तेज
दौड़ते रहने से
दिखायी नहीं
देती है प्रकृति
रुक लेना
जरूरी होता है
कहना
अपनी बात
और लिखना
उसी को
मजबूरी
हो सकता है
उसके लिये
जो बोलना
और लिखना
सीखते सीखते
भटक जाता है
कवि और
साहित्यकारों
के बीच में
रहने से भ्रम
हो ही जाता है
सामान्य लोग
और मानसिक
रूप से बीमार
साथ में
चलते रहते हैं
समय
समय देता है
समझने के लिये
पागलों को भी
एक ही
रास्ते में
चलने का
नुकसान
पागल
को ही
उठाना
पड़ जाता है
तरक्की
ऐसे ही
नहीं होती है
छोटा
बहुत जल्दी
बहुत बड़ा
हो जाता है
शतरंज
के मोहरे भी
ऊब जाते हैं
कब तक
चले कोई
एक ही
तरह से
किसी के
चलाने से
सीधा आढ़ा
या तिरछा
बिसात को
छोड़ कर
एक ना
एक दिन
हर कोई
बाहर
चला आता है
मौत
शाश्वत है
जीवन
चला जाता है
मोहरे
मरते नहीं हैं
बिसात से
बाहर
निकल आते हैं
बिसात में
बिताये समय का
सदउपयोग कर
मौत बेचना
शुरु हो जाते हैं
खेलने वाले
जब तक
समझ पाते हैं
शतरंज
मोहरे
समझाने वाले
खिलाड़ियों
की पाँत में
बहुत आगे
पहुँच जाते हैं
चुनाव
हार और जीत
शतरंज और मोहरे
हर तरफ फैल कर
अमरबेल की तरह
जिंदगी से
लिपट कर उसे चूसते हैं
कहीं हीमोग्लोबिन
चार पहुँच जाता है
कुछ शूरवीर
पन्द्रह सोलह
के पार हो जाते हैं
देश
देशभक्ति
शहीद याद आते ही
घर के दरवाजे
शोक में बन्द
कर दिये जाते हैं
‘उलूक’
देखता रहता है
ठूँठ पर बैठा
रात में दौड़ते चूहों को
सड़क दर सड़क
अच्छी बात है
कुछ होता है तब
जली मोमबत्ती लेकर
अपनी अपनी
चाल
बहुत धीमी
कर ले जाते हैं
बलिहारी हैं
बिल्लियाँ
जिनकी
नम आखों से
टपकते आँसू
चूहों का उत्साह
इस आसमान से
उस आसमान
तक पहुँचाते हैं
लाशों के बाद वोट
या
वोट के बाद लाश
क्या फर्क पड़ता है
बेवकूफ
हराम के
खाने वाले
हरामी
हमेशा
सामने वाले के
मुँह पर टार्च जला कर
शीशा सामने से
ले कर आते हैं ।
चित्र साभार: https://herald.dawn.com
दौड़ते रहने से
दिखायी नहीं
देती है प्रकृति
रुक लेना
जरूरी होता है
कहना
अपनी बात
और लिखना
उसी को
मजबूरी
हो सकता है
उसके लिये
जो बोलना
और लिखना
सीखते सीखते
भटक जाता है
कवि और
साहित्यकारों
के बीच में
रहने से भ्रम
हो ही जाता है
सामान्य लोग
और मानसिक
रूप से बीमार
साथ में
चलते रहते हैं
समय
समय देता है
समझने के लिये
पागलों को भी
एक ही
रास्ते में
चलने का
नुकसान
पागल
को ही
उठाना
पड़ जाता है
तरक्की
ऐसे ही
नहीं होती है
छोटा
बहुत जल्दी
बहुत बड़ा
हो जाता है
शतरंज
के मोहरे भी
ऊब जाते हैं
कब तक
चले कोई
एक ही
तरह से
किसी के
चलाने से
सीधा आढ़ा
या तिरछा
बिसात को
छोड़ कर
एक ना
एक दिन
हर कोई
बाहर
चला आता है
मौत
शाश्वत है
जीवन
चला जाता है
मोहरे
मरते नहीं हैं
बिसात से
बाहर
निकल आते हैं
बिसात में
बिताये समय का
सदउपयोग कर
मौत बेचना
शुरु हो जाते हैं
खेलने वाले
जब तक
समझ पाते हैं
शतरंज
मोहरे
समझाने वाले
खिलाड़ियों
की पाँत में
बहुत आगे
पहुँच जाते हैं
चुनाव
हार और जीत
शतरंज और मोहरे
हर तरफ फैल कर
अमरबेल की तरह
जिंदगी से
लिपट कर उसे चूसते हैं
कहीं हीमोग्लोबिन
चार पहुँच जाता है
कुछ शूरवीर
पन्द्रह सोलह
के पार हो जाते हैं
देश
देशभक्ति
शहीद याद आते ही
घर के दरवाजे
शोक में बन्द
कर दिये जाते हैं
‘उलूक’
देखता रहता है
ठूँठ पर बैठा
रात में दौड़ते चूहों को
सड़क दर सड़क
अच्छी बात है
कुछ होता है तब
जली मोमबत्ती लेकर
अपनी अपनी
चाल
बहुत धीमी
कर ले जाते हैं
बलिहारी हैं
बिल्लियाँ
जिनकी
नम आखों से
टपकते आँसू
चूहों का उत्साह
इस आसमान से
उस आसमान
तक पहुँचाते हैं
लाशों के बाद वोट
या
वोट के बाद लाश
क्या फर्क पड़ता है
बेवकूफ
हराम के
खाने वाले
हरामी
हमेशा
सामने वाले के
मुँह पर टार्च जला कर
शीशा सामने से
ले कर आते हैं ।
चित्र साभार: https://herald.dawn.com