दर सड़क

अच्छी बात है
कुछ होता है तब
जली मोमबत्ती लेकर

अपनी अपनी
चाल
बहुत धीमी
कर ले जाते हैं

बलिहारी हैं
बिल्लियाँ
जिनकी
नम आखों से
टपकते आँसू

चूहों का उत्साह
इस आसमान से
उस आसमान
तक पहुँचाते हैं

लाशों के बाद वोट
या
वोट के बाद लाश

क्या फर्क पड़ता है

बेवकूफ
हराम के
खाने वाले
हरामी

हमेशा
सामने वाले के
मुँह पर टार्च जला कर
शीशा सामने से
ले कर आते हैं ।

चित्र साभार: https://herald.dawn.com

सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

विश्वविद्यालय शिक्षक संघ चुनाव जितना ‘उलूक’ देख पा रहा है

विश्व
के एक
विद्यालय में

जल्द ही

संघ का
चुनाव होने
जा रहा है

मजे
की बात है

हर
लड़ने वाला
इस चुनाव में

अपना
झंडा
छुपा रहा है

बुद्धिजीवी
बड़ी बात है

किसी एक
बुद्धिजीवी को

वोट देने
जा रहा है

मुद्दे
किसी के
पास हैं
और क्या हैं

पूछने पर

कोई
कुछ नहीं
बता रहा है

विश्व का
यही एक
विद्यालय

जल्दी ही
दो में टूटने
जा रहा है

किसलिये
और क्यों
तोड़ा
जा रहा है

अलग बात है

अच्छा है
किसी से
उसकी
औकात के
बाहर का प्रश्न

पूछा भी
नहीं जा रहा है

शहर
जिले प्रदेश
से छाँट कर

किसी
एक को

दूसरी

ऐसी ही
किसी एक
ऊँची दुकान में

सामान
बेचने
के लिये
भेजा
जा रहा है

अखबार
शहर का

बेचने और
खरीदने की
बात छोड़ कर

दुकानदार
बनाये गये
बुद्धिजीवी के
गाये गये
गाने को
समझा रहा है

सब
पके
पकाये हैं

हर कोई
एक दूसरे को
पका रहा है

विश्व के
विद्यालय के
विख्यात
व्याख्याताओं को

दो हजार उन्नीस
नजर आ रहा है

समझ में
नहीं आती हैं
कुछ बातें

तो लिखने
चला आ रहा है

लिखना
नहीं आता है
फिर क्यों
और
किसलिये
पढ़ा रहा है

लूटना
सिखाना
गिरोह बनाना

नहीं सिखा
पा रहा है

बेकार है
जिन्दगी उसकी

जो खाली
विषय
पढ़ा रहा है

‘उलूक’
तेरी बात है
मान लेते हैं

तू खुद भी
नहीं समझ
पा रहा है

दुआ
उसको दे

जो
ऐसे कूड़े पर

फिर भी

टिप्पणी
दे कर
जा रहा है ।


चित्र साभार: www.thebiharnews.in

बुधवार, 30 जनवरी 2019

जरूरत नहीं है समझने की बहुत लम्बे समय से इकट्ठा किये कूड़े की उल्टी आज आ ही जा रही है


(उलूक को बहुत दूर तक दिखायी नहीं  देता है । कृपया दूर तक फैले देश से जोड़ कर मूल्याँकन करने का कष्ट ना करें। जो  लोग  पूजा में व्यस्त हैं  अपनी आँखे बंद रखें। बैकुण्ठी  के फिर से अवतरित होने के लिये मंत्र जपने शुरु करें)


कई
दिन हो गये

जमा करते करते

कूड़ा
फैलाने की

हिम्मत ही नहीं
आ पा रही है

दो हजार
उन्नीस में


सुना गया है


चिट्ठाकारी
पर
कोई

ईनाम

लेने के लिये

लाईन लगाइये


की मुनादी

करवायी
जा रही है


कई दिन से
ख्वाब में

मक्खियाँ ही
मक्खियाँ
नजर आ रही हैं


गिनना शुरु
करते ही
पता
चल रहा है

कुछ मकड़ी
हो चुकी हैं

खबरची
की खबर
बता रही है


मक्खियाँ
मकड़ी होते ही

मेज की
दूसरी ओर
चली जा रही हैं


साक्षात्कार
कर रही हैं

सकारात्मकता
के पाठ

कैसे
पढ़ाये जायेंगे

समझा रही हैं


मक्खियों
का राजा
मदमस्त है

लग रहा है
बिना अफीम
चाटे ही

गहरी नींद
आ रही है


खून
चूसने में
मजा नहीं है

खून
सुखाने के

तरीके
सिखा रही हैं


मकड़ियाँ
हो चुकी

मक्खियों के
गिरोह के

मान्यता प्राप्त
होने का सबूत

खबरचियों
की टीम
जुटा रही है


मकड़ी
नहीं हो सकी
मक्खियाँ

बुद्धिजीवियों
में अब
गिनी
जा रही हैं


इसलिये
उनके
कहने सुनने

लिखने पढ़ने
की बात

की बात
करने की

जरूरत ही
नहीं समझी
जा रही है


अखबार में

बस
मकड़ियों
की खबर

उनके
सरदार
के इशारों
से ही
छापी
जा रही है


गिरोह
की बैठकों
में तेजी
आती हुयी
नजर आ रही है


फिर किसी
बड़ी लूट की

लम्बी योजना पर
मुहर लगवाने के लिये

प्रस्ताव की
कापियाँ

सरकार
के पास
भेजी
जा रही हैं


अंग्रेजों के
तोड़ो और
राज करो
के सिद्धांत का

नया उदाहरण
पेश करने
की तैयारी है


एक
पुरानी दुकान की
दो दुकान बना कर

दो दुकानदारों
के लिये दो कुर्सी

पेश करने की
ये मारामारी है


गिरोह
की खबरें
छापने के लिये

क्या
मिल रहा है
खबरची को

खबर
नहीं बता रही है


हो सकता है

लम्बी लूट
की योजना में

उनको भी
कहा गया हो

उनकी भी
कुछ भागीदारी है


थाना कोतवाली
एफ आई आर
होने का
कोई डर हो

ऐसी बात
के लिये
कोई जगह
छोड़ी गयी हो

नजर
नहीं आ रही है


गिरोह
के मन मुताबिक
लुटने के लिये तैयार

प्रवेश
लेने वाले
अभ्यर्थियों की

हर साल
एक लम्बी लाईन

खुद ही
खुदकुशी
करने के लिये
जब
आ ही जा रही है


‘उलूक’
तू लिख

‘उलूक’
तू मत लिख

कुछ अलग
नहीं होना है
किसी भी जगह

इस देश में
सब वही है

सबकी
सोच वही है

तेरी खुजली

तुझे ही
खुजलानी है

इतनी सी अक्ल

तुझे पता नहीं

क्यों नहीं
आ पा रही है ।

चित्र साभार:
https://www.canstockphoto.com