उलूक टाइम्स: नुस्खा
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सोमवार, 20 अप्रैल 2020

पढ़ता कोई नहीं अपनी आँखों से सब पढ़ कर कोई और सुनाता है



बकवास करने में
कौन सा क्या कुछ चला जाता है 
फिर आजकल
कुछ कहने सुनने क्यों नहीं आता है 

सूरज रोज सुबह
और चाँद शाम को ही जब आता है 
अभी का अभी लिख दे
सोचने में दिन निकल जाता है 

खबरें बीमार हैं माना सभी
अखबार बीमार नजर आता है
नुस्खा बकवास भी नहीं होती
 बक देने में क्या जाता है 

ताला लगा है घर में
दिमाग बन्द हुआ जाता है 
खुले दिमाग वालों को
भाव कम दिया जाता है 

थाली में सब है
गिलास में भी कुछ नजर आता है 
भूख से नहीं मरता है कोई
मरने वालों में कब गिना जाता है 

सब कुछ लिखा होता है चेहरे पर
चेहरा किताब हो जाता है 
पढ़ना किस लिये अपनी आँखों से
सब पढ़ कर कोई और सुनाता है 

बकवास हो गया खुद एक ‘उलूक’
बकवास करना चाहता है 
खींचते ही लकीरों में चेहरा कविता का
मुँह चिढ़ाना शुरु हो जाता है।
चित्र साभार: https://favpng.com/

सोमवार, 14 जुलाई 2014

बात बनाने की रैसेपी या कहिये नुस्खा

अवयय:

1. थोड़े पैसे खर्चे के लिये,
2.  एक दो संस्थाये कुछ देने के          लिये,
3. चार पाँच एक सी सोच की              नामचीन हस्तियाँ,
4.  बिना किराये का हॉल या              बारात घर,
5. एक मेज, चार पाँच गद्दीदार कुर्सियाँ, दरी,
6. प्लास्टिक की कुछ और कुर्सियाँ, 
7. कुछ अखबार वाले मित्र,
8. घर का ही कोई एक फोटोग्राफर,
9. सरकारी कँप्यूटर, प्रिंटर, फैक्स, इंटरनेट कनेक्शन,
10. थोड़े रिश्तेदार,
11. कुछ नासमझ बेवकूफ लोग भीड़ बनाने के लिये
     और सबसे महत्वपूर्ण
12. एक गरम गरम बिकने वाला मुद्दा | 


 

बनाने की विधि:

बात 

पर बात
बनाने की विधि
सबसे 

आसान होती है

थोड़ा सा
दिमाग
अगर हो तो
बनी हुई बात
बहुत स्वादिष्ट
और बिकने में
तूफान होती है

एक
गरम मुद्दा
पर्यावरण,
वृक्षारोपण,
ग्लोबल वार्मिंग,
ब्लात्कार
या कोई भी
अपनी
इच्छा अनुसार
पकड़ कर
शुरु हो जाइये

धीमे धीमे ही
पकानी
होती हैं बातें
जरा सा भी
मत घबराइये

अपनी जैसी
सोच के
चार नामचीन
आदमियों
को पटाइये
चार कुर्सियों
के सामने
एक मेज लगाइये

सामने से फोटो
खिँचवानी है
पीछे की भीड़
कम हो तो
नहीं दिखानी है
ना ही बतानी है

काम सारा
मुफ्त में
सरकारी
करवा
ले जाइये

बिल विल
गैर सरकारी
ठप्पों के
बनवाइये

अखबारी दोस्त
कब काम आयेंगे
बात की बात पर
बाकी बातें उनसे
लिखवा कर
अखबार
के फ्रंट पेज
पर छपवाइये

फोटोकापी
अखबार की
सौ एक करके
ऊपर को और
कहीं भिजवाइये

बात पकानी बहुत
आसान होती है
जितनी चाहे
पका ले जाइये

करना कहाँ कुछ
किसी को होता है
बातें करना
और बनाना
सबसे जरूरी
होता है

अच्छे दिनों कि
कितनी सारी
बाते हुई है
आज तक
जरा पीछे
जा कर देख
कर आइये

पेड़ कहीं नहीं
लगाने होते हैं
मन के अंदर
ही अपने
जितने चाहे
जंगल बनाइये

संजीव कपूर को
खाना बनाने
के लिये याद
कर रहा है
आज के दिन
पूरा भारत देश

‘उलूक’
को बातूनी
का ही सही
एक तमगा
दे जाइये।

सोमवार, 23 दिसंबर 2013

आम में खास खास में आम समझ में नहीं आ पा रहा है

आज का नुस्खा
दिमाग में आम
को घुमा रहा है
आम की सोचना
शुरु करते ही
खास सामने से
आता हुआ नजर
आ जा रहा है
कल जब से
शहर वालों को
खबर मिली कि
आम आज जमघट
बस आमों में आम
का लगा रहा है
आम के कुछ खासों
को बोलने समझाने
दिखाने का एक मंच
दिया जा रहा है
खासों के खासों का
जमघट भी जगह
जगह दिख जा रहा है
जोर से बोलता हुआ
खासों का एक खास
आम को देखते ही
फुसफुसाना शुरु
हो जा रहा है
आम के खासों में
खासों का आम भी
नजर आ रहा है
टोपी सफेद कुर्ता सफेद
पायजामा सफेद झंडा
तिरंगा हाथ में एक
नजर आ रहा है
वंदे भी है मातरम भी है
अंतर बस टोपी में
लिखे हुऐ से ही
हो जा रहा है
“उलूक” तो बस
इतना पता करना
चाह रहा है
खास कभी भी
नहीं हो पाया जो
उसे क्या आम में
अब गिना जा रहा है ।