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सोमवार, 30 सितंबर 2019

वो कहीं नहीं जाता है ये हर जगह नजर आता है आने जाने के हिसाब से यहाँ हिसाब लगाया जाता है



गजब है

सारे

उसके
हिसाब से

हिसाब
समझा रहे हैं

गणित
की लिखी
पुरानी
एक किताब को

किसी
बेवकूफ
के द्वारा
लिखा गया
इतिहास
बता रहे हैं

वो
पता नहीं

क्यों
बना हुआ है

अभी तक

कागज के नोट पर

जिसकी
एक सौ
पचासवी
तेरहवी
मनाने के लिये

उसकी
धोती के

हम सब
मिल कर

उसके
परखच्चे
उड़ा रहे हैं

वहम
है शायद
या समझ में
नहीं आता है

जो
सामने
से होता है
किसी को भी
नजर नहीं आता है

कुछ
कहने की
कोशिश करो तो

नजरें
देख कर
सामने वाले की

डर लगता है

जैसे कह रहा हो

औकात
में रहा कर

पहाड़
से लाकर
अपने पहाड़ी कव्वे

किसलिये
रेगिस्तान में
लाकर उड़ाता है

हर किसी ने
ओढ़ा हुआ होता है

एक गमछा
मूल्यों का
अपने गले में

रंग उसका
उसकी
सोच का
परचम
उसके साथ
लहराता है

लाल को
हरे गमछे
में बदल देने से
कौन सा
मूल्य बदल जाता है

मुस्कुराईये मत

अगर

रोज
पैंट पहन कर
घूमने वाला आदमी

कहीं
किसी जगह
एक रंग की
हाफ पैंट के साथ
टोपी भी पहना हुआ
नजर आता है

लाजमी है
उतरना
 रंग चेहरों का
देखकर

कोई अगर
आईना
उनके
सामने से
आ जाता है

शहर में
बहुत कुछ
होता है

हर कोई
कहीं ना कहीं
अपना जमीर
तोलने जाता है

परेशान
किस लिये
होता है
‘उलूक’
इस सब से

अगर तुझे
खुद को
बेचना
नहीं
आता है ।

चित्र साभार: https://www.kissclipart.com/

बुधवार, 31 अक्तूबर 2018

समझ में नहीं आ रही है ऊँचाई एक बहुत ऊँची सोच की किसी से खिंचवा के ऊँची करवा ही क्यों नहीं ले रहा है

एक
बहुत बड़ी सोच 
रख दी गयी है 
बहुत ऊँचाई पर ले जाकर 

बहुत दूर से अब
अंधे को भी 
कुछ कुछ सोचता एक 
बड़ा सा सिर दिखाई दे रहा है 
दीवारों में
छपवा ही क्यों नहीं दे रहा है 

खर्चा
बहुत हो गया है कह रहे हैं कुछ लोग 
जिनकी सोच शायद छोटी है 

हिसाब किताब 
थोड़े से हजार थोड़े से करोड़ों का 
अच्छी तरह से कोई उन्हें 
समझा ही क्यों नहीं दे रहा है 

सोच का
भूख गरीबी या बदहाली से 
कोई रिश्ता नहीं होता है
भूखा बस रोटी सोच सकता है 

खिलाना कौन सा है 

सपने ही 
कुछ बड़ी सी रोटियों के 
दिखा ही क्यों नहीं दे रहा है 

कुछ भरे पेट 
कुछ भी सोचना शुरु कर देते हैं 

कुछ बड़ा सोचने के लिये 
कुछ बड़े लोगों के बड़े प्रमाण पत्र 
पास में होना बहुत जरूरी होता है 

इतनी छोटी सी बात है 
किसी भाषण के बीच में 
बता ही
क्यों नहीं दे रहा है 

कुछ बड़ा ही नहीं
बहुत बड़ा बनाने के लिये 
बड़ा दिल पास में होना ही होता है 

रामवृक्ष बेनीपुरी के लिखे निबन्ध का 
गेहूँ भी और गुलाब भी 
इतना पुराना हो गया होता है 
कि 
सड़ गया होता है 

सड़ा कुछ
बहुत बड़ा सा ला कर 
सुंघा ही क्यों नहीं दे रहा है 

अच्छा किया ‘उलूक’ 
तूने टोपी पहनना छोड़ कर 

गिर जाती जमीन पर पीछे कहीं 
इतनी ऊँचाई देखने में 

टोपी पहनाना शुरु कर चुका है जो सबको 
उसके लिये 
बहुत बड़ी सी कुछ टोपियाँ 

तू किसी से 
खुद सिलवा ही क्यों नहीं दे रहा है ।

चित्र साभार: https://wonderopolis.org/wonder/who-is-the-tallest-person-in-the-world

सोमवार, 8 जून 2015

परेशानी तब होती है जब बंदर मदारी मदारी खेलना शुरु हो जाता है

मदारी को इतना
मजा आता है
जैसे एक पूरी
बोतल का नशा
हो जाता है
जब वो अपने
बंदर को सामने
वाले के सिर पर
चढ़ कर
जनता के बीच में
उसकी टोपी
उतरवाना सिखाता है
बालों पर लटक
कर नीचे उतरना
कंधे पर चढ़ कर
कानों में खों खों करना
देखते ही मदारी के
चेहरे की रंगत में
रंग आ जाता है
जब पाला पोसा हुआ
बंदर खीसें निपोरते हुऐ
गंजे के सिर में
तबला बजाता है
मदारी खुद सीखता
भी है सिखाना
अपने ही आसपास से
सब कुछ देख देख कर
बड़े मदारी की हरकतों को
कैसे बंदरों के कंधों में
हाथ रख रख कर
अपने लिये बड़ा मदारी
बंदरों से अपने सारे
काम निकलवाता है
काम निकलते ही
बंदरों को भगाने के लिये
दूसरे पाले हुऐ बंदरों से
हाँका लगवाता है
सब से ज्यादा मजा तो
आइंस्टाइन को आता है
सामने के चौखट पर
खड़े होकर जब वो खुद
एक प्रेक्षक बन जाता है
'जय हो सापेक्षता के
सिद्धाँत की' उस समय
अनायास ही जबान से
निकल जाता है जब
एक मदारी के सर पर ही
उसका सिखाया पाल पोसा
चढ़ाया हुआ बंदर
उसके ही बाल नोचता
नजर आता है ।



चित्र साभार: jebrail.blogfa.com

रविवार, 4 मई 2014

बहुत पक्की वाली है और पक्का आ रही है

आसमान से
उतरी आज
फिर एक चिड़िया
चिड़िया से उतरी
एक सुंदर सी गुड़िया
पता चला बौलीवुड से
सीधे आ रही है
चुनाव के काम
में लगी हुई है
शूटिंग करने के लिये
इन दिनों और जगहों
पर आजकल नहीं
जा पा रही है
सर पर टोपियाँ
लगाये हुऐ एक भीड़
ऐसे समय के लिये
अलग तरीके की
बनाई जा रही है
जयजयकार करने
के लिये कार में
बैठ कर कार के
पीछे से सरकारी
नारे लगा रही है
जनता जो कल
उस तरफ गई थी
आज इसको देखने
के लिये भी
चली जा रही है
कैसे करे कोई
वोटों की गिनती
एक ही वोट
तीन चार जगहों
पर बार बार
गिनी जा रही है
टोपियाँ बदल रही है
परसों लाल थी
कल हरी हुई
आज के दिन सफेद
नजर आ रही है
लाठी लिये हुऐ
बुड़िया तीन दिन से
शहर के चक्कर
लगा रही है
परसों जलेबी थी हाथ में
कल आईसक्रीम दिखी
आज आटे की थैली
उठा कर रखवा रही है
काम पर नहीं
जा रहा है मजदूर
कई कई दिन से
दिखाई दे रहा है
शाम को गाँव को
वापस जाता हुआ
रोज नजर आ रहा है
बीमार हो क्या पता
शाम छोड़िये दिन में
भी टाँगे लड़खड़ा रही हैं
‘उलूक’ तुझे क्यों
लगाना है अपना
खाली दिमाग
ऐसी बातों में जो
किसी अखबार में
नहीं आ रही हैं
मस्त रहा कर
दो चार दिन की
बात ही तो है
उसके बाद सुना है
बहुत पक्की वाली
सरकार आ रही है ।

गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

कुछ दिन और चलना है ये बुखार

चुनावी बसंतों की
ताजिंदगी
रही है भरमार
जीवन को तो
चलना ही है
इस प्रकार
या उस प्रकार
वोट कभी दे
कर के आया
एक दो बार
नाम वोटर लिस्ट
से गायब
हुआ भी पाया
सीटियाँ बजाते हुऐ
लौट उस बार आया
कभी इसकी बनी
और कभी उसकी बनी
अपने देश की सरकार
अपना मौका मगर
अभी तक भी
नहीं आ पाया
शायद ऊपर वाला
बना ही रहा हो
बस मेरी और
केवल मेरी
सरकार इस बार
हैड और टेल ने
पहले भी बहुत
बार है छकाया
सिक्का उछ्ल चुका है
आसमान की ओर
ताकत लगा कर
ही गया है उड़ाया
इधर गिराने को
इसने जोर
है लगाया
उधर गिराने को
उस ने है एक
पँखा चलवाया
लग रहा है देखेंगे
लोग कुछ ऐसा
जैसा इस बार
जैसा पहले कभी
भी नहीं हो पाया
सिक्का होने वाला
है खड़ा जमीन
पर आकर
बता गया है
कान में
धीरे से कोई
आकर फुसफुसाया
उसे मिल
गया था घोड़ा
जब उसकी
बनी थी सरकार
इसकी बार
इसको मिली थी
लाल बत्ती लगी
हुई एक कार
झंडे टोपी वाले
हर चुनाव में
वहीं दिखे
आगे पीछे ही
लगे डौलते हर बार
किस्मत अपनी
चमकने का
उनको भी
हो रहा है
बड़ी बेसब्री
से इंतजार
इसी बार बनेगी
जरूर बनेगी उनकी
अपनी सी सरकार
दूल्हा जायेगा
लम्बे समय को
दिल्ली की दरबार
खास ज्यादा
नहीं होते हैं
बस होते हैं
दो चार
उनके हाथ में
आ ही जायेगा
कोई ना
कोई कारोबार
झंडे टोपी वाले
संतोषी होते हैं
खुश होंगे जैसे
होते हैं हर बार
सपने देखेंगे
खरीदेंगे बेचेंगे
इस बार नहीं
तो अगली बार
कोई रोक नहीं
कोई टोक नहीं
जब होता है
अपने पास
अपना ही एक
सपनों का व्यापार ।

सोमवार, 23 दिसंबर 2013

आम में खास खास में आम समझ में नहीं आ पा रहा है

आज का नुस्खा
दिमाग में आम
को घुमा रहा है
आम की सोचना
शुरु करते ही
खास सामने से
आता हुआ नजर
आ जा रहा है
कल जब से
शहर वालों को
खबर मिली कि
आम आज जमघट
बस आमों में आम
का लगा रहा है
आम के कुछ खासों
को बोलने समझाने
दिखाने का एक मंच
दिया जा रहा है
खासों के खासों का
जमघट भी जगह
जगह दिख जा रहा है
जोर से बोलता हुआ
खासों का एक खास
आम को देखते ही
फुसफुसाना शुरु
हो जा रहा है
आम के खासों में
खासों का आम भी
नजर आ रहा है
टोपी सफेद कुर्ता सफेद
पायजामा सफेद झंडा
तिरंगा हाथ में एक
नजर आ रहा है
वंदे भी है मातरम भी है
अंतर बस टोपी में
लिखे हुऐ से ही
हो जा रहा है
“उलूक” तो बस
इतना पता करना
चाह रहा है
खास कभी भी
नहीं हो पाया जो
उसे क्या आम में
अब गिना जा रहा है ।

गुरुवार, 18 जुलाई 2013

देश बड़ा है घर की बनाते हैं

देश की सरकार
तक फिर कभी
पहुँच ही लेगें
चल आज अपने
घर की सरकार
बना ले जाते हैं
अंदर की बात
अंदर ही रहने
देते हैं किसी को
भी क्यों बताते हैं
ना अन्ना की टोपी
की जरूरत होती है
ना ही मोदी का कोई
पोस्टर कहीं लगाते हैं
मनमोहन को चाहने
वाले को भी अपने
साथ में मिलाते हैं
चल घर में घर की ही
एक सरकार बनाते हैं
मिड डे मील से हो
रही मौतों से कुछ तो
सबक सीख ले जाते हैं
जहर को जहर ही
काटता है चल
मीठा जहर ही
कुछ कहीं फैलाते हैं
घर के अंदर लाल
हरे भगवे में तिरंगे
रंगो को मिलाते हैं
कुछ पाने के लिये
कुछ खोने का
एहसास घर के
सदस्यों को दिलाते हैं
चाचा को समझा
कुछ देते हैं और
भतीजे को इस
बार कुछ बनाते हैं
घर की ही तो है
अपनी ही है
सरकार हर बार
की तरह इस
बार भी बनाते हैं
किसी को भी इस
से फरक नहीं
पड़ने वाला है कहीं
कल को घर से
बाहर शहर की
गलियों में अगर
हम अपने अपने
झंडों को लेकर
अलग अलग
रास्तों से निकल
देश के लिये एक
सरकार बनाने
के लिये जाते हैं ।

बुधवार, 12 जून 2013

समाज को समझ सामाजिक हो जा

तेरे मन की जैसी नहीं होती है
तो 
बौरा क्यों जाता है 

सारे लोग लगे हैं जब लोगों को पागल बनाने में 
तू क्यों पागल हो जाता है 

जमाना तेजी से बदल रहा है 
कुछ तो अपनी आदतों को बदल डाल 
बात बात में फालतू की बात अब ना निकाल 

मान भी जा 
कुछ तो समझौते करने की आदत अब ले डाल 

देखता नहीं 
बढ़ती उम्र में भी आदमी बदल जाता है 
अच्छा आदमी होता है तो आडवानी हो जाता है 

अपने घर से शुरु कर के तो देख जरा 
थोड़ा थोड़ा घरवाली की बात पर
होना छोड़ दे अब टेढ़ा टेढ़ा

उसके बाद 
आफिस की आदतों में परिवर्तन ला 
साहब चाहते हों तुझे गधा भी बनाना 
वो भी बन कर के दिखा 
समझा कर 
तेरा कुछ भी नहीं जायेगा 
पर तेरा साहब जरूर एक धोबी हो जायेगा

सत्कर्म करने वाला ही मोक्ष पाता है 
किताबों में लिखा है ऎसा माना जाता है 
ऎसी किताबों को कबाड़ी को बेच कर के आ 
बहुमत के साथ रह बहुमत की बात कर 
बहुमत के मौन की इज्जत करने में
तेरा क्या जाता है 

तू इतना बोलता है 
तेरे को सुनने क्या कोई आता है 
समझने वाले लोग
समझदारों की बात ही समझ पाते हैं 
तेरे भेजे में ये कड़वा सच क्यों नहीं घुस पाता है 

अब भी समय है 
समझदारों में जा कर के शामिल हो जा 
अन्ना की टोपी पहन मोदी को माला पहना 
मौका आता है जैसे ही राहुल की सरकार बना 
सबके मन की जैसी करना अब तो सीख जा 
बात कहने को किसी ने नहीं किया है मना 

लेखन को धारदार बना 
लोहे की हो जरूरी नहीं लकड़ी की तलवार बना 

मन की जैसी नहीं हो रही हो तो मत बौरा 
खुद पागल क्यों होता है 
लोगों को पागल बना 

समाज से अलग थलग पड़ने का नहीं है मजा 
बहुमत को समझने की कभी तो कोशिश कर 
'उलूक' थोड़ी देर के लिये ही सही सामाजिक हो जा । 

चित्र साभार: https://www.gettyimages.in/

शुक्रवार, 8 जून 2012

चल मुँह धो कर के आते हैं

अपनी भी
कुछ पहचान
चलो आज
बनाते हैं

चल मुँह धो कर के आते हैं

मंजिल तक
पहुंचने के
लम्बे रास्ते
से ले जाते हैं

कुछ
राहगीरों को
आज राह से
भटकाते हैं

चल मुँह धो 
कर के आते हैं

चलचित्र 'ए'
देखने का
माहौल बनाते हैं

उनकी आहट
सुनते ही
चुप हो जाते हैं

बात
बदल कर
गांंधी की
ले आते हैं

चल मुँह धो 
कर के आते हैं

बूंद बूंद
से घड़ा
भर जाये
ऎसा
कोई रास्ता
अपनाते हैं

चावल की
बोरियों में
छेद
एक एक
करके आते हैं

चल मुँह धो 
कर के आते हैं

अन्ना जी से
कुछ कुछ
सीख  कर
के आते हैं

सफेद टोपी
एक सिलवाते हैं

चल मुँह धो कर के आते हैं

किसी के
कंधे की 
सीढ़ी एक
बनाते हैं


ऊपर जाकर
लात मारकर
उसे नीचे
गिराते हैं

सांत्वना देने
उसके घर
कुछ केले ले
कर जाते हैं

चल मुँह धो कर के आते हैं

देश का
बेड़ा गर्क
करने की
कोई कसर
कहीं
नहीं छोड़
कर के जाते हैं

भगत सिंह
की फोटो
छपवा कर के
बिकवाते हैं



चल मुँह धो कर के आते हैं


एक रुपिया
सरकारी
खाते में
जमा करके

बाकी
निन्नानबे
घर अपने
पहुंचवाते हैं



चल मुँह धो कर के आते हैं


अपनी
भी कुछ
पहचान
चलो आज
बनाते हैं

चल मुँह धो कर के आते हैं।

रविवार, 1 अप्रैल 2012

मूर्खता दिवस

आप के लिये
हो ना हो

मेरे लिये
बहुत खास है

आज का दिन
लगता है कितना
अपना अपना सा

देख रहें हो जैसे
दिन में ही एक
सुन्दर सपना सा

देश ही नहीं
विदेश में भी
मनाया जाता है

कितनी खुशी
मिलती है
जब चर्चा
में आपको
लाया जाता है

वैसे मेरे लिये
हर दिन एक
अप्रैल होता है

मेरी सोच का
मुश्किल से ही
किसी से कोई
मेल होता है

ईनाम मिलने
की बारी अगर
कभी आयेगी

जनता जनार्दन
किसी और को
टोपी पहनायेगी

मेरे हाथ मे
कव्वे का एक
पंख देकर
मुझे ढ़ाढस
जरूरे बधायेगी

कोई बात नहीं
मुझे अपने पर
इतना भरोसा है

वो सुबह कभी
तो आयेगी
मेरी टोपी मेरे
सिर में ही कभी
पहनायी जायेगी।

बुधवार, 11 जनवरी 2012

चुनाव और मास्टर की सोच

चुनाव का
बुखार
आज भी
बहुत तेजी
दिखा रहा था

मैं मास्टर
समर्थकों की
भीड़ से
बचता हुवा
जा रहा था

मास्टरी
दिमाग
फिर हमेशा
की तरह
कुलबुला
रहा था

सोच रहा था
इस खर्चीले
चुनाव की
जगह परीक्षा
अगर करा
दी जाये

नेता देश
के एक
राष्ट्र व्यापी
परीक्षा
से चुने जायें

कुछ शेषन
या अन्ना
जैसे कड़क
परीक्षा नियंत्रक
नियुक्त कर
दिये जायें

नकल करने
की बिल्कुल
भी इजाजत
ना दी जाये
और
आशावाद
चढ़ते ही
जाने लगा
आसमान

अचानक
फिर से
निराशा ने
दिया एक
झटका
और
कराया मुझे
ये भान
परीक्षा तंत्र
भी तो इसी
देश का
काम करायेगा

नकल जो
नहीं कर पाया
मास्टर को
घूस दे कर
के आयेगा

अन्ना की
ये कोशिश
कहीं फिर
एक बार
धोखा खायेगी

टोपी सफेद
जिन लोगों
ने भुनाई
इस बार
परी़क्षा होगी
तो भी उनकी
ही कौपी
नम्बर लायेगी

फिर से
सबसे कम
पढ़ने वाला
प्रथम आयेगा

अनपढ़ ही
इस देश को
लगता है
हमेशा चलायेगा।